वैज्ञानिकों ने ओडिशा के ‘काले बाघों’ के रहस्य से उठाया पर्दा |

वैज्ञानिकों ने ओडिशा के ‘काले बाघों’ के रहस्य से उठाया पर्दा

वैज्ञानिकों ने ओडिशा के ‘काले बाघों’ के रहस्य से उठाया पर्दा

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:18 PM IST, Published Date : September 15, 2021/1:14 pm IST

नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा) ओडिशा के सिमलिपाल में ‘‘काले बाघों’’ के पीछे के रहस्य से पर्दा उठ सकता है। अनुसंधानकर्ताओं ने एक जीन में ऐसे परिवर्तन की पहचान की है जिससे उनके शरीर पर विशिष्ट धारियां चौड़ी हो जाती हैं और पीले रंग की खाल तक फैल जाती है जिससे कई बार वे पूरी तरह काले नजर आते हैं।

सदियों से पौराणिक माने जाने वाले ‘काले बाघ’ लंबे समय से आकर्षण का केंद्र रहे हैं। राष्ट्रीय जीव विज्ञान केंद्र (एनसीबीएस) में परिस्थिति वैज्ञानिक उमा रामकृष्णन और उनके छात्र विनय सागर, बेंगलूरू ने बाघ की खाल के रंगों और प्रवृत्तियों का पता लगाया है जिससे ट्रांसमेम्ब्रेन एमिनोपेप्टाइड्स क्यू (टैक्पेप) नामक जीन में एक परिवर्तन से बाघ काला नजर आता है।

एनसीबीएस में प्रोफेसर रामकृष्णन ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘इस फेनोटाइप के लिए जीन के आधार का पता लगाने का यह हमारा पहला और इकलौता अध्ययन है। चूंकि फेनोटाइप के बारे में पहले भी बात की गयी और लिखा गया है तो यह पहली बार है जब उसके जीन के आधार की वैज्ञानिक रूप से जांच की गयी है।

अनुसंधानकर्ताओं ने यह दिखाने के लिए भारत की अन्य बाघ आबादी की जीन का विश्लेषण और कम्प्यूटर अनुरूपण के आंकड़े एकत्रित किए कि सिमलीपाल के काले बाघ बाघों की बहुत कम आबादी से बढ़ सकते हैं और ये जन्मजात होते हैं जिससे लंबे समय से उनके रहस्य पर से पर्दा उठ सकता है।

पत्रिका ‘‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज’’ में सोमवार को प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि सिमलीपाल बाघ अभयारण्य में बाघ पूर्वी भारत में एक अलग आबादी है और उनके तथा अन्य बाघों के बीच जीन का प्रवाह बहुत सीमित है।

रामकृष्णन की प्रयोगशाला में पीएचडी के छात्र और शोधपत्र के मुख्य लेखक सागर ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमारी जानकारी के मुताबिक काले बाघ दुनिया के किसी अन्य स्थान पर नहीं पाए जाते। दुनिया में कही भी नहीं।’’

ऐसे बाघों में असामान्य रूप से काले रंग को स्यूडोमेलेनिस्टिक या मिथ्या रंग कहा जाता है। सिमलीपाल में बाघ के इस दुर्लभ परिवर्तन को लंबे समय से पौराणिक माना जाता है। हाल फिलहाल में ये 2017 और 2018 में देखे गए थे।

बाघों की 2018 की गणना के अनुसार, भारत में अनुमानित रूप से 2,967 बाघ हैं। सिमलीपाल में 2018 में ली गयी तस्वीरों में आठ विशिष्ट बाघ देखे गए जिनमें से तीन ‘स्यूडोमेलेनिस्टिक’ बाघ थे।

अनुसंधानकर्ताओं ने यह समझने के लिए भी जांच की कि अकेले सिमलीपाल में ही बाघों की त्वचा के रंग में यह परिवर्तन क्यों होता है।

एक अवधारणा है कि उत्परिवर्ती जीव की गहरे रंग की त्वचा उन्हें घने क्षेत्र में शिकार के वक्त फायदा पहुंचाती है और बाघों के निवास के अन्य स्थानों की तुलना में सिमलीपाल में गहरे वनाच्छादित क्षेत्र में हैं।

इस अध्ययन में अमेरिका में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, हडसनअल्फा इंस्टीट्यूट फॉर बायोटेक्नोलॉजी, भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, तिरुपति, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद, हैदराबाद और भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के वैज्ञानिक भी शामिल थे।

भाषा गोला शाहिद

शाहिद

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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