पोनमुडी मुद्दे पर द्रमुक ने कहा : रवि राज्यपाल के पद पर बने रहने के योग्य नहीं |

पोनमुडी मुद्दे पर द्रमुक ने कहा : रवि राज्यपाल के पद पर बने रहने के योग्य नहीं

पोनमुडी मुद्दे पर द्रमुक ने कहा : रवि राज्यपाल के पद पर बने रहने के योग्य नहीं

:   Modified Date:  March 18, 2024 / 04:25 PM IST, Published Date : March 18, 2024/4:25 pm IST

चेन्नई, 18 मार्च (भाषा) तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि द्वारा द्रमुक के वरिष्ठ नेता एवं विधायक के. पोनमुडी को राज्य मंत्री के रूप में फिर से नियुक्त करने के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के अनुरोध को अस्वीकार किए जाने के बाद सत्तारूढ़ दल ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि यह कदम यह संविधान का उल्लंघन है और रवि पद पर बने रहने के योग्य नहीं हैं।

साथ ही द्रमुक ने मांग की कि राष्ट्रपति रवि को वापस बुला लें।

स्टालिन ने गत 13 मार्च को रवि को पत्र लिखकर, संपत्ति मामले में मंत्री को मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा सुनायी गई सजा को उच्चतम न्यायालय द्वारा निलंबित किए जाने के बाद पोनमुडी को मंत्रिमंडल में फिर से शामिल करने की सिफारिश की थी।

इस बीच, उच्चतम न्यायालय तमिलनाडु मंत्रिमंडल में वरिष्ठ द्रमुक नेता के. पोनमुडी को मंत्री नियुक्त करने से राज्यपाल आर एन रवि के इनकार के खिलाफ राज्य सरकार की एक याचिका पर सुनवाई करने के लिए सोमवार को राजी हो गया।

द्रमुक के राज्यसभा सदस्य एवं वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने कहा कि राज्यपाल ”संविधान का बिल्कुल भी सम्मान नहीं कर रहे हैं और बार-बार उल्लंघन कर रहे हैं।’’

तमिलनाडु विधानसभा ने आधिकारिक तौर पर घोषणा की कि अयोग्यता लागू नहीं होगी और निर्वाचन आयोग ने पोनमुडी के निर्वाचन क्षेत्र तिरुकोयिलुर की रिक्ति पर अधिसूचना वापस ले ली।

विल्सन ने कहा कि राज्यपाल रवि ने उच्चतम न्यायालय के आदेश की अपनी व्याख्या देते हुए कहा है कि दोषसिद्धि को केवल ‘निलंबित किया गया है, रद्द नहीं किया गया है।’’ विल्सन ने कहा कि यह एक बेतुकी व्याख्या है और उच्चतम न्यायालय के आदेश का अपमान है।

वरिष्ठ वकील ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘जब वह जानबूझकर उच्चतम न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करने, संवैधानिक प्रावधानों का अपमान करने और कानून के शासन की अनदेखी करने के स्तर तक गिर गए हैं, तो वह अब पद पर बने रहने के लायक नहीं हैं।’

उन्होंने कहा कि जब उच्च न्यायालय के दोषसिद्धि आदेश को शीर्ष अदालत द्वारा ‘निलंबित’ कर दिया जाता है, तो इसका मतलब है कि आदेश कानून की नजर में अस्तित्वहीन है। विल्सन ने कहा, ‘राज्यपाल द्वारा दी गई यह व्याख्या केवल कानून की अनदेखी नहीं, बल्कि उच्चतम न्यायालय के आदेश का जानबूझकर और अनियंत्रित उल्लंघन है, जिसके लिए राज्यपाल पर अवमानना का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।’

विल्सन ने कहा कि राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 142 और 144 के तहत उच्चतम न्यायालय के आदेशों से बंधे हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, पोनमुडी को उच्च शिक्षा मंत्री नियुक्त करने के मुख्यमंत्री के अनुरोध को मानने से इनकार करना ‘कानून के शासन को नष्ट करना और संविधान के अनुच्छेद 164(1) का उल्लंघन है।’

उन्होंने कहा कि राज्यपाल का कदम स्पष्ट रूप से न्यायालय की अवमानना है क्योंकि न्यायालय ने दोषसिद्धि को केवल इस कारण से निलंबित कर दिया है कि यह अयोग्यता के रूप में कार्य नहीं करना चाहिए।

विल्सन ने कहा कि यह अब अच्छी तरह से स्थापित व्यवस्था है कि राज्यपाल नैतिक आधार पर या किसी अन्य आधार पर यह निर्णय नहीं ले सकता कि मंत्री कौन होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘इसका एकमात्र विशेषाधिकार मुख्यमंत्री के पास है।’ उन्होंने राष्ट्रपति से रवि को वापस बुलाने की मांग की।

राज्यसभा सदस्य विल्सन ने कहा कि राज्यपाल का सरकार के साथ टकराव हैरान करने वाला नहीं है क्योंकि वह भारतीय जनता पार्टी की तमिलनाडु इकाई के ‘अघोषित अध्यक्ष’ की तरह काम कर रहे हैं और मीडिया का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं लेकिन उन्होंने वर्तमान में जो किया, वह संविधान का उल्लंघन और अदालत की अवमानना है।

उन्होंने मांग की कि राष्ट्रपति रवि को वापस बुला लें।

भाषा अमित नरेश मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)