8-year-old girl became a Sadhvi:सुरत : अक्सर लोग अपने जीवन में आगे क्या करना है इसको लेकर कन्फर्म नहीं होते। फिर चाहे वो कॉलेज स्टूडेंट हो या फिर युवा। अपने करियर को लेकर अक्सर लोग कंफ्यूज रहते है। लेकिन वहीं, दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी लोग है जिन्हे बचपन से पता होता है उन्हें आगे क्या करना है। ऐसी ही एक बच्ची है जिसे बचपन से पता था कि उसे संयम और आध्यात्म की तरफ आगे बढ़ना है। बता दें कि ये फैसला महज़ एक 8 साल की बच्ची ने लिया है। जिस उम्र में लोग खिलौने खेलते है। उस उम्र में देवांशी सांघवी ने सन्यासी हो गई।
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ऐश आराम छोड़ देवांशी ने लिया सन्यासी बनने का फैसला
8-year-old girl became a Sadhvi: बता दें कि देवांशी सांघवी एक करोड़पति परिवार की बेटी है। देवांशी सांघवी के पिता डायमंड व्यापारी है। जिनका नाम धनेश संघवी है जिनकी 2 बेटियां है और वह सूरत के बड़े हीरा कारोबारी में से एक है। धनेश संघवी ने कभी नहीं सोचा था कि उनकी बेटी साध्वी बनेगी। लेकिन उनकी बेटी का अक्सर पूजा पाठ में ध्यान था। लेकिन ये कभी नहीं सोचा था कि देवांशी साध्वी बनेगी।
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देवांशी की माता अमी संघवी भी धार्मिक प्रवृति की हैं
8-year-old girl became a Sadhvi: यह सुनकर आप भी हैरत में होंगे. मगर, सूरत के बड़े हीरा कारोबारी धनेश संघवी की बिटिया देवांशी संघवी दीक्षा लेकर साध्वी दिगंतप्रज्ञाश्री बन गई हैं. उन्होंने आज किर्तीयश सूरी जी महाराज के सानिध्य में अपनी गुरु साध्वी प्रिस्मीता श्रीजी से दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा लेने के बाद देवांशी संघवी को साध्वी प्रिसमीता श्रीजी ने साध्वी श्री दिंगत प्रज्ञा श्रीजी नाम दिया. देवांशी की माता अमी संघवी भी धार्मिक प्रवृति की हैं. उसी हिसाब से उन्होंने अपनी बड़ी बेटी देवांशी को धार्मिक संस्कार दिए हैं।
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संगीत, भरतनाट्यम और स्केटिंग में एक्सपर्ट हैं देवांशी
8-year-old girl became a Sadhvi: बता दें कि दीक्षा से पहले सूरत में ही देवांशी की वर्षीदान यात्रा निकाली गई थी। इसमें 4 हाथी, 20 घोड़े, 11 ऊंट थे। इससे पहले मुंबई और एंट्वर्प में भी देवांशी की वर्षीदान यात्रा निकली थी। जिसमे करीबन 35 हजार सामाजिक लोगों की मौजूदगी में देवांशी ने दीक्षा की विधि पूरी की गई। देवांशी 5 भाषाओं की जानकार है। वह संगीत, स्केटिंग, मेंटल मैथ्स और भरतनाट्यम में एक्सपर्ट है। देवांशी को वैराग्य शतक और तत्वार्थ के अध्याय जैसे महाग्रंथ कंठस्थ हैं।
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देवांशी ने भिक्षुओं के साथ 600 किमी की दूरी तय की
8-year-old girl became a Sadhvi; कार्यक्रम के आयोजकों में से एक ने कहा, “एक बड़े व्यवसाय के मालिक होने के बावजूद, परिवार एक साधारण जीवन जीता है. उन्होंने देखा है कि उनकी बेटियां सभी सांसारिक सुखों से दूर रहना चाहती हैं.”दीक्षा के लिए चुने जाने से पहले, देवांशी ने भिक्षुओं के साथ 600 किमी की दूरी तय की, और कई कठिन दिनचर्या के बाद, उन्हें अपने गुरु द्वारा संन्यास लेने की अनुमति दी गई. उन्हें जैनाचार्य कीर्तिशसूरीश्वरजी महाराज द्वारा दीक्षा दी जाएगी।
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4 महीने की उम्र में त्याग दिया था रात का खाना
8-year-old girl became a Sadhvi: अमी बेन धनेश भाई संघवी ने बताया कि देवांशी जब 25 दिन की थी तब से नवकारसी का पच्चखाण लेना शुरू किया। 4 महीने की थी तब से रात्रि भोजन का त्याग कर दिया था। 8 महीने की थी तो रोज त्रिकाल पूजन की शुरुआत की। 1 साल की हुई तब से रोजाना नवकार मंत्र का जाप किया। 2 साल 1 माह से गुरुओं से धार्मिक शिक्षा लेनी शुरू की और 4 साल 3 माह की उम्र से गुरुओं के साथ रहना शुरू कर दिया था।
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