बालोद : मोहनदास मानिकपुरी की रिपोर्ट : Teachers Day Special : शिक्षक एक मोमबत्ती की तरह होता है जो खुद जलकर विद्यार्थियों के जीवन को रौशन करता है, लेकिन जरा सोचिए अगर उस शिक्षक के आंखों में रोशनी ही न हो तो उसके सामने अंधकार हि अंधकार है। ऐसे हालत में भी एक शिक्षक उजाले की तरह शिक्षा की अलख जगाकर बच्चों के जीवन को रौशन कर रहा है। आज हम आपको बालोद जिले के एक ऐसे दिव्यांग शिक्षक बालमुकुंद कोरेटी के बारे में बताने जा रहे है। जो बचपन से ही देख नहीं सकते। इनके जुनून और आत्मविश्वास आज दूसरो के लिए प्रेरणा के स्रोत साबित हो रहा है।
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Teachers Day Special : बालोद जिले के जंगल और पहाड़ों के बीच बसा एक छोटा सा गांव है देवपांडुम। यह गांव आदिवासी बाहुल्य ब्लॉक डौंडी के अंतर्गत आता है। यहां के प्रायमरी स्कूल में सहायक शिक्षक के पद पर पदस्थ दिव्यांग शिक्षक बालमुकुंद कोरेटी। जो कि देख नहीं सकते। बचपन के एक हादसे की वजह से धीरे धीरे इनके आंखों में रोशनी चली गई। बालमुकुंद मूलतः देवपांडुम के ही रहने वाले है। बालमुकुंद बचपन से ही देख नही पाते है। 2008 में व्यापम परीक्षा के जरिए इन्होंने सफलता हासिल की और उन्हें यहां खुद के ही गांव मे पोस्टिंग मिल गई।
Teachers Day Special : बीते 14 साल से बालमुकुंद यहां के प्रायमरी स्कूल में अपनी निरंतर सेवाएं दे रहे हैं। बच्चों को भी इनसे खासा लगाव है। बालमुकुंद ब्रेनलिपि के माध्यम से खुद समझते है और बच्चो को पढ़ाते हैं। बालमुकुंद बताते है कि बच्चो को पढ़ाने के बाद वे बीच बीच में उनसे सवाल भी करते है। स्थानीय होने की वजह से बच्चों के साथ उनका तालमेल भी काफी अच्छा है। उन्हें बच्चो को पढ़ाने में दिक्कत नही होती। उनके द्वारा पढ़ाए गए सभी चीज़ों को बच्चे बड़े ही आसानी से समझ जाते है।
Teachers Day Special : प्रभारी प्रधान पाठक की माने तो बालमुकुंद अपना पूरा अध्यापन कार्य ब्रेनलिपि पुस्तक के जरिये करते है। बच्चे भी उनके पढ़ाने के तरीके से बेहद खुश है। उनके द्वारा कही गई बातों को आसानी से समझते है। पढ़ाई के अलावा भी बालमुकुंद अन्य गतिविधियां जैसे नैतिक शिक्षा, खेलकूद और चित्रकला भी बच्चों से करवाते है। बालमुकुंद स्कूल कार्य के प्रति बड़े ही निष्ठावान है। समय पर स्कूल आना और स्कूल से जाना इनकी दिनचर्या में है।