नयी दिल्ली, 29 सितंबर (भाषा) उच्च न्यायालय ने केंद्र और आप सरकार से कहा है कि वे स्वास्थ्य कल्याण योजनाओं के तहत सुविधाओं का लाभ उठाने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करें। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों द्वारा इस तरह की सुविधाओं को हासिल करने की राह में आ रही अड़चनों पर गौर करने के दौरान अदालत ने यह टिप्पणी की।
उच्च न्यायालय ने मौजूदा व्यवस्था की खामियों को दूर करने के लिए दिल्ली के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सात सदस्यीय समिति का गठन किया है।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने कहा, ‘‘मुफ्त चिकित्सा उपचार प्राप्त करने के लिए आवश्यक प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिए, जिसमें विभिन्न सर्जरी के साथ-साथ प्रत्यारोपण/उपकरण से जुड़ी सर्जरी भी शामिल है। दिल्ली के प्रत्येक अस्पताल में नामित नोडल अधिकारियों के साथ एकल-खिड़की तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए।’’
अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली आरोग्य कोष और दिल्ली आरोग्य निधि योजनाएं बनाई हैं और इन पहलों को शहर के निवासियों को चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से सहायक कार्यक्रमों द्वारा पूरक बनाया गया है।
इसी तरह, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय आरोग्य निधि और स्वास्थ्य मंत्री विवेकाधीन अनुदान जैसी योजनाएं शुरू की हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘इसके बावजूद, हमें उन बाधाओं से अवगत कराया गया है जिनका सामना आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को योजना का लाभ लेने के प्रयास के समय करना पड़ रहा है। ये बाधाएं कई स्तरों- इलाज के दौरान, वित्तीय सहायता के लिए आवेदन करने में, प्रत्यारोपण से संबंधित खरीदारी में, राशि वितरण की प्रक्रिया में और जारी चिकित्सा प्रक्रिया (जिसमें सर्जरी भी शामिल है) के दौरान दिखती हैं।
इस मामले में अदालत की सहायता के लिए न्यायमित्र नियुक्त किये गये अधिवक्ता टी सिंहदेव ने एक ज्ञापन सौंपा है जिसमें उन समस्यों का जिक्र किया गया है जिनका सामना वित्तीय सहायता प्राप्त करने का प्रयास कर रहे गरीब मरीजों को करना पड़ता है।
प्रक्रियात्मक बाधाओं को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि इन योजनाओं के तहत चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उठाने की प्रक्रिया को काफी सुव्यवस्थित और आसानी से सुलभ बनाया जाना चाहिए।
समिति में मुख्य सचिव के अलावा केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव, दिल्ली नगर निगम के आयुक्त और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र द्वारा नामित सदस्य शामिल होंगे।
अदालत ने कहा कि समिति विशिष्ट पद्धति का सुझाव दे सकती है जिसके तहत ईडब्ल्यूएस श्रेणी के रोगियों को वित्तीय सहायता वितरित होने तक उपचार/दवाओं का लाभ मिलता रहेगा और इसमें अंतिम उपचार या सर्जरी होने तक दर्द और पीड़ा को कम करने के लिए विभिन्न अस्पतालों में ‘स्टॉप-गैप व्यवस्था’ भी शामिल हो सकती है।
शुरू में, एकल न्यायाधीश की पीठ के समक्ष उस व्यक्ति ने याचिका दाखिल की थी जिसके घुटने और कूल्हे का प्रत्यारोपण सर्जरी करने से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने यह कहकर इनकार कर दिया था कि वह इलाज का खर्च उठाने में अक्षम है। हालांकि, अस्पताल बाद में सर्जरी करने पर राजी हो गया और उस व्यक्ति ने अपनी याचिका वापस ले ली।
लेकिन एकल न्यायाधीश वाली पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने भले ही याचिका वापस लेने की इच्छा व्यक्त की है, लेकिन इस मामले के तथ्य समाज में हाशिये पर रह रहे मरीजों के लिए गुणवत्ता युक्त चिकित्सकीय देखभाल की उपलब्धता को लेकर अहम मुद्दे सामने लाती है। एकल पीठ ने इस याचिका को जनहित याचिका के रूप में पुनवर्गीकृत करते हुए कहा कि इस पर एक खंडपीठ फैसला करेगी।
भाषा संतोष पवनेश
पवनेश
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