गोडावण पक्षी की संख्या में 1960 के दशक से गिरावट शुरू हो गई थी: केंद्र ने न्यायालय को बताया |

गोडावण पक्षी की संख्या में 1960 के दशक से गिरावट शुरू हो गई थी: केंद्र ने न्यायालय को बताया

गोडावण पक्षी की संख्या में 1960 के दशक से गिरावट शुरू हो गई थी: केंद्र ने न्यायालय को बताया

:   Modified Date:  March 19, 2024 / 08:32 PM IST, Published Date : March 19, 2024/8:32 pm IST

नयी दिल्ली, 19 मार्च (भाषा) केंद्र ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि विलुप्तप्राय पक्षी गोडावण की संख्या में गिरावट 1960 के दशक में शुरू हो गई थी और कम जन्म दर, अवैध शिकार, भोजन के लिए शिकार, पारिस्थितिक कारक और निवास स्थान नष्ट होने जैसे कारणों की वजह से यह पक्षी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है।

‘गोडावण’ (जीआईबी) पक्षी विशेष रूप से राजस्थान और गुजरात में पाया जाता है और इसकी संख्या में चिंताजनक कमी का कारण ‘ओवरहेड पावर ट्रांसमिशन लाइन’ से टकराने को माना जाता है।

जीआईबी की आंखें उनके सिर के दोनों ओर होती हैं और जब कोई तार सामने आती है तो उन्हें अपनी उड़ान की दिशा बदलने में कठिनाई होती है। ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ (आईयूसीएन) की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, यह पक्षी विलुप्त होने के कगार पर हैं और इनकी संख्या 50 से 249 के बीच है।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने केंद्र की पैरवी कर रही अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी से कहा, ‘‘इनमें से कितने पक्षी अभी जंगल में हैं और कैद में कितने पक्षी हैं?’’

भाटी ने कहा कि अनुमान के मुताबिक, दोनों जगह उनकी संख्या 150 से 200 के बीच है।

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी इस पीठ में शामिल हैं।

एएसजी ने पीठ को बताया कि शीर्ष अदालत के 19 जनवरी के आदेश के अनुसार, सरकार ने मामले में एक हलफनामा दायर किया है।

न्यायालय ने जनवरी में केंद्र सरकार से जीआईबी को बचाने के लिए ‘व्यापक’ योजना तैयार करने और साथ ही सौर ऊर्जा को लेकर भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता को भी ध्यान में रखने का निर्देश दिया था।

भाटी ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान कहा कि जीआईबी मादा पक्षी साल में केवल एक अंडा देती है और इसे भी वह जमीन पर देती है जिसके कारण अन्य जानवरों के लिए इसका शिकार आसान हो जाता है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे लिए पृष्ठभूमि को समझना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर कोई संरक्षण प्रयास करना है, तो हमें पहले यह पहचानना होगा कि इसके कारण क्या हैं।’’

उन्होंने कहा कि पारेषण लाइन से पक्षियों के टकराने की घटनाएं 2017-2018 में ही शुरू हुईं।

एएसजी ने कहा, ‘‘(उनकी संख्या में) कमी इस क्षेत्र में विद्युतीकरण और ट्रांसमिशन लाइन के निर्माण से बहुत पहले 1960 के दशक में शुरू हो गई थी।’’

पीठ ने कहा, ‘‘यदि आपको भूमिगत केबल बिछाने का काम करना हो… तो इसमें कितनी लागत लगने का अनुमान है?’’

एएसजी ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, ‘‘अभी इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता तथा एक और कठिनाई है। जमीन के नीचे केबल बिछाना तकनीकी रूप से संभव नहीं है 220 केवी से अधिक क्षमता वाली इन तारों को बिछाना खतरनाक है। इसलिए, तकनीकी रूप से भी यह संभव नहीं है।’’

पीठ ने कहा कि जीआईबी के संरक्षण की आवश्यकता को लेकर कोई संदेह नहीं है और वह यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी कर रही है कि यह प्रजाति विलुप्त न हो जाएं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले पर बुधवार को फिर सुनवाई होगी।

पीठ ने जनवरी में केंद्र से कहा था, ‘‘जीआईबी के संरक्षण की आवश्यकता और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए संचालित हो रहे सौर ऊर्जा संयंत्रों की आवश्यकता को दर्शाने वाली एक व्यापक स्थिति रिपोर्ट दाखिल की जाए…।’’

पीठ ने केंद्र से मामले के दोहरे पहलुओं (जीआईबी को बचाने और सौर ऊर्जा संयंत्र लगाये जाने) और आगे की राह पर एक व्यापक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था।

पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी एम.के. रंजीतसिंह और अन्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान की दलीलों पर ध्यान दिया था कि गोडावण विलुप्त होने के कगार पर है और अदालत के 2021 के फैसले का अनुपालन नहीं किया गया है।

भाषा सिम्मी माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)