नयी दिल्ली, एक मई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि निर्दिष्ट अपराध में आरोपी के बरी होने के बाद धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत संपत्तियों की कुर्की सहित कोई भी कार्यवाही जारी नहीं रह सकती, भले ही इसमें कोई अपील लंबित क्यों न हो।
अदालत ने बुधवार को जारी एक फैसले में कहा कि निर्दिष्ट आपराधिक मामले में बरी किए जाने के खिलाफ महज अपील दायर करने का मतलब यह नहीं होगा कि आरोपी के खिलाफ पीएमएलए के तहत आपराधिक कार्यवाही या कुर्की जैसी कठोर कार्रवाई जारी रहेगी।
अदालत का यह आदेश प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत अधिसूचित अपराधों से बरी किए जाने के बाद पीएमएलए के तहत आरोपों से आरोपियों को मुक्त करने के निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील पर पारित किया गया था।
निचली अदालत ने आरोपमुक्त करने के बाद आरोपी की सभी अचल संपत्तियों को भी मुक्त कर दिया और उसके सभी बैंक खातों से लेनदेन पर लगी रोक को हटाने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति विकास महाजन ने जांच एजेंसी की यह दलील खारिज कर दी कि चूंकि बरी किए जाने के खिलाफ अपील संबंधित उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है, इसलिए अंतिम निर्णय जैसी कोई बात नहीं है और इसलिए कुर्क की गई संपत्तियां जारी नहीं की जा सकतीं।
उच्च न्यायालय ने माना कि निचली अदालत ने अधिसूचित अपराध में बरी आरोपी व्यक्तियों को आरोपमुक्त करके सही निर्णय लिया है। न्यायाधीश ने कहा कि अधिसूचित अपराध और इसके माध्यम से अर्जित अपराध की आय ही अपराध की नींव है और एक बार जब यह नींव खत्म हो जाती है तो धनशोधन का आरोप नहीं बचेगा।
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अदालत ने कहा, ‘‘दूसरे शब्दों में, जब तक किसी अपील में बरी किए गए अपराध के फैसले को पलट नहीं दिया जाता, तब तक बरी किए जाने के सभी प्रभाव लागू रहेंगे और केवल एक निर्दिष्ट अपराध में बरी किए जाने के खिलाफ अपील दायर करने का मतलब यह नहीं होगा कि प्रतिवादियों को पीएमएलए के तहत आपराधिक कार्यवाही या कुर्की जैसी कठोर कार्रवाई का खामियाजा भुगतना पड़ेगा।’’
अदालत ने आगे कहा कि ईडी की इस दलील में कोई दम नहीं है कि अपील निचली अदालत के समक्ष कार्यवाही की निरंतरता का द्योतक थी। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि मुकदमा उस वक्त समाप्त हो जाता है जब आरोपी को बरी कर दिया जाता है।
भाषा सुरेश माधव
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