चुनाव में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए करीब 11 साल पहले शुरू किया गया था वीवीपैट का इस्तेमाल |

चुनाव में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए करीब 11 साल पहले शुरू किया गया था वीवीपैट का इस्तेमाल

चुनाव में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए करीब 11 साल पहले शुरू किया गया था वीवीपैट का इस्तेमाल

:   Modified Date:  April 26, 2024 / 05:25 PM IST, Published Date : April 26, 2024/5:25 pm IST

नयी दिल्ली, 26 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के माध्यम से डाले गये वोट का ‘वोटर वेरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल’ (वीवीपीएटी) के साथ पूर्ण रूप से मिलान कराने का अनुरोध करने वाली सभी याचिकाएं शुक्रवार को खारिज कर दी। इसके साथ ही, वीवीपैट मशीनें एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में आ गई हैं।

चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए, निर्वाचन संचालन नियम,1961 में 2013 में संशोधन किया गया था ताकि वीवीपैट मशीनों का इस्तेमाल किया जा सके। नगालैंड में नोकसेन विधानसभा सीट पर उपचुनाव (2013) में इनका पहली बार इस्तेमाल किया गया था।

ईवीएम में एक बैलेट यूनिट, एक कंट्रोल यूनिट और एक वीवीपैट होती है।

ईवीएम पर आने वाली कुल लागत में, प्रति बैलेट यूनिट पर 7,900 रुपये, हर कंट्रोल यूनिट पर 9,800 रुपये और प्रत्येक वीवीपैट पर 16,000 रुपये शामिल हैं।

अधिक पारदर्शिता के लिए, 2019 से प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के पांच मतदान केंद्रों से वीवीपैट पर्चियों का मिलान ईवीएम में पड़े मतों से किया जाता है और अब तक कोई विसंगित नहीं पाई गई है।

मतदाता बैलेट यूनिट के जरिये उम्मीदवार को वोट देते हैं, वे वीवीपैट यूनिट पर सात सेकंड तक एक पर्ची देख सकते हैं, जिसमें उक्त उम्मीदवार की पार्टी का चिह्न होता है।

चूंकि भारत में गुप्त मतदान प्रणाली है इसलिए मतदाता वीवीपैट पर्ची घर नहीं ले जा सकते।

शीर्ष अदालत ने ईवीएम के जरिये डाले गए मतों का वीवीपैट पर्चियों के साथ शत-प्रतिशत मिलान का अनुरोध करने वाली याचिकाएं खारिज कर दी है।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने मामले में सहमति वाले दो अलग-अलग फैसले सुनाये और इस मामले से जुड़ी सभी याचिकाएं खारिज कर दीं, जिनमें मतपत्रों से चुनाव कराने की प्रकिया पुन: अपनाने का अनुरोध करने वाली याचिका भी शामिल है।

न्यायालय ने दो निर्देश जारी किये।

न्यायमूर्ति खन्ना ने अपने फैसले में निर्वाचन आयोग को मतदान के बाद, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में चिह्न ‘लोड’ करने वाली स्टोर यूनिट्स को 45 दिनों के लिए ‘स्ट्रॉन्ग रूम’ में सुरक्षित करने के निर्देश दिए।

चूंकि कोई भी व्यक्ति परिणाम की घोषणा के 45 दिनों के अंदर निर्वाचन को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में चुनाव याचिका दायर कर सकता है, इसलिए ईवीएम और पर्चियां 45 दिनों के लिए सुरक्षित रखी जाती हैं, ताकि अदालत द्वारा रिकार्ड मांगे जाने पर उसे उपलब्ध कराया जा सके।

शीर्ष अदालत ने ईवीएम निर्माताओं के इंजीनियरों को यह अनुमति दी कि वे परिणाम घोषित होने के बाद दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों के अनुरोध पर मशीन के ‘माइक्रोकंट्रोलर’ को सत्यापित कर सकते हैं।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ‘माइक्रोकंट्रोलर’ के सत्यापन के लिए अनुरोध परिणाम घोषित होने के सात दिनों के भीतर किया जा सकता है लेकिन इसके लिए पहले शुल्क देना होगा।

पीठ ने कहा, ‘‘अगर सत्यापन के दौरान यह पाया गया कि ईवीएम से छेड़छाड़ की गई है तो उम्मीदवार द्वारा दिया गया शुल्क उसे लौटा दिया जाएगा।’’

वीवीपैट, बैलेट यूनिट और कंट्रोल यूनिट का विनिर्माण सार्वजनिक क्षेत्र के दो उपक्रम– इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड– करते हैं।

भाषा सुभाष सुरेश

सुरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)