निंदक नीयरे By Barun Sakhajee मीलॉर्ड रिजिजू कुछ गलत नहीं कह रहे, क्षमा कीजिए

Nindak Niyre: क्षमा मीलॉर्ड! देश के कानून मंत्री फट पड़े, सुनते, सहते, देखते, समझते, बोलते और कहते थक गए होंगे, मैं भी अग्रिम क्षमा चाहता हूं

Nindak niyre : देश के कानून मंत्री रिजिजू का फटना लाजिमी है। न्यायपालिका के एक्टिविज्म को हम खुली आंखों से देख रहे हैं।

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:56 PM IST, Published Date : October 18, 2022/9:52 pm IST

Barun Sakhajee

Barun Sakhajee,
Asso. Executive Editor

बरुण सखाजी, सह-कार्यकारी संपादक

Nindak niyre : देश के कानून मंत्री रिजिजू का फटना लाजिमी है। न्यायपालिका के एक्टिविज्म को हम खुली आंखों से देख रहे हैं। यह न्याय देने के लिए होता तो सुखद था, किंतु दुर्भाग्य से यह किसी को कमतर करने के लिए है। मामलों की पेंडेंसी पर कोई बात नहीं, लेकिन बेवजह के कई मसलों पर तेजी साफ देख रहे हैं। कोर्टोक्रेसी, ब्यूरोक्रेसी, पॉलिटोक्रेसी और अघोषित मीडियोक्रेसी मिलकर डेमोक्रेसी का हरण कर रहे हैं और अचरज की बात है कि यह सब ये लोग डेमोक्रेसी को बचाने के लिए कर रहे हैं।

इस मामले में रिजिजू के साथ निंदक नीयरे के जरिए सिर्फ मैं नहीं खड़ा बल्कि हर वो व्यक्ति खड़ा है, जो इसका गवाह है। सोचिए, सारी दुनिया ने मुंबा देवी के नगर मुंबई को मुंबई मान लिया, लेकिन आप अब भी बॉम्बे लिखते हो। राम मंदिर को इतना मजाक बनाया गया कि जब सुनवाई लगी तो संबंधित मीलॉर्ड छुट्टी पर चले गए। अभी हाल का मसला भी याद कीजिए। सुनवाई हिजाब पर फैसला पढ़ाई पर। जो जिस मूलभूत के लिए है वह करता ही है और नहीं करता तो उस पर अलग से बात की जानी चाहिए। परंतु कौन बोलता आपसे? आपने कह दिया और इसे स्प्लिट मानने की हम जनता की मजबूरी है।

रिजिजू ने बड़ा जोखिम उठाया है। उन्होंने जो कहा है वह चुभने वाला है, लेकिन सच है। देश के पहले प्रधानमंत्री ने कहा था न्यापालिका को अधिक शक्तिशाली बनाने से हम एक नया सदन तैयार करेंगे। न्यायपालिका का काम न्याय सुनिश्चित करना हो न कि पेंच फंसाना। नेहरू की यह आशंका सच सिद्ध हुई। कहीं दूर न जाइए, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में ही देख लीजिए। न कोई मीडिया छाप सकता है न कोई नेता छू सकता है, न अफसर एक बार देख ही सकते। आपकी सारी मूल अधोसंरचना अलग शिफ्ट कर दी गई है, बावजूद इसके नगर की पुरानी अधोसंरचना को मुक्त नहीं मिल पा रही।

देश के आम आदमी को न्याय सुनिश्चित करने का जिम्मा ऐसा वे जिस भाषा में आते हैं, वह कश्मीर से कन्याकुमारी, भरोंच से कामाख्या, जैसलमेर से कोणार्क, चौबीस परगना से गोवा तक किसी की मातृभाषा नहीं। मामले कितने ही पेंडिंग हों स्वसंज्ञान नहीं, जज संख्या कम हुआ तो रोकर भी दिखाया। अफसरों या अन्य लोगों को कोर्ट के बाहर खड़ा करके वर्षों लीगल प्रोसीजर में अटका,लटकाकर किस कोर्ट का स्वाभिमान पोषित होता होगा, बजाए खुद के अंहकार की तुष्टि के। कोर्ट-कचहरी के चक्कर में नहीं पड़ना, इन लीगल जटिलिताओं के कारण एक जुमला ही बन गया। पर आपको चिंता इसकी नहीं होती।

रिजिजू का उछाला विषय देशभर में चर्चा में आएगा। आना ही चाहिए। खुलकर बोलना पड़ रहा है मीलॉर्ड। क्षमा। पहनावे, भाषा, तरीके से लेकर हर चीज ऐसी है, जिसमें लोकतंत्र तो कम से कम कहीं नहीं झलकता। अब आप चाहें तो बुला लीजिए, चाहें तो दरियादिली दिखा दीजिए। क्षमा। क्षमा। क्षमा।