बंगाल में लोकसभा चुनाव में राजनीतिक परिवारों के उभार से सियासी परिदृश्य बदला |

बंगाल में लोकसभा चुनाव में राजनीतिक परिवारों के उभार से सियासी परिदृश्य बदला

बंगाल में लोकसभा चुनाव में राजनीतिक परिवारों के उभार से सियासी परिदृश्य बदला

:   Modified Date:  April 21, 2024 / 09:16 PM IST, Published Date : April 21, 2024/9:16 pm IST

(प्रदीप्त तापदार)

कोलकाता, 21 अप्रैल (भाषा) भारतीय लोकतंत्र में पारिवारिक राजनीति एक प्रमुख विशेषता रही है, लेकिन पश्चिम बंगाल में इस लोकसभा चुनाव में इसके बढ़ने से जमीनी स्तर से नेताओं के उभरने की राज्य की परंपरा पीछे छूट गई है।

पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीट में से 13 पर राजनीतिक परिवारों से संबंध रखने वाले व्यक्ति उम्मीदवार हैं। यह पिछले चुनावों की तुलना में महत्वपूर्ण वृद्धि को दर्शाता है, जब वंशवाद की राजनीति महज तीन सीट तक सीमित हुआ करती थी।

पारंपरिक रूप से छात्र राजनीति के लिए मशहूर बंगाल में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखा जा रहा है, क्योंकि प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों का दबदबा बढ़ रहा है।

सामाजिक विज्ञान अध्ययन केंद्र में राजनीतिविद मोईद-उल-इस्लाम ने ‘पीटीआई-भाषा’ को कहा, “यह वर्ग-आधारित राजनीति से वंशवाद की सियासत की ओर जाने का एक नया चलन या घटनाक्रम है। चुनावों में कभी भी इतने सारे उम्मीदवार राजनीतिक परिवारों से नहीं आए हैं।”

उन्होंने कहा कि बंगाल में जहां राजनीति जननेताओं के करिश्मे, पार्टी चिह्नों और मुद्दों से तय होती है, ‘यह देखना दिलचस्प है कि लोग इन राजनीतिक परिवारों को कैसे स्वीकार करते हैं।’

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने राजनीतिक परिवारों से संबंध रखने वाले पांच और कांग्रेस ने चार नेताओं को उम्मीदवार बनाया है। वहीं वंशवाद की राजनीति की आलोचना करने वाले दो दलों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने ऐसे दो-दो नेताओं को टिकट दिया है।

टीएमसी, भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के अनुसार बंगाल में वंशवादी राजनीति के उभार के कई कारक हैं।

उन्होंने कहा कि परिवार के सदस्यों को उनकी वफादारी और भरोसे के लिए महत्व दिया जाता है।

तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘राजनीति में स्थापित पारिवारिक नेताओं की सफलता का श्रेय दो मुख्य कारकों को दिया जाता है- नाम से पहचान और नेटवर्किंग, जिनसे उनके लिए चुनावी समर्थन हासिल करना आसान हो जाता है।’

पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव, डायमंड हार्बर से दो बार के सांसद और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक परिवार से जुड़े नेताओं की सूची में सबसे ऊपर हैं। वह इस सीट से दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं।

कांथी लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार सौमेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर के प्रशावशाली अधिकारी परिवार से संबंध रखते हैं। सौमेंदु के पिता शिशिर अधिकारी इस सीट से तीन बार सांसद रहे हैं, और भाई शुभेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं।

मालदा दक्षिण सीट पर, कांग्रेस ने पार्टी के कद्दावर नेता एबीए गनी खान चौधरी के भाई अबू हाशिम खान चौधरी की जगह उनके बेटे ईसा खान चौधरी को टिकट दिया है। अस्वस्थ होने के कारण इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हाशिम 2006 के उपचुनाव के बाद से लगातार इस सीट पर जीत हासिल कर चुके हैं, जबकि ईसा खान कांग्रेस के पूर्व विधायक हैं।

दक्षिण कोलकाता से माकपा की उम्मीदवार शरिया शाह हलीम भी एक राजनीतिक परिवार से हैं। उनके ससुर, हाशिम अब्दुल हलीम सबसे लंबे समय तक पश्चिम बंगाल विधानसभा अध्यक्ष रहे थे, जबकि पति फवाद हलीम माकपा की राज्य समिति के सदस्य हैं।

तृणमूल नेता शांतनु सेन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘यदि एक डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनने की इच्छा रखता है और एक वकील का बेटा वकील, तो राजनेताओं के बच्चों या रिश्तेदारों के उनके नक्शेकदम पर चलने में क्या गलत है? यह केवल तभी गलत हो सकता है जब पात्रता मानदंडों से समझौता किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सत्ता किसी परिवार की मुट्ठी में हो जाती है।”

तृणमूल ने उलुबेरिया से अपनी मौजूदा सांसद और पूर्व सांसद सुल्तान अहमद की पत्नी साजदा अहमद को मैदान में उतारा है। पार्टी ने जयनगर से एक बार फिर प्रतिमा मंडल को टिकट दिया है, जो पार्टी के पूर्व सांसद गोबिंद चंद्र नस्कर की बेटी हैं।

बर्धमान-दुर्गापुर सीट से पार्टी ने पूर्व क्रिकेटर और बिहार से भाजपा के सांसद रह चुके कीर्ति आजाद को मैदान में उतारा है। वह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के बेटे हैं।

प्रदेश कांग्रेस ने पुरुलिया से पूर्व सांसद देबेंद्र महतो के बेटे नेपाल महतो और जंगीपुर सीट से पूर्व मंत्री अब्दुस सत्तार के पोते मुर्तजा हुसैन को चुनावी मैदान में उतारा है।

रायगंज से कांग्रेस उम्मीदवार अली इमरान रमज फॉरवर्ड ब्लॉक के दिग्गज नेता मोहम्मद रमजान अली के बेटे और वाम मोर्चा सरकार में मंत्री रहे हाफिज आलम सैरानी के भतीजे हैं।

अली इमरान ने कहा, ‘यह सिर्फ मेरे परिवार के कारण नहीं है; मैं भी यहां विधायक रहा हूं और पिछले 15 वर्षों से लोगों की सेवा की है।’

बनगांव सीट से भाजपा उम्मीदवार शांतनु ठाकुर मतुआ-ठाकुरबाड़ी परिवार से आते हैं। उनके पिता मंजुल कृष्ण ठाकुर तृणमूल सरकार में मंत्री रह चुके हैं और चाची ममता बाला ठाकुर पार्टी सांसद हैं।

श्रीरामपुर से माकपा की उम्मीदवार दिप्सिता धर तीन बार विधायक रह चुकीं पद्म निधि धर की पोती हैं।

भाजपा और माकपा ने राजनीतिक परिवार वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा, ‘उनकी उम्मीदवारी का उनके परिवारों से कोई लेना-देना नहीं है।’

माकपा नेता सुजन चक्रवर्ती ने कहा, ‘शरिया शाह हलीम और दिप्सिता धर दोनों अच्छी नेता और वक्ता हैं। इसका वंशवाद से कोई लेना-देना नहीं है।’

पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रवक्ता सामिक भट्टाचार्य ने कहा कि पार्टी वंशवाद की राजनीति के खिलाफ मुखर रही है, लेकिन ठाकुर और सौमेंदु अधिकारी दोनों जाने-माने नेता हैं।

भले ही बंगाल की राजनीति में वंशवाद स्वतंत्रता-पूर्व युग से ही प्रचलित रहा है, लेकिन स्वतंत्रता के बाद, विशेष रूप से पचास के दशक के बाद से, अगली पीढी़ के नेता छात्र राजनीति से निकले।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, वाम मोर्चा के अध्यक्ष बिमान बोस, कांग्रेस नेता सोमेन मित्रा और प्रिय रंजन दासमुंशी छात्र राजनीति से निकले।

राजनीतिविद विश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा कि विश्वविद्यालयों से उभरने वाले नेताओं की कमी के कारण वंशवाद की राजनीति का चलन जोर पकड़ेगा।

उन्होंने कहा, “पहले, कॉलेज और विश्वविद्यालय से अगली पीढ़ी के राजनेता निकला करते थे। लेकिन प्रेसीडेंसी कॉलेज और जादवपुर विश्वविद्यालय को छोड़कर, पिछले पांच वर्षों में किसी भी विश्वविद्यालय और कॉलेज में छात्र निकाय चुनाव नहीं हुए। इसलिए नेताओं की शायद ही कोई नयी पौध आए।”

भाषा

खारी जोहेब सुरेश

सुरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)