अनुचित आरोपों के घाव इतने गहरे होते हैं कि पति-पत्नी का एक साथ रहना असंभव हो जाता है: उच्च न्यायालय |

अनुचित आरोपों के घाव इतने गहरे होते हैं कि पति-पत्नी का एक साथ रहना असंभव हो जाता है: उच्च न्यायालय

अनुचित आरोपों के घाव इतने गहरे होते हैं कि पति-पत्नी का एक साथ रहना असंभव हो जाता है: उच्च न्यायालय

:   Modified Date:  March 8, 2024 / 08:22 PM IST, Published Date : March 8, 2024/8:22 pm IST

नयी दिल्ली, आठ मार्च (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि अनुचित आरोपों के घाव इतने गहरे होते हैं कि पति-पत्नी का एक साथ रहना असंभव हो जाता है और अधिक आपराधिक मुकदमों की वजह से दंपती में सुलह की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पत्नी द्वारा क्रूरता किये जाने के आधार पर एक व्यक्ति की तलाक की अर्जी मंजूर करते हुए यह टिप्पणी की।

अदालत ने तलाक की मंजूरी देते हुए कहा कि पत्नी द्वारा दहेज और उत्पीड़न की झूठी शिकायतों से पति और उसका परिवार अधिक आपराधिक मुकदमों के जाल में फंस गया, जिससे उसे मानसिक और शारीरिक क्रूरता का सामना करना पड़ा।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाल के अपने आदेश में कहा कि अनुचित आरोपों के घाव इतने गहरे होते हैं कि पति-पत्नी का एक साथ रहना असंभव हो जाता है और अधिक आपराधिक मुकदमों की वजह से दंपती में सुलह की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती।

पीठ में न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा भी शामिल थीं।

पीठ ने कहा, ‘‘दहेज उत्पीड़न के ऐसे निराधार आरोप लगाना मानसिक उत्पीड़न और क्रूरता के अलावा और कुछ नहीं है।’’

पति और पत्नी दोनों सेना में अधिकारी हैं।

पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी के लगातार उत्पीड़न, कलह और अनुचित व्यवहार ने उसकी मानसिक शांति को भंग किया और इससे उसके करियर की संभावनाओं, स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हुई।

उसने दावा किया कि पत्नी अक्सर उसे शारीरिक और यहां तक कि आर्थिक रूप से भी प्रताड़ित करती थी।

उन्होंने पारिवारिक अदालत द्वारा तलाक देने से इनकार करने के फैसले के खिलाफ अपील में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

अदालत ने कहा कि दोनों पक्ष 2010 से अलग-अलग रह रहे थे और सुलह की कोई भी संभावना नजर नहीं आ रही थी।

भाषा

देवेंद्र दिलीप

दिलीप

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)