उच्च न्यायालय ने अनधिकृत निर्माण रोकने में अधिकारियों की ‘विफलता’ को लेकर नाराजगी जताई |

उच्च न्यायालय ने अनधिकृत निर्माण रोकने में अधिकारियों की ‘विफलता’ को लेकर नाराजगी जताई

उच्च न्यायालय ने अनधिकृत निर्माण रोकने में अधिकारियों की ‘विफलता’ को लेकर नाराजगी जताई

:   Modified Date:  February 8, 2024 / 08:03 PM IST, Published Date : February 8, 2024/8:03 pm IST

नयी दिल्ली, आठ फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने अनधिकृत निर्माण को रोकने में कई प्राधिकरणों की ‘विफलता’ को लेकर बृहस्पतिवार को नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि इससे शहर में ‘‘पूर्ण अराजकता’’ फैल जाएगी और पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पी. एस. अरोड़ा की पीठ ने कहा कि केंद्र संरक्षित स्मारकों निजामुद्दीन की बावली और बाराखंभा मकबरे के पास अनधिकृत निर्माण को रोकने में अधिकारियों की विफलता ने अदालत को ‘‘स्तब्ध’’ कर दिया है।

अदालत ने मामले में सीबीआई जांच का आदेश देने का संकेत देते हुए कहा कि किसी भी संस्था या प्राधिकरण का इस्तेमाल अवैध कृत्य करने के लिए नहीं किया जा सकता।

पीठ ने कहा, ‘‘एक बार जब हम जांच को केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित कर देंगे, तो दिल्ली पुलिस की भूमिका की भी पड़ताल की जाएगी। सबकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। यह कई एजेंसियों की विफलता है।’’

इसने कहा कि यदि इसकी अनुमति दी गई तो शहर में पूरी तरह से अराजकता फैल जाएगी और सबकुछ ध्वस्त हो जाएगा और यह समाज के लिए अच्छी बात नहीं है।

अदालत एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) जामिया अरबिया निजामिया वेलफेयर एजुकेशन सोसाइटी की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उक्त याचिका में दावा किया गया था कि बावली गेट के पास खसरा संख्या 556 जियारत गेस्टहाउस, पुलिस बूथ के पास हजरत निजामुद्दीन दरगाह’’ पर अवैध और अनधिकृत निर्माण’ किया जा रहा है।

इसने कहा कि न तो दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) और न ही दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने अनधिकृत निर्माण के खिलाफ कार्रवाई की है।

पीठ ने पूछा कि जब संपत्ति पहले ही सील कर दी गई थी, तो तीन मंजिलों पर निर्माण कैसे किया जा सकता है। पीठ ने कहा, ‘इसलिए हम जांच के लिए सीबीआई को लाना चाहते हैं। हम किसी को अनावश्यक रूप से परेशान नहीं करना चाहते हैं।’’

अदालत ने मामले को 13 फरवरी को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

उच्च न्यायालय ने इससे पहले कहा था कि सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण डकैती के समान है और एमसीडी से निगरानी बनाए रखने के लिए ड्रोन और उपग्रह छवियों जैसी तकनीक का उपयोग करना चाहिए।

पीठ ने कहा था कि अधिकारियों द्वारा ‘कर्तव्य निर्वहन में गंभीर चूक’ की गई जिन्होंने पुलिस और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से सूचना के बावजूद जमीन पर काम नहीं किया।

भाषा

देवेंद्र नेत्रपाल

नेत्रपाल

 

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