न्याय मित्र ने न्यायालय से कहा, शारीरिक साक्षरता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता मिले |

न्याय मित्र ने न्यायालय से कहा, शारीरिक साक्षरता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता मिले

न्याय मित्र ने न्यायालय से कहा, शारीरिक साक्षरता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता मिले

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:51 PM IST, Published Date : March 18, 2022/12:53 am IST

नयी दिल्ली, 17 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय के समक्ष बृहस्पतिवार को सौंपी गयी रिपोर्ट में कहा गया है कि शारीरिक साक्षरता को मौलिक अधिकार के तौर पर मान्यता दी जानी चाहिए और सीबीएसई व आईसीएसई सहित सभी शिक्षा बोर्ड को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देना चाहिए कि सभी स्कूल कम से कम 90 मिनट का समय ‘‘मुक्त खेल’ के लिए समर्पित करें।

यह रिपोर्ट वरिष्ठ अधिवक्ता और उच्चतम न्यायालय द्वारा बतौर न्यायमित्र नियुक्त गोपाल शंकर नारायणन ने एक जनहित याचिका के संदर्भ में सौंपी है जिसमें केंद्र और सभी राज्यों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि वे खेल को मौलिक अधिकार का हिस्सा बनाएं और देश में खेल शिक्षा को प्रोत्साहन सुनिश्चित करें।

शीर्ष अदालत ने अगस्त 2018 में खेल शोधकर्ता कनिष्क पांडेय की जनहित याचिका पर केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किये थे और बाद में सहायता के लिए शंकरनारायणन को न्याय मित्र नियुक्त किया था और इस मामले से निपटने के लिए सुझाव मांगे थे।

न्यायमित्र ने विस्तृत रिपोर्ट में संवैधानिक सिद्धांत और खेल के पहलुओं पर विचार किया है और अनुपालन योग्य निर्देश दिए हैं।

उनके सुझावों में एक है, ‘‘शारीरिक शिक्षा को संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा) के तहत मौलिक अधिकार के तौर पर मान्यता दी जाए।’’

इस रिपोर्ट को तैयार करने में वंशदीप डालमिया ने सहयोग किया है और उन्होंने भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद सहित विभिन्न विशेषज्ञों से चर्चा की है।

भाषा

धीरज सुरेश

सुरेश

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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)