केंद्रपाड़ा, 22 दिसंबर (भाषा) ओडिशा के भीतरकणिका राष्ट्रीय उद्यान में खारे पानी के मगरमच्छों का संरक्षण कार्यक्रम देश में सबसे अधिक सफल रहा है। एक विशेषज्ञ ने यह बात कही।
मशहूर सरीसृप विज्ञानविद और राज्य वन विभाग के पूर्व वन्यजीव अनुसंधानकर्ता डॉ. सुधाकर कार ने बुधवार को केंद्रपाड़ा स्वायत्त महाविद्यालय के प्राणी विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित ‘भीतरकणिका में खारे पानी के मगरमच्छ और संरक्षण: एक सफलता’ विषयक एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए इस परियोजना की सफलता पर विस्तार से प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि मगरमच्छों की तीन प्रजातियों: खारे पानी या मुहाने के मगरमच्छ, मगर और घड़ियाल का प्रजनन-पालन कार्यक्रम भारत में पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं अन्य राज्यों में 34 स्थानों पर 1974 में शुरू किया गया था।
उनका कहना था कि भारत में मगरमच्छ पर वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए उसके बेतहाशा शिकार तथा पर्यावास को गंभीर क्षति पहुंचने के कारण संकटग्रस्त हो गया था । तब वन्यजीवन (संरक्षण) कानून, 1972 बना।
कार ने कहा कि 1970 के दशक में ओडिशा की नदियों में मगरमच्छ की तीनों प्रजातियां : घड़ियाल, मगर और खारे पानी का मगरमचछ विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गयी थीं।
उन्होंने कहा कि तब 1974 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने भारत सरकार के साथ मिलकर मगरमच्छ संरक्षण परियोजना शुरू की।
उन्होंने कहा कि इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य मगरमच्छों के प्राकृतिक पर्यावासों की रक्षा करना तथा खास परिवेश में प्रजनन के माध्यम से उनकी संख्या बढ़ाना था।
कार ने कहा कि वन विभाग ने 1995 में मगरमच्छ पालन कार्यक्रम बंद कर दिया क्योंकि उसकी संख्या 1974 के 96 से बढ़कर 1995 में 1000 के पार चली गयी जो एक अनुकूल स्थित थी।
उन्होंने कहा कि लेकिन हर साल वन विभाग मगरमच्छ के अंडों को एकत्र कर उनकी दंगमाल में मगरमच्छ स्फुटन एवं पालन परिसर में देखभाल करता है और जनवरी, 2022 की गणना के अनुसार अब भीतरकणिका में मगरमच्छों की संख्या बढ़कर 1784 हो गयी है।
भाषा
राजकुमार नरेश
नरेश
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