नयी दिल्ली, नौ मई (भाषा) औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को लेकर इसे समाप्त करने की मांगों के बीच यह बात सामने आई है कि विधि आयोग ने 2018 में इस कानून पर पुनर्विचार करने या इसे निरस्त करने की वकालत की थी।
कानून संबंधी विषयों पर सरकार की शीर्ष सलाहकार समिति ने परामर्श पत्र में कहा था कि ‘‘लोकतंत्र में एक ही किताब से गीत गाना देशभक्ति का मानदंड नहीं है।’’
आयोग ने कहा था, ‘‘यदि देश सकारात्मक आलोचना के लिए तैयार नहीं है तो स्वतंत्रता के पूर्व के और उसके बाद के कालखंड में बहुत कम अंतर रह जाता है।’’
उसने यह भी कहा कि जिस तरह के हालात हैं, उन पर हताशा व्यक्त करने को राजद्रोह नहीं कहा जा सकता।
आयोग ने कहा, ‘‘क्या भारत जैसे देश में जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, इस बात को ध्यान में रखते हुए राजद्रोह को पुन: परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए कि स्वतंत्रता से बोलने और अभिव्यक्ति का अधिकार लोकतंत्र का आवश्यक घटक है जो हमारे संविधान में मौलिक अधिकार के तौर पर हमें प्रदत्त है?’’
आयोग ने कहा था कि देश की अखंडता की सुरक्षा जरूरी है, लेकिन कानून का दुरुपयोग स्वतंत्रता से बोलने की आजादी पर लगाम लगाने के लिए नहीं होना चाहिए।
भाषा वैभव उमा
उमा
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