विधायिका, कार्यपालिका को स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व के अनुशीलन को सक्षम बनाना चाहिए: सीजेआई |

विधायिका, कार्यपालिका को स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व के अनुशीलन को सक्षम बनाना चाहिए: सीजेआई

विधायिका, कार्यपालिका को स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व के अनुशीलन को सक्षम बनाना चाहिए: सीजेआई

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:08 PM IST, Published Date : November 26, 2022/9:50 pm IST

नयी दिल्ली, 26 नवंबर (भाषा) भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि विधायिका और कार्यपालिका को स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लोकतांत्रिक आदर्शों के अनुशीलन को सक्षम बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालतें इन मूल्यों को अपने न्यायिक फैसलों में “प्रमुखता देकर” बरकरार रखती हैं।

सीजेआई ने यहां उच्चतम न्यायालय परिसर में संविधान दिवस समारोह के समापन भाषण में कहा, ‘संविधान अपने नागरिकों को उनके अधिकारों और उनकी संस्कृति के बीच चयन करने के लिए बाध्य नहीं करता है, बल्कि एक लोकतांत्रिक समाज के लक्ष्य की ओर अपनी यात्रा में धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं को शामिल करता है।’

उन्होंने कहा कि भारत के लोगों को एक दूसरे के साथ बातचीत के दौरान स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लोकतांत्रिक आदर्शों का पालन करते हुए संविधान में जान फूंकनी चाहिए।

कुछ उपलब्धियों और भविष्य की परियोजनाओं का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान का जश्न मनाने का कोई और बेहतर तरीका नहीं हो सकता कि हम अपने जीवन में हर दिन इसके आदर्शों पर अमल करें और स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व के आदर्श का अनुशीलन करें।

उन्होंने शीर्ष अदालत में पारदर्शी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए एक ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल का हाल ही में उद्घाटन किये जाने का हवाला देते हुए कहा कि ‘ई-सेवा केंद्र’ हर जिले में स्थापित किए जा रहे हैं, ताकि प्रत्येक नागरिक कानूनी प्रणाली और कानून के माध्यम से अपनी यात्रा को आसान बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सके।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड कानूनी पेशे को और अधिक सुलभ बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

सीजेआई ने कहा, ‘‘जल्द ही उच्चतम न्यायालय में दिव्यांग व्यक्तियों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए अदालत परिसर का ऑडिट किया जाएगा। अब से ठीक एक साल बाद जब मैं आपके सामने खड़ा होऊंगा, तो मैं आशा करता हूं कि मेरे पास न्याय करने वाले उपक्रमों की एक नयी सूची हो सकती है, जिससे आम नागरिक को न्याय सर्वसुलभ हो।’’

उन्होंने विभिन्न उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के साथ विचार-विमर्श को फलदायी करार देते हुए कहा, ‘न्यायिक बुनियादी ढांचे, न्यायिक सुधारों और अदालत तथा केस प्रबंधन पर आज के सत्र भी इस मिशन में उपयोगी साबित होंगे।’

भारतीय संविधान को ‘अद्वितीय’ करार देते हुए, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि यह उन कुछ उत्तर-औपनिवेशिक संविधानों में से एक है, जो लंदन के बकिंघम पैलेस के पास लैंकेस्टर हाउस में नहीं लिखा गया था। साथ ही यह न केवल पिछले दशक के दौरान ‘दृढ़’ बना रहा, बल्कि ‘‘उन्नति भी की है और फला-फूला’’ भी है।’

उन्होंने कहा, ‘भारत ने निस्संदेह एक मजबूत संवैधानिक संस्कृति विकसित की है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हासिल करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है।’

उन्होंने कहा कि कानून की तरह संवैधानिक मूल्यों का भी पालन किया जाता है। उन्होंने कहा, ‘संवैधानिक मूल्यों का अनुशीलन एक सतत प्रक्रिया है, जो समाज के विकास के रूप में विकसित होती है।’

भाषा सुरेश माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

Flowers