नयी दिल्ली, 21 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को व्यवस्था दी कि राज्य सरकार या सक्षम प्राधिकरण उस भूखंड पर केंद्र की अनुमति के बिना ‘गैर वन गतिविधियों’ की अनुमति नहीं दे सकता जिसे 1980 के वन कानून के तहत वन भूमि घोषित किया गया है।
शीर्ष अदालत ने वन पर कानूनों की व्याख्या करते हुए कहा कि अदालतें संविधान के अनुच्छेद 21 जैसी संवैधानिक योजनाओं से मागदर्शन लेती हैं जो लोगों को ‘प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का’ मौलिक अधिकार प्रदान करती हैं।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति ए एस ओका और न्यायमूति सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा, ‘‘ वन एक मायने में फेफड़े हैं जो मानव जाति की उत्तरजीविता के लिए ऑक्सीजन पैदा करते हैं । वन प्रदूषण रोकने के लिए हमारी पारिस्थितिकी में अहम भूमिका निभाते हैं। वनों की उपस्थिति नागरिकों के प्रदूषणमुक्त वातावरण में जीने के उनके अधिकार के उपभोग के लिए जरूरी है।’’
पीठ ने कहा कि फरीदाबाद जिले में अनंगपुर, आंखिर और मेवला महाराजपुर गांवों में जमीन , जिसे पंजाब भूमि संरक्षण कानून, 1900 की धारा चार के तहत हरियाणा सरकार के विशेष आदेश में शामिल किया गया है, वह ‘वन भूमि’ है।
भाषा राजकुमार नरेश
नरेश
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