खुदाई के दौरान अयोध्या में मिले थे मंदिर से मिलते जुलते कई अवशेष, हिंदूओं के पक्ष में आ सकता है फैसला!

खुदाई के दौरान अयोध्या में मिले थे मंदिर से मिलते जुलते कई अवशेष, हिंदूओं के पक्ष में आ सकता है फैसला!

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  • Publish Date - October 18, 2019 / 10:26 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:47 PM IST

नई दिल्ली: राम मंदिर में मामले में अब फैसला अंतिम पड़ाव की ओर है। बीते दिनों दोनों सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की सुनवाई पूरी कर ली है और बस फैसले का इंतजार है। पूरा भारत सुप्रीम कोर्ट की ओर टकटकी लगाए देख रहा है कि फैसला कब और किसके पक्ष में आएगा। बता दें सुप्रीम कोर्ट ने लगातार 40 दिनों तक सभी पक्षों की दलील सुनी। इसके बाद फैसला अपने पक्ष में सुरक्षित रख लिया था। ज्ञात हो कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले को लेकर साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था। अयोध्या मामला पिछले 70 साल से चल रहा है। लेकिन आज हम कुछ ऐसे तथ्य बता रहे हैं, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला हिंदूओं के पक्ष में आ सकता है।

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दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल की जांच के लिए खुदाई करने के निर्देश दिए थे। कोर्ट के निर्देशानुसार भारतीय पुरातत्च सर्वेक्षण विभाग ने विवादित भूमि का जीपीआर सर्वे कराया था। विवादित स्थल का सर्वेक्षण और खुदाई का काम टोजो विकास इंटरनेशनल नाम की संस्था के द्वारा कराया गया था। खुदाई और सर्वेक्षण के बाद टोजो विकास इंटरनेशनल कंपनी ने पुरातत्व विभाग को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें बताया गया था कि 184 अवशेष और अन्य चीजें मिली हैं।

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पुरातत्व विभाग को सौंप गई रिपोर्ट में बताया गया था कि इमारत के ऊपर एक और विवादित इमारत (मस्जिद) 16वीं शताब्दी में बनाई गई थी। इसके अलावा यहां पर खुदाई के दौरान 50 खंभों के भी आधार मिले हैं। इसके केंद्र बिंदु के ठीक ऊपर विवादित मस्जिद के बीच का गुम्बद है। खुदाई के दौरान जमीन के निचे 15 बाई 15 का एक चबूतरा भी मिला था। साथ ही एक गड्ढा भी पाया गया था। पुरानी मान्यताओं की अगर बात करें तो भगवान को जमीन के ऊपर ही विस्थापित किए जाते थे। इस लिहाज से ऐसा माना जा सकता है कि यहां मंदिर था। हालांकि यहां अस्थायी तौर पर भगवान राम की मूर्ति रखी गई थी, जिसके चलते उस स्थान की खुदाई नहीं हो पाई।

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रिपोर्ट के अनुसार खुदाई के दौरान आस-पास के इलाकों में कई अन्य चीजें भी पाई गई थी। इन अवशेषों को देखकर अंदाज लगाया गया था कि यहां बौद्ध एवं जैन मंदिर भी थे। इसके अलावा यहां पर कुछ जानवरों की हड्डियां और अरबी में लिखा एक पत्थर भी मिला है। इन सभी चीजों के बारे में अदालत को बताया गया।

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जब एएसआई ने खुदाई की रिपोर्ट जमा कर दी उसके बाद दोनों पक्षों के वकीलों में लंबी बहस हुई। इस बहस के बाद फरवरी 2005 में जस्टिस एस आर आलम, जस्टिस खेम करन और जस्टिस भंवर सिंह ने सर्वसम्मति से 21 पन्नों का आदेश किया। इस आदेश में ये कहा गया कि संभवतः किसी अदालत ने पहली बार सिविल प्रोसीजर कोड के तहत इतने बड़े इलाके की खुदाई के जरिए जांच पड़ताल का आदेश दिया गया है। ये अपने आप में पहला मौका था।

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विवादित भूमि की खुदाई के दौरान दोनों पक्षों के वकील भी मौके पर मौजूद थे। खुदाई का काम दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों, वकीलों की मौजूदगी में हो। एएसआई की टीम में भी दोनों समुदायों के कुल 14 पुरातत्व विशेषज्ञ शामिल थे।

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खुदाई के बाद जब विस्तृत रिपोर्ट बनाई गई तो सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस 20 बिंदुओं पर अपनी आपत्ति जताई थी। वक्फ बोर्ड की ओर से कहा गया था कि खुदाई के बाद बनाए गए रिपोर्ट को सबूत के तौर पर विचार न किया जाए, उसे रद्द कर दिया जाए। वहीं, वक्फ बोर्ड की आपत्ति पर निर्मोही अखाड़ा की ओर से कहा गया था कि सीि स्थिति को रिपोर्ट में दिया गया है और अधिक जानकारी के लिए आस-पास के कुछ और हिस्सों की खुदाई करवाई जा सकती है।

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एएसआई रिपोर्ट में कहा गया कि 100 साल के इतिहास में कोर्ट कमीशन के तौर पर इस तरह के काम का उसका यह पहला अनुभव है। इसी के साथ अदालत को यह भी बताया गया कि उस इलाके की इतनी गहराई तक खुदाई हो चुकी है कि अब दोबारा खुदाई के लिए कोई नया आयोग बनाना इसके लिए व्यावहारिक नहीं होगा। अदालत का निष्कर्ष यह था कि अंतिम फैसला देते समय बाकी सबूतों के साथ ही इसके निष्कर्षों पर भी विचार किया जाएगा।

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कोर्ट के आदेशानुसार खुदाई के दौरान विवादित स्थल की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी भी होती रही। इस दौरान फैजाबाद कोर्ट के जज की भी मैके पर मौजूदगी रही। यह खुदाई 12 मार्च से 7 अगस्त तक हुई। इसके बाद एएसआई ने दो भागों में इसकी विस्तृत रिपोर्ट, फोटोग्राफ, नक्शे और स्केच भी तैयार किए। सुन्नी वक्फ बोर्ड इस पर भी राजी नहीं हुआ।

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