IBC Open Window: अरुण साव की ताजपोशी के राजनीतिक मायने गहरे हैं, कांग्रेस के ग्रामीण वोटर को बिखराने के लिए अभी 3 बदलाव और होंगे |

IBC Open Window: अरुण साव की ताजपोशी के राजनीतिक मायने गहरे हैं, कांग्रेस के ग्रामीण वोटर को बिखराने के लिए अभी 3 बदलाव और होंगे

छत्तीसगढ़ के कोर वोटर आदिवासी और ओबीसी हैं। इसमें तीसरी अहम ताकत अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। ऐसे में इस तिकोने को ठीक से जमा लिया जाए तो छत्तीसगढ़ में राजनीतिक रूप से हासिलात की ओर बढ़ सकते हैं।

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:12 PM IST, Published Date : August 9, 2022/4:18 pm IST

बरुण सखाजी, (सह कार्यकारी संपादक)

छत्तीसगढ़ भाजपा ने आखिरकार सर्जरी शुरू कर दी है। इसका सीधा अर्थ यह है कि अब चुनाव के महज 13 महीने बचे हैं। ऐसे में जो कुछ भी करना होगा वह मैदान में दिखना चाहिए। अजय जामवाल की तीन दिवसीय बैठक के बाद यह फैसला महत्वपूर्ण है। क्योंकि जामवाल से पहले पुरंदेश्वरी, नितिन नवीन से लेकर हर किसी का फीडबैक यही था। छत्तीसगढ़ की सियासत को करीब से देखते हुए मेरे मन में यहां के ग्रामीण और शहरी समाज के समीकरण साफ-साफ उभरते हैं। छत्तीसगढ़ के कोर वोटर आदिवासी और ओबीसी हैं। इसमें तीसरी अहम ताकत अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। ऐसे में इस तिकोने को ठीक से जमा लिया जाए तो छत्तीसगढ़ में राजनीतिक रूप से हासिलात की ओर बढ़ सकते हैं। इन तिकोनों के बीच में जो वोटर है वह नगरीय वोटर है, जो इन तीन कैटेगरी के ऊपर है। अरुण साव का चयन इसी रणनीति के तहत किया गया है।

ग्रामीण वोटर का ध्रुवीकरण तोड़ना

फिलहाल में  कांग्रेस ने ग्रामीण वोटर को नरवा, गरुवा, घुरवा, बाड़ी, गोबर खरीदी, गौमूत्र खरीदी, किसान कर्जमाफी, धान बोनस जैसे कारगर तरीकों से अपने साथ जोड़ रखा है। इस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघले की सांस्कृतिक स्पर्श वाली छवि भाजपा की एंट्री को बाधित कर रही है। ऐसे में भाजपा सबसे पहले ग्रामीण वोटर को ध्रुवीकृत होने से रोकना चाहती है। इसके लिए जरूरी है कि ग्रामीण आबादी में सबसे ज्यादा प्रभुत्व और सांस्कृतिक रूप से पैठ वाले साहू समाज की है। इस आबादी में  नंबर-2 पर कुर्मी समाज है। चूंकि बघेल कुर्मी समाज से आते हैं, तो इस समाज में भाजपा की एंट्री ज्यादा कठिन है। ऐसे में साहू समाज भाजपा की तरफ मुड़ सकता है। 2018 से पहले यह समाज भाजपा का कोर वोटर रहा है। इसकी नाराजगी से ही 2018 की हार आई थी। इसका प्रमाण कोरबा में लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री की एक रैली से मिलता है। मोदी इसमें कहते हैं, अगर साहू लोग गुजरात में होते तो वे वहां मोदी लिख रहे होते। यानी साहू समाज से वे स्वयं जुड़ते दिखे। नतीजे के रूप में भाजपा की सबसे कमजोर सीट कोरबा में भी ज्योतिनंद दुबे जैसे अनजान चेहरे ने कड़ी टक्कर दे दी। वहीं प्रदेश की बाकी सीटों पर इसका प्रभाव देखने को मिला। अरुण साव साहू समाज से आते हैं। वे मुंगेली के एक साधारण से गांव के रहने वाले हैं। पूर्व में अतिरिक्त महाधिवक्ता रह चुके हैं। संघ में अच्छी पकड़ है। नतीजे  के रूप में उन्हें आगे भी पार्टी अच्छी और अहम भूमिकाओं में ला सकती है।

नगरीय वोटर को जोड़ना

वैसे नगरीय वोटर भाजपा के साथ दिखता है। लेकिन फिलहाल में कांग्रेस का दखल बढ़ा है। इसका प्रमाण देखिए कि रायपुर की नगरीय सीटों में सिर्फ रायपुर दक्षिण ही भाजपा के पास है। जगदलपुर, बिलासपुर, अंबिकापुर, कोरबा, रायगढ़ जैसे बड़े नगरीय क्षेत्रों की सीटें भाजपा से छिटक चुकी हैं। ऐसे में नगरीय मतदाता को भाजपा को फिर से जोड़ना होगा। भाजपा इसमें कामयाब हो सकती है, क्योंकि नगरीय मतदाता आदिवासी, साहू, कुर्मी आदि की टैगिंग से परे होकर हिंदू मुसलमान वाली नई टैगिंग से जुड़ता है। भले ही छत्तीसगढ़ में यह मुद्दा नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय घटनाओं को इसके तड़के के साथ जिस तरह से परोसा जाता है वह नगरीय मतदाता को भाजपा की ओर आसानी से झुका सकता है। इसके लिए भाजपा बृजमोहन अग्रवाल, शिवरतन शर्मा जैसे लोगों को आगे करके कर सकती है।

आगे और क्या बदलाव हो सकते हैं…

यह एक कयास ही है, किंतु जो कुछ भी दिख रहा है उससे लगता है कि यह संभव भी है। अगले कदम के रूप में नेतप्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को हटाकर अजय चंद्राकर को जिम्मेदारी देना। जिससे कुर्मी समाज को और मजबूती से साधा जा सके। धरमलाल कौशिक ने अपने ऊपर कुर्मी नेता की टैगिंग नहीं लगाई। अजय चंद्राकर इसमें थोड़े आगे हैं। दूसरा बदलाव दो कार्यकारी अध्यक्ष दिए जा सकते हैं। चूंकि अरुण साव को काम करने की आजादी के साथ ही अनुभवी लोगों की जरूरत होगी। इस लिहाज से यह संभव है। पार्टी ने 9 अगस्त आदिवासी दिवस पर यह कदम उठाया है तो माना जा सकता है कि पार्टी ने जरूर आदिवासी समाज के लिए भी कुछ सोचा होगा। दो कार्यकारी अध्यक्ष में से एक केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह हो सकती हैं या रायगढ़ सांसद गोमती साय भी बनाई जा सकती हैं। चूंकि पार्टी संसदीय टीम को आगे बढ़ाएगी। ये पार्टी की भाषा में टेस्टेड फेस हैं। दूसरा कार्यकारी अध्यक्ष सामान्य वर्ग से आ सकता है। जिसमें संतोष पांडे, शिवरतन शर्मा, बृजमोहन अग्रवाल के अलावा कोई संगठन के नेता का नाम हो सकता है। फिलहाल देखना होगा कि भाजपा दिसंबर तक सारी बिसात बिछा लेगी। हालांकि अभी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा संभवतः नहीं दिखेगा। जबकि डॉ. रमन सिंह क्रीज पर बने हुए हैं। इस अंतिम पंक्ति के मायने आप निकालते रहिए।