ईटानगर, नौ अक्टूबर (भाषा) उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने संसद और राज्य विधानमंडलों में बढ़ते व्यवधान के बीच देश में जिस तरीके से कानून बनाये जा रहे हैं, उसे लेकर लोगों के बीच बढ़ती हताशा पर शनिवार को चिंता प्रकट की।
सीमावर्ती राज्य के अपने दो दिवसीय दौरे के दूसरे दिन यहां अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के एक विशेष सत्र को संबोधित करते हुए नायडू ने कहा कि लोग जन प्रतिनधियों के लिए भी वोट देते हैं क्योंकि उन्हें (लोगों को) लगता है कि वे उनकी उम्मीदों और मांगों की आवाज बनेंगे, उनके गंभीर मुद्दों का हल करने के लिए कानून बनाएंगे।
राज्यसभा के सभापति ने कहा, ‘‘लोग संसद और राज्य विधानमंडलों (की कार्यवाही) में बढ़ते व्यवधान से तथा जिस तरीके से कानून बनाए जा रहे हैं, उसे लेकर हताश हो रहे हैं। जब वे पाते हैं कि कोई गंभीर चर्चा नहीं हो रही है और कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा रहा है तो प्रणाली में उनके विश्वास का क्षरण होता है।’’
उपराष्ट्रपति ने राज्य विधानसभाओं के सदस्यों से राष्ट्र की लोकतांत्रिक परंपराओं को मजबूत करने का संकल्प लेने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, ‘‘राज्यसभा का सभापति होने के नाते, हमारे देश की संसदीय संस्थाओं के कामकाज के बारे में संक्षिप्त उल्लेख करना मेरी ओर से उपयुक्त और अपरिहार्य है। पिछले मॉनसून सत्र में राज्यसभा के सत्र के दौरान हुए घटनाक्रम लोगों के जेहन में अब भी हैं, क्योंकि कुछ सदस्यों ने सदन में ससंदीय कागजातों को फाड़ कर हवा में उछाल दिया था और इसके अलावा वे सदन में मेज पर चढ़ गये थे।’’
उन्होंने कहा कि इस तरह के अशिष्ट व्यवहार कुछ राज्य विधानमंडलों में भी देखने को मिले और यह प्रवृत्ति जारी नहीं रहनी चाहिए।
नायडू ने कहा, ‘‘हमें अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी संसद और राज्य विधानसभाएं नये भारत को आकार देने के लिए प्रभावी माध्यम बनें, जिसका हम सभी सपना देख रहे हैं। हमारा लोकतंत्र सबसे पुराना है और सबसे बड़ा है।’’
अरुणाचल प्रदेश विधानसभा में सिर्फ चार महिला सदस्य होने का जिक्र करते हुए नायडू ने कहा कि क्षेत्र की आठ विधानसभाओं में कुल 498 सदस्यों में से केवल 20 महिलाएं हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘कानून बनाने में कहीं अधिक संख्या में महिला सदस्यों को शामिल करने की जरूरत है, न सिर्फ इस क्षेत्र में बल्कि अन्य विधानमंडलों और संसद में भी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘संसद में 30 से अधिक पार्टियों के प्रतिनिधि हैं जिनमें इस क्षेत्र से भी हैं।’’
भाषा
सुभाष दिलीप
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