नयी दिल्ली : Edible oil prices fall : सस्ते आयातित तेलों की वजह से जहां दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में सोमवार को मूंगफली तेल-तिलहन को छोड़कर अधिकांश तेल कीमतों में गिरावट दर्ज हुई, वहीं एनसीडीईएक्स के वायदा कारोबार में बिनौला तेल खली के दाम में आज फिर वृद्धि देखने को मिली। इससे दूध के दाम बढ़ने की आशंका पैदा हो रही है जिसकी प्रति व्यक्ति खपत खाद्य तेल के मुकाबले कई गुना अधिक है।
सूत्रों ने कहा कि आयातित तेलों के सस्ता होने की वजह से देशी तेल मिलवाले अपने खाद्य तेलों को सस्ता बेचने को मजबूर हैं और इस घाटे को खली के दाम बढ़ाकर पूरा करने की कोशिश करते हैं। इस वजह से एनसीडीईएक्स के वायदा कारोबार में बिनौला तेल खली कीमतों में पिछले कई दिनों से निरंतर वृद्धि देखने को मिली है। आज बिनौला तेल खली के अप्रैल महीने में डिलिवरी वाले वायदा अनुबंध का भाव 2,674 रुपये प्रति क्विंटल से 0.37 प्रतिशत बढ़कर 2,684 रुपये क्विंटल हो गया। तेल खली के महंगा होने के कारण पिछले कुछे महीनों में अमूल जैसी प्रमुख कंपनियों द्वारा दूध के भी दाम कई बार बढ़ाये गये हैं। ज्ञात हो कि खाद्य तेल के मुकाबले दूध की प्रति व्यक्ति खपत कई गुना अधिक है और इसमें खाद्य तेल के मुकाबले खुदरा मुद्रास्फीति पर कहीं अधिक असर डालने की क्षमता है। लेकिन कोई खाद्य तेल विशेषज्ञ या संगठन या मीडिया इस बारे में अपनी टिप्पणी सरकार को नहीं दे रहे।
Edible oil prices fall : सूत्रों ने कहा कि मवेशियों के आहार में उपयोग होने वाला तेल खल की सबसे अधिक (लगभग 110 लाख टन) प्राप्ति हमें बिनौला से होती है लेकिन सस्ते आयातित तेलों की बाढ़ के बीच बिनौला, सरसों, देशी सोयाबीन एवं सूरजमुखी बाजार में खपना दूभर हो गया है और खल की कमी हो रही है।
सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित तेलों की भरमार होने और देशी तेल-तिलहनों के नहीं खपने से तेल उद्योग के साथ-साथ देश के तिलहन उत्पादक किसान बेहद परेशान हैं। सरकार के आह्वान पर अच्छे दाम मिलने की उम्मीद में किसानों ने तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया है लेकिन उसका बाजार ही न हुआ और उनके तिलहन नहीं खपा तो उनका भरोसा टूटेगा और आगे तिलहन उत्पादन की आत्मनिर्भरता का लक्ष्य बेकार साबित होने का खतरा है।
सूत्रों ने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज में दो प्रतिशत की गिरावट है जबकि शिकॉगो एक्सचेंज में मंदी का रुख है।
सूत्रों ने कहा कि साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के कार्यकारी अध्यक्ष बी वी मेहता ने पहले तिलहन के वायदा कारोबार खोलने का पक्ष लिया था और अब उनका कहना है कि सरकार को सरसों तिलहन की अधिक से अधिक खरीद करना चाहिये। सूत्रों ने कहा कि समस्या की जड़ में आयातित खाद्य तेलों के दाम बेहद कम होने के बीच खुदरा तेल कंपनियों द्वारा निर्धारित किया जाने वाला अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) है जिससे मुद्रास्फीति बढ़ती है। इन्हीं वजहों से सरसों बाजार में खप नहीं रहा।
सूत्रों ने कहा कि एसईए जो सरसों खरीद के बारे में कह रही है उसमें बताना चाहिये कि क्या सरकार सारा का सारा सरसों खरीदेगी ? अगर खरीद का यह आंकड़ा 20-30 लाख टन का ही है तो बाकी सरसों कहां बिकेगी ?