यूजीसी ने उच्च शिक्षा में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा’ को शामिल करने पर मसौदा दिशानिर्देश जारी किया |

यूजीसी ने उच्च शिक्षा में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा’ को शामिल करने पर मसौदा दिशानिर्देश जारी किया

यूजीसी ने उच्च शिक्षा में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा’ को शामिल करने पर मसौदा दिशानिर्देश जारी किया

:   Modified Date:  April 13, 2023 / 03:00 PM IST, Published Date : April 13, 2023/3:00 pm IST

नयी दिल्ली, 13 अप्रैल (भाषा) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान परंपरा (आईकेएस) को शामिल करने को लेकर मसौदा दिशानिर्देश जारी किया है। इसमें कहा गया है कि चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम में दाखिला लेने वाले सभी छात्रों को भारतीय ज्ञान परंपरा में कोर्स करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि कुल अनिवार्य क्रेडिट में आईकेएस का हिस्सा कम से कम पांच प्रतिशत हो जाए।

आयोग के सचिव मनीष जोशी द्वारा 12 अप्रैल को जारी सार्वजनिक नोटिस में कहा गया है कि यूजीसी ने उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान परंपरा को शामिल करने के लिए मसौदा दिशानिर्देश जारी किया है।

इसमें कहा गया है कि यह मसौदा दिशानिर्देश यूजीसी की वेबसाइट पर जारी किया गया है। इस पर सभी पक्षकार 30 अप्रैल 2023 तक अपने सुझाव/राय ई-मेल के जरिये भेज सकते हैं।

मसौदे के अनुसार, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की दृष्टि के अनुपालन के लिए यूजीसी ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था जिसे देश में उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान परंपरा को शामिल करने को लेकर दिशानिर्देश तैयार करने का दायित्व सौंपा गया था।

आयोग द्वारा जारी मसौदा दिशानिर्देश में कहा गया है कि चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने वाले सभी छात्रों को भारतीय ज्ञान परंपरा में पर्याप्त कोर्स करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि कुल अनिवार्य क्रेडिट में आईकेएस का हिस्सा कम से कम पांच प्रतिशत हो जाए।

आईकेएस पर मसौदा दिशानिर्देश के अनुसार, छात्रों को ऐसे कोर्स करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, खास तौर पर स्नातक पाठ्यक्रम के पहले चार सेमेस्टर में। सभी स्नातक शिक्षण संस्थानों को भारतीय ज्ञान परंपरा में काफी संख्या में ऐच्छिक पाठ्यक्रम पेश करने चाहिए।

इसमें कहा गया है कि वर्तमान में कुछ विषयों में स्नातकोत्तर कोर्स हैं जो भारतीय ज्ञान परंपरा का हिस्सा है जिनमें भारतीय संगीत में मास्टर ऑफ आर्ट्स, भारतीय दर्शन में मास्टर ऑफ आर्ट्स, भारतीय औषधि प्रणाली की विभिन्न शाखाओं में स्नातकोत्तर कोर्स आदि हैं। कई संस्कृत विश्वविद्यालय विभिन्न शास्त्रों में आचार्य या स्नातकोत्तर डिग्री पाठ्यक्रम कराते हैं।

मसौदा के अनुसार, समिति का यह मत हे कि इन पाठ्यक्रम को नये सिरे से डिजाइन किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुरूप हों।

इसमें कहा गया है कि संस्कृत विश्वविद्यालयों में भारतीय संगीत, भारतीय दर्शन या आयुर्वेद अथवा शास्त्रों का अध्ययन आदि भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुरूप नहीं है और पश्चिमी ज्ञान पद्धति एवं मीमांसा के अनुरूप अध्ययन या शोध कराने पर केंद्रित हैं। इनमें से कुछ की जरूरत हो सकती है, लेकिन इन कोर्सो की जड़े भारतीय ज्ञान परंपरा में समाहित होनी चाहिए।

मसौदे में कहा गया है कि इन विषयों में स्नातकोत्तर कोर्स के भारतीय ज्ञान परंपरा का हिस्सा बनने को मंजूरी मिलने और इनकी पढ़ाई शुरू होने के बाद आईकेएस के भाग के तौर पर इन्हीं पाठ्यक्रमों को नेट परीक्षा आयोजित करने के लिए अंगीकार किया जा सकता है।

इसमें कहा गया है कि उदाहरण के तौर पर अगर कोई छात्र स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के रूप में न्याय या गणित की पढ़ाई कर रहा हो तब वह न्याय अथवा गणित में नेट परीक्षा दे सकता है।

मसौदे में भारतीय ज्ञान परंपरा में कुछ मॉडल कोर्स सुझाए गए हैं। इनमें कुछ फाउंडेशन कोर्स और कुछ संभावित ऐच्छिक कोर्स भी हैं। ऐच्छिक कोर्स में भारतीय तर्क, भारतीय भाषा विज्ञान, भारतीय धातु शास्त्र, भारतीय वास्तु शास्त्र आदि हैं।

वहीं, ऐच्छिक कोर्स में कुछ विशेष विषयों में भारतीय बीज गणित, भारतीय ज्योतिषीय उपकरण, भारतीय मूर्ति विज्ञान, भारतीय वाद्य यंत्र, पूर्व ब्रिटिशकालीन भारत में जल प्रबंधन आदि शामिल हैं।

फाउंडेशन कोर्स में भारतीय सभ्यता से जुड़े साहित्य, वेदांग और भारतीय ज्ञान परंपरा के अन्य विषय शामिल हैं। इसमें भारतीय गणित, भारतीय ज्योतिष, भारतीय स्वास्थ्य विज्ञान, भारतीय कृषि आदि शामिल हैं।

भाषा दीपक

दीपक पवनेश

पवनेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)