नयी दिल्ली, 30 जून (भाषा) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा ने बृहस्पतिवार को ‘अहिंसा’ और अन्य मानवीय गुणों की बात करने वाले भारत के प्राचीन ज्ञान की प्रशंसा की और कहा कि ‘अधिकार’ का अर्थ अनिवार्य रूप से “शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व” है और किसी को भी इसका कोई अधिकार नहीं है कि वह किसी की हत्या कर दे या अपनी भूख मिटाने के लिए किसी और की रोटी छीन ले।
‘भारतीय संस्कृति और दर्शन में मानवाधिकार’ पर एक सम्मेलन के हिस्से के रूप में यहां आयोजित एक तकनीकी सत्र में अपने संबोधन में उन्होंने यह भी कहा कि बौद्ध धर्म के माध्यम से ‘अहिंसा’ दुनिया के लिए “भारत की ओर से एक उपहार” है।
उनकी टिप्पणी उदयपुर में दो लोगों द्वारा एक दर्जी की नृशंस हत्या की पृष्ठभूमि में आई है, जिन्होंने ऑनलाइन वीडियो पोस्ट कर दावा किया था कि वे इस्लाम के अपमान का बदला ले रहे थे।
दो दिवसीय कार्यक्रम की मेजबानी एनएचआरसी द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के सहयोग से की जा रही है।
मिश्रा ने कहा, “हमारे शास्त्रों, वेदों, पुराणों, महाभारत, हमारे महापुरुषों की शिक्षा में इस्तेमाल किए गए शब्दों… अहिंसा की बात की गई है।’
एनएचआरसी प्रमुख ने फिर महात्मा गांधी, राजा राममोहन रॉय, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, दयानंद सरस्वती का हवाला दिया और कहा, इस संदर्भ में “हमें अकबर को भी याद करना होगा”।
उन्होंने कहा, “गांधी, पटेल ‘अहिंसा’ के साथ रहते थे, यह जैन धर्म और बौद्ध धर्म में भी पढ़ाया जाता है। सैंतालीस देशों ने बौद्ध धर्म अपनाया है, यह भारत की ओर से उपहार है – ‘अहिंसा’। अशोक ने बौद्ध धर्म से क्या ग्रहण किया – ‘अहिंसा’… हमने पूरी दुनिया को जो दिया है, उसकी आज चर्चा हो रही है..भारतीय संस्कृति, हम भूले नहीं हैं, यह हमारे खून में है।”
फिर उन्होंने ‘अधिकार’ और ‘दायित्व’ की बात की, जैसा कि भारतीय ग्रंथों में कहा गया है।
एनएचआरसी प्रमुख ने कहा, “अधिकार शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व है। किसी को भी किसी की हत्या करने या अपनी भूख मिटाने या प्यास बुझाने के लिए किसी और की रोटी छीनने का कोई अधिकार नहीं है।’
उन्होंने भूमि को ‘भू देवी’ और गंगा नदी के ‘गंगा मां’ के रूप में पूजनीय होने की बात कही और अफसोस जताया कि समाज वहां भी “अपने दायित्वों को भूल रहा है”।
एनएचआरसी प्रमुख ने रेखांकित किया कि भूमि की उपजाऊ प्रकृति को रसायनों और उर्वरकों के उपयोग के माध्यम से “नष्ट” किया जा रहा है क्योंकि वे कुछ ही फसलों को फायदा पहुंचाते हैं और बाद में इसे “अनुत्पादक” बना देते हैं।
भाषा
प्रशांत नरेश
नरेश
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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