Bankim Chandra Chatterjee Birth Anniversary

Bankim Chandra Chatterjee Birth Anniversary : ‘वंदे मातरम’ की रचना, स्वतंत्रता आंदोलन में अनोखे तरीके से लिया भाग, बंकिम चंद्र चटर्जी से जुड़ी रोचक बातें जानें यहां

Bankim Chandra Chatterjee Birth Anniversary : बंकिम चंद्र चटर्जी या बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, बहुत ही लोकप्रिय लेखक रहे।

Edited By :   Modified Date:  June 26, 2023 / 12:04 PM IST, Published Date : June 26, 2023/12:04 pm IST

नई दिल्ली : Bankim Chandra Chatterjee Birth Anniversary : बंकिम चंद्र चटर्जी या बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, बहुत ही लोकप्रिय लेखक रहे। उन्होंने अपनी कविताओं और उपन्यासों से देश को प्रेरित किया। वह भारत के महान उपन्यासकारों और कवियों में से एक थे। उनका जन्म 26 जून, 1938 को उत्तर 24 परगना, नैहाटी, वर्तमान पश्चिम बंगाल के कंठपुरा गाँव में हुआ था। भारतीय जनमानस में उन्हें राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ के रचयिता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने बांग्ला साहित्य के उत्थान और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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बीए की परीक्षा पास करने वाले पहले भारतीय थे बंकिम चंद्र चटर्जी

Bankim Chandra Chatterjee Birth Anniversary : उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मेदिनीपुर में पुरी की इसके बाद उन्होंने हुगली मोहसिन कॉलेज से पढ़ाई की। 1856 में उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया। उस समय देश पहले स्वतंत्रता संग्राम के लिए तैयार हो रहा था। आम जनता अंग्रेजों के लगातार बढ़ते अत्याचारों से दुखी थी। वर्ष 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ एक मज़बूत विद्रोह हुआ लेकिन बंकिम चंद्र चटर्जी ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और वर्ष 1859 में बी.ए. की परीक्षा पास की।

वह प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए की परीक्षा पास करने वाले पहले भारतीय थे। स्नातक की परीक्षा पास करने के तुरंत बाद वे 1858 में कोलकाता के डिप्टी कलेक्टर पद पर नियुक्त कर दिए गए थे। इस पद पर रहते हुए ही उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की। उस वक्त में सरकारी नौकरियों में बड़े पदों पर केवल अंग्रेज ही तैनात होते थे। बड़े पदों पर बहुत कम भारतीय होते थे, इसलिए बंकिम चंद्र चटर्जी का अंग्रेज अधिकारियों से कदम-कदम पर संघर्ष होता रहता था। इसी वजह से उनका कभी प्रमोशन नहीं हुआ।

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साहित्य के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन में लिया भाग

Bankim Chandra Chatterjee Birth Anniversary : जब वह यह सरकारी नौकरी कर रहे थे तब का एक किस्सा बहुत चर्चित रहा है। बंकिम चंद्र चटर्जी तब कोलकाता में डिप्टी मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत थे। उस समय कमिश्नर पद पर मिनरों नाम का एक अंग्रेज अफसर कार्यरत था, एक बार अचानक ईडन गार्डन में बंकिम चंद्र चटर्जी की मिनरो से मुलाकात हो गई, मगर उन्होंने मिनरो का अभिवादन नहीं किया और नजर अंदाज करके आगे बढ़ गए। उनके इस व्यवहार से बौखलाए मिनरो ने उनका तबादला दूसरी जगह करवा दिया।

32 वर्ष की उम्र में चटर्जी सरकारी सेवा में कार्यरत रहे और वर्ष 1891 में सेवानिवृत्त हुए। सरकारी नौकरी में रहते हुए बंकिम चंद्र चटर्जी स्वतंत्रता आंदोलन में खुलकर सक्रिय भागीदारी नहीं कर सकते थे। इस बात का उनको हमेशा मलाल रहता था। मगर उन्होंने साहित्य के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। जब भी स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है ‘वंदे मातरम्’ राष्ट्रगीत का जिक्र अपने आप ही हो जाता है।

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आज भी करोड़ों युवा दिलों में धड़क रहा है राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’

Bankim Chandra Chatterjee Birth Anniversary : राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ 1874 से लगातार आज भी करोड़ों युवा दिलों में धड़क रहा है। वंदे मातरम सिर्फ एक गीत या नारा ही नहीं, बल्कि आजादी की एक संपूर्ण संघर्ष गाथा है। उन्होंने “आनंदमठ” नाम का उपन्यास लिखा। इस उपन्यास ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्राण फूंक दिए। यह उपन्यास 1882 में कई भागों में प्रकाशित हुआ। इसमें 1773 में हुए स्वराज आंदोलन की कहानी है। इस उपन्यास में संन्यासियों और मुस्लिम समुदाय का अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष को दिखाया गया है। इसमें हिंदू मुस्लिम एकता का भी वर्णन है।

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8 अप्रैल, 1894 को हुआ था निधन

Bankim Chandra Chatterjee Birth Anniversary : ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बहुत योगदान दिया। इस उपन्यास में ही “वंदे मातरम्” गीत की रचना हुई थी। “वंदे मातरम्” इतना प्रसिद्ध हुआ, कि स्वयं गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे संगीत दिया। वहीं आजाद भारत में 24 जनवरी, 1950 को भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने वंदे मातरम को राष्ट्रगीत का दर्जा दिए जाने की घोषणा की थी। बंकिम चंद्र चटर्जी ने अपने लेखन से राष्ट्रवाद का दीप जलाया। उन्होंने अपने साहित्यिक अभियान के माध्यम से बंगाल के लोगों को बौद्धिक रूप से प्रेरित किया। आधुनिक बंगला साहित्य के राष्ट्रीयता के जनक इस नायक का 8 अप्रैल, 1894 को देहान्त हो गया।

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