सिलवासा के नमो चिकित्सा संस्थान के छात्र निभा रहे स्वास्थ्य दूत की भूमिका |

सिलवासा के नमो चिकित्सा संस्थान के छात्र निभा रहे स्वास्थ्य दूत की भूमिका

सिलवासा के नमो चिकित्सा संस्थान के छात्र निभा रहे स्वास्थ्य दूत की भूमिका

:   Modified Date:  April 11, 2023 / 06:30 PM IST, Published Date : April 11, 2023/6:30 pm IST

(पायल बनर्जी)

सिलवासा, 11 अप्रैल (भाषा) नमो चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान द्वारा दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव के गांवों को गोद लेने का कार्यक्रम शुरू किए जाने के एक साल बाद, इसके छात्र समग्र स्वास्थ्य के दूत बन गए हैं। एक ओर, वे लोगों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रहे हैं, वहीं वे सरकार की प्रमुख योजनाओं के बारे में जानकारी भी दे रहे हैं।

इस मेडिकल कॉलेज के छात्रों की एक टीम हर हफ्ते आसपास के गांवों में घर-घर जाती है और अंधविश्वास एवं कुरीतियों को लेकर लोगों के बीच जागरूकता भी फैलाती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 17 अप्रैल को संस्थान के नए परिसर का उद्घाटन करने की संभावना है। यह दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव में एकमात्र मेडिकल कॉलेज है, जो क्षेत्र के लोगों की बढ़ती आकांक्षाओं का प्रतीक बन गया है। क्षेत्र की कुल आबादी में करीब 40 प्रतिशत आदिवासी हैं।

इस संस्थान का संचालन किराए पर ली गई एक इमारत से शुरू हुआ और इसे सिलवासा में 35 एकड़ में फैले अपने परिसर में स्थानांतरित किया जाएगा।

केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासक ने पिछले साल अप्रैल में गांव गोद लेने का कार्यक्रम शुरू किया था। यह कार्यक्रम शुरुआत में 505 छात्रों के साथ शुरू किया गया जिन्हें दादरा और नगर हवेली जिले में 50 आदिवासी गांव आवंटित किए गए थे। दस छात्रों की एक टीम हर सप्ताह गांव का दौरा करती है। टीम में एक शिक्षक भी होते हैं।

अब, एमबीबीएस (चौथे बैच) के 177 छात्रों को मिलाकर कुल 682 एमबीबीएस छात्र और नर्सिंग कॉलेज के 293 छात्रों को ऐसे दलों में शामिल किया गया है, जो दादरा और नगर हवेली के सभी 70 गांवों को कवर करते हैं।

आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली प्रथम वर्ष की मेडिकल छात्रा कुसुम दाधव ने कहा कि इस क्षेत्र के कई ग्रामीणों में अंधविश्वास है और वे नवजात शिशु को बुरी आत्माओं से बचाने तथा बीमारियों से दूर रखने के लिए उसके शरीर पर एक विशेष निशान (टैटू) बनवाते हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में बच्चे को संक्रमण हो सकता है और यह सिर्फ एक विश्वास है तथा इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

कुसुम ने कहा, ‘हम ग्रामीणों के पास जाते हैं और उन्हें बताते हैं कि ऐसी प्रथाओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और यह उनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है। कुछ परिवारों ने इस बात को समझा और इस चलन को बंद कर दिया है।’

भाषा अविनाश दिलीप

दिलीप

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)