सौरभ तिवारी
चुनावी युद्ध में दुश्मन को चौंका कर उसे संभलने का मौका नहीं देने की रणनीति पर चलने वाली भाजपा ने मध्यप्रदेश में एक बार फिर बड़ा दांव चला है। हारी हुई सीटों पर चुनावों से काफी पहले ही उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी करने के बाद अब दूसरी लिस्ट में तमाम दिग्गजों को मैदान में उतार कर भाजपा ने विरोधी खेमे में सर्जिकल स्ट्राइक कर दी है। कांग्रेस की प्रतिक्रिया’ बताती है कि भाजपा के इस दांव ने उसे सन्निपात की स्थिति में ला दिया है। हालांकि लिस्ट जारी करने में पिछड़ने की खिसियाहट को कांग्रेस इस दलील के जरिए छिपाने की कोशिश कर रही है कि भाजपा के पास जीतने लायक उम्मीदवार ही नहीं है इसलिए वो सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को टिकट देने के लिए मजबूर हो गई।
दरअसल भाजपा 2017 में उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में आजमाए गए फार्मूले को अब मध्यप्रदेश में आजमाने जा रही है। तब उत्तरप्रदेश के चुनाव अभियान की कमान संभालने वाले अमित शाह ने उत्तरप्रदेश के तमाम आंचलिक क्षत्रपों और राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को विधानसभा चुनाव मैदान में उतार कर विपक्षी मोर्चाबंदी को धरासायी करते हुए 14 साल का वनवास खत्म किया था। मध्यप्रदेश के लिए जारी बीजेपी की दूसरी लिस्ट में शामिल दिग्गजों के नाम इस बात की तस्दीक करते हैं कि मध्यप्रदेश में भी अमित शाह अपने टेस्टेड फार्मूले को फिर आजमाने जा रहे हैं। 39 कैंडिडेट की दूसरी लिस्ट में 3 केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों के नाम हैं। केंद्रीय कैबिनेट में मध्यप्रदेश के कोटे से 5 मंत्री हैं, जिनमें से नरेंद्र सिंह तोमर , प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते को चुनाव मैदान में उतार दिया गया है। भाजपा बाकी बचे दो मंत्रियों ज्योतिरादित्य सिंधिया और वीरेंद्र सिंह खटीक को भी इस चुनावी संग्राम में उनके-उनके इलाकों में बतौर सेनापति उतार कर कांग्रेस के सामने एक बड़ी व्यूह रचना कर सकती है। इसके अलावा दूसरी लिस्ट में अपने दो अन्य दिग्गज कैलाश विजयवर्गीय और राकेश सिंह को भी शामिल कर भाजपा ने साफ संकेत दे दिया है कि वो मध्यप्रदेश को हर हाल में अपने कब्जे में रखने के लिए प्रयोग और जोखिम लेने से नहीं चूकेगी।
भाजपा ने अपने दिग्गजों को चुनाव मैदान में उतारने का ये प्रयोग उत्तरप्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में भी आजमा कर अपेक्षित परिणाम हासिल किया था। पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने अपने केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो समेत पांच सांसदों को उम्मीदवार बनाया था। हालांकि बाबुल सुप्रियो, लॉकेट चटर्जी और राज्यसभा सांसद स्वपन दासगुप्ता चुनाव हार गए थे। इस हार का खामियाजा बाबुल सुप्रियो को अपना मंत्री पद गंवाकर चुकाना पड़ा था। बाद में ये हार उनकी भाजपा से रुखसती की एक वजह भी बनी थी। भाजपा के ये तीन हैवीवेट उम्मीदवार भले ही चुनाव हार गए थे लेकिन पश्चिम बंगाल में बीजेपी की सीटों में जबरदस्त इजाफा हुआ और वो मुख्य विपक्षी दल बनकर उभरी थी।
भाजपा की दूसरी लिस्ट पर नजर डालने से ये साफ हो जाता है कि पार्टी ने मध्यप्रदेश में भी उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल के फार्मूले पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। यानी मध्यप्रदेश में भी भाजपा अपने तमाम दिग्गजों जिसमें कई सीएम इन वेटिंग है के साथ चुनाव मैदान में उतरने जा रही है। दूसरी लिस्ट में भाजपा ने अपने कुछ सीएम इन वेटिंग को शामिल कर लिया है, और उम्मीद है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरोत्तम मिश्र, वी डी शर्मा जैसे कुछ नामों को अपनी अगली लिस्ट में शामिल कर लेगी। यानी ये बात तो साफ हो गई है कि भाजपा इस चुनाव को सामूहिक नेतृत्व में लड़ेगी जिसकी कमान अमित शाह के हाथों रहनी है। क्षत्रपों को संदेश साफ है कि जो अपने इलाके में पार्टी प्रत्याशियों को जिताएगा, उसकी सत्ता के सिंहासन में दावेदारी उतनी मजबूत होगी। और अगर चुनाव नहीं जीत सके तो पश्चिम बंगाल फार्मूले की मानिंद हश्र बाबुल सुप्रियो जैसा हो सकता है। यही वजह है कि मध्यप्रदेश का ये विधानसभा चुनाव नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते के लिए अग्निपरीक्षा की तरह देखा जा रहा है। इस चुनाव के नतीजे में नरेंद्र सिंह तोमर समेत तीनों केंद्रीय मंत्रियों की सियासत का भविष्य भी छिपा है।
बात जब फार्मूले की चल रही है तो चर्चा भाजपा के गुजरात फार्मूले की भी होना लाजिमी है। दरअसल गुजरात फार्मूले की ये चर्चा शुरू हुई है मध्यप्रदेश में सारे सीएम इन वेटिंग को चुनाव मैदान में उतार दिए जाने की रणनीति आजमाने के बाद। गुजरात में 27 साल के शासनकाल से उपजने वाली स्वाभाविक एंटी इनकम्बेंसी को टालने के लिए भाजपा ने ऐन चुनाव से पहले अपने सिटिंग सीएम समेत 22 मंत्रियों के टिकट काट दिए थे। मध्यप्रदेश में भी शिवराज सिंह चौहान को सत्ता चलाते 20 साल हो चुके हैं। इसलिए सियासत के जानकार एक अटकल ये भी लगा रहे हैं कि सीएम इन वेटिंग्स को चुनाव मैदान में उतारने से एक बात तो पहले ही साफ हो चुकी है कि भाजपा इस चुनाव में बिना शिवराज सिंह चौहान के चेहरे के उतरेगी और यहीं से दूसरी अटकल जन्म लेती है कि अगर शिवराज सिंह चौहान की इस चुनाव के पहले या बाद में नई भूमिका तय कर दी जाए तो हैरान नहीं होना चाहिए। क्योंकि मुख्यमंत्री बदल देने का ये फार्मूला भाजपा उत्तराखंड, त्रिपुरा से लेकर गुजरात तक आजमाती रही है।
हालांकि मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह की दमदार सियासी मौजूदगी इन अटकलों को कयासबाजी ही साबित करती है। लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी के सूत्र वाक्य को आत्मसात करके परिश्रम की परकाष्ठा के समर्पण भाव के साथ राजनीति करने वाले शिवराज सिंह चौहान की भूमिका को किसी फार्मूले के तहत खारिज कर सकना इतना आसान नहीं होगा। हालांकि भाजपा की मौजूदा राजनीति का मिजाज बताता है कि अगर वो अपने फैसले से एक बार फिर चौंका दे तो अजरज नहीं होना चाहिए।
-लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं।
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