congress on inheritance tax
बरुण सखाजी. राजनीतिक विश्लेषक
भारत में फिलवक्त टैक्स चुनावी मुद्दा नहीं है। 2017 में लागू जीएसटी का भय दिखाकर कांग्रेस 2019 का चुनाव बुरी तरह हार चुकी है। इससे यह बात सिद्ध भी होती है। अब 2024 में जब टैक्स पेयर्स की संख्या बढ़कर दोहरी से अधिक हो गई है तब भी क्या टैक्स भारत में चुनावी मुद्दा नहीं है? हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सैम पित्रोदा ने अमेरिकी कर व्यवस्था में चर्चित इनहेरीटेंस टैक्स यानि विरासत कर की जरूरत पर बल दिया। भाजपा ने इसे लपक लिया। वह इस पर भाजपा आक्रामक हो गई। जबकि वह भलीभांति जानती है, कर से जुड़े मुद्दों का जमीन पर कोई असर फिलवक्त के भारत में नहीं है।
दरअसल यह भाजपा की राजनीतिक चतुराई है। भाजपा इसके जरिए कांग्रेस के कुछेक प्रभावशाली मुद्दों को डाइल्यूट किया जा सकता है। एक तो कर व्यवस्थाएं ही जटिल होती हैं, इस पर इनहेरिटेंस टैक्स और भी कठिन है। भाजपा की चतुराई के आगे कांग्रेस को ढेर होना ही था, क्योंकि कांग्रेस में कोई भी विचार, विमर्श, चिंतन, बयान, भाषण, नीति, रीति समेकित राय से नहीं बनती। मोदी विरोध की बुनियाद पर टिकी कांग्रेस ऐसे में चुनावी रूप से हांफने लगी है।
भाजपा चाहती थी कांग्रेस की एक लाख रुपए देने की योजना तूल पकड़े इससे पहले सियासत को मोड़ देना होगा। ऐसा करना कोई गलत भी नहीं है। यह स्वाभाविक है। चतुर राजनेता ऐसा ही करते हैं। क्या भाजपा अपने इस मंसूबे में कामयाब हुई है? इसका जवाब भाजपा जानती है टैक्स को लेकर हमारी आपकी जितनी समझ है उसके हिसाब से इस टैक्स के नकारात्मक पक्ष को दिखाना ज्यादा हितकर होगा। कांग्रेस के इनहेरिटेंस टैक्स पर भाजपा ने वही किया।
अब समझना जरूरी है कि क्या इनहेरिटेंस टैक्स का सिर्फ नकारात्मक ही पक्ष है? ऐसा कहना गलत होगा। यह दो मकसदों से लाई गई व्यवस्था होती है। पहला, स्टेट रेवेन्यू में वृद्धि स्वाभाविक है, दूसरा आर्थिक पैरेलिसिस से बचने के लिए। आर्थिक पैरेलिसिस का मतलब है धन का किसी एक वर्ग, क्षेत्र में ठहर जाना। अमेरिका दुनिया में इस तरह की इकॉनॉमी के लिए सबसे सफल और स्वीकार्य मानक बना। किंतु यह देश अब बर्बादी की तरफ है। कारण साफ है, क्योंकि इसने सिर्फ अर्थतंत्र को संवारा, सजाया सामाजिक तंत्र की उपेक्षा की। भारत भी कुछ इसी नक्शे कदम पर है। जिस तरह की आर्थिक व्यवस्था की कल्पना वर्तमान सरकारें कर रही हैं, उन्हें देखें तो इनहेरिटेंस टैक्स इन सरकारों के ऑब्जेक्टिव में फिट बैठता है। कर संग्रह बढ़ाना और विभिन्न स्रोत तैयार करना ही अर्थव्यवस्था की प्राणशक्ति होती है। इनहेरिटेंस टैक्स इस तरह की प्राणशक्ति सिद्ध हो सकती है। अब चूंकि इसका इतना जिक्र हो गया है कि अगले 10 वर्ष कम से कम इसकी स्थिति नहीं बन पाएगी।
वामपंथियों की लैब से कांग्रेस के लिए निकली यह सलाह अमेरिका से कट, कॉपी, पेस्ट है। वामपंथियों के आयातित, चुराए, छिपाए, अव्यवहारिक से शब्दजालों में छिपे प्रभाव ज्यादातर कच्ची बुद्धियों को ही प्रभावित करते हैं। कांग्रेस में इस समय कच्ची बुद्धि ही लीड पुलर बना हुआ है। स्वाभाविक है वाम-संक्रमण सबसे ज्यादा इन्हीं को ग्रस रहा है। वाम-जमात का यह पुराना शगल है। नयेपन के नाम पर कुछ भी थोपने, समझाने, समझने को प्रगतिवाद समझते हैं। वह भी उग्रतापूर्ण ढंग से। कांग्रेस को राहू के समान ग्रस रहा वामवाद भाजपा को निरंकुशता की ओर धकेल रहा है। इनहेरिटेंस टैक्स पर सियासी विवाद इसी कड़ी का हिस्सा है।