जिस बात की हिदायत कुरान में दी गई है, वह इस्लाम का हिस्सा है: इस्लामी विद्वान |

जिस बात की हिदायत कुरान में दी गई है, वह इस्लाम का हिस्सा है: इस्लामी विद्वान

जिस बात की हिदायत कुरान में दी गई है, वह इस्लाम का हिस्सा है: इस्लामी विद्वान

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:36 PM IST, Published Date : March 15, 2022/7:34 pm IST

(अहमद नोमान)

नयी दिल्ली, 15 मार्च (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय की ओर से हिजाब पहनने को इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं मानने के फैसले से इस्लामी विद्वानों ने असहमति जताते हुए मंगलवार को कहा कि कुरान में जिस बात का हुक्म (आदेश) दिया गया है, वे मज़हब का अनिवार्य हिस्सा है और कुरान की सूराह (अध्याय) में महिलाओं को ‘सिर ढकने को कहा गया है।”

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इस्लामी अध्ययन विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर एमेरिट्स अख्तर उल वासे ने ‘पीटीआई-भाषा से कहा कि वह एक शिक्षक के तौर पर वर्दी (यूनिफॉर्म) लागू करने के हिमायती हैं और किसी भी बहाने से इससे बचना नहीं चाहिए, लेकिन “ छात्राओं को वर्दी के रंग के कपड़े से सिर ढकने की इजाज़त दी जा सकती है, जैसे सिख समाज के लोग करते हैं।”

इस्लाम के तीन अलग अलग विद्वानों ने अदालत के फैसले से असहमति देते हुए कहा कि इस्लाम में महिलाओं के लिए हुक्म है कि वे सर ढकेंगी।

प्रोफेसर वासे ने कहा, “कुरान-ए-करीम में किसी चीज़ के लिए साफ तौर पर हिदायत (निर्देश) मौजूद हैं तो वह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है।’’ उन्होंने कहा कि साथ में जो पैगंबर मोहम्मद ने अपनी ज़िदंगी में किया, वे भी इस्लाम का हिस्सा है।

उन्होंने कहा, “ सिर ढकने का जिक्र सूर-ए-अहज़ाब और सूर-ए-नूर में मौजूद है कि महिलाएं अपना चेहरा, हाथ और पैर खुला रखेंगी, लेकिन वे सिर ढकेंगी।”

उन्होंने कहा कि सूर-ए-नूर में मर्दों के लिए भी हुक्म है कि वे अपनी नज़र को झुका कर रखेंगे।

प्रोफेसर वासे ने कहा, “ हज और उमरे(हज के अलावा आम दिनों में होने वाली मक्का मदीना की यात्रा) के दौरान महिलाएं अपने सिर को ढकती हैं।”

वासे ने कहा कि वर्दी की आड़ में महिलाओं को तालीम (शिक्षा) और हिजाब में से किसी का एक चयन करने का मौका नहीं देना चाहिए।

उन्होंने कहा “ भारत में राजस्थान और बृज प्रदेश की महिलाएं घूंघट करती हैं, इसे आप क्या कहेंगे? यह भारतीय संस्कृति है।”

चांदनी चौक स्थित फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने भी कहा कि हिजाब इस्लाम में कुरान और हदीस (पैगम्बर मोहम्मद की शिक्षा) का हिस्सा हैं।

मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने कहा, “सिर ढकने का हुक्म कुरान में है, इसलिए यह जरूरी है। सूर अल अहज़ाब में, सूर ए नूर में सिर ढकने का हुक्म है, इसलिए यह इस्लाम का जरूरी हिस्सा है।”

विश्व प्रसिद्ध इस्लामी शिक्षण संस्थान के दारूल उलम देवबंद के प्रवक्ता अशरफ उस्मानी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “ महिलाओं का सिर ढकना कुरान से साबित है और जो बात कुरान में आ गई है वे फर्ज है, चाहे, वो नमाज़, रोज़ा ज़कात या हज हो।”

उन्होंने कहा, “इस्लाम के 1400 साल के इतिहास में हिजाब को लेकर कभी कोई विवाद नहीं हुआ है। दुनियाभर के उलेमा मानते हैं कि इस्लाम में सिर ढकना फर्ज है।”

उन्होंने कहा कि अदालत यह फैसला नहीं कर सकती है कि इस्लाम का हिस्सा क्या है और क्या हिस्सा नहीं है।

प्रोफेसर वासे ने कहा, “हम इस फैसले से संतुष्ट नहीं है। मेरी अपील है कि जो लोग इस फैसले से संतुष्ट नहीं है, उन्हें इसका विरोध नहीं करना चाहिए और बल्कि फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती देनी चाहिए।”

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है और उसने कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति देने के लिए मुस्लिम छात्राओं की खाचिकाएं खारिज कर दी। अदालत ने इसके साथ ही राज्य में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध बरकरार रखा।

भाषा नोमान नोमान उमा

उमा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)