lohri festival kyu manaya jata hai

आज ही के दिन क्यों मनाई जाती है ‘लोहड़ी’? जानिए क्या है इस पर्व का खास महत्व

मकर संक्रांति पर्व को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सूर्य उत्तर की ओर बढ़ने लगता है! lohri festival kyu manaya jata hai

Edited By :   Modified Date:  January 14, 2023 / 09:41 AM IST, Published Date : January 14, 2023/9:41 am IST

रायपुर: lohri festival kyu manaya jata hai मकर संक्रांति पर्व को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सूर्य उत्तर की ओर बढ़ने लगता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण की अवधि देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात्रि है। मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिए गए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं।

Read More: सूर्य का मकर राशि में गोचर, इन राशि वालों पर रहेगी शनिदेव की कृपा, घर चलकर आएगी लक्ष्मी

lohri festival kyu manaya jata hai मकर संक्रांति पर्व देश के विभिन्न भागों में अलग अलग नामों से भी मनाया जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाया जाता है जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व हिमाचल, हरियाणा तथा पंजाब में यह त्योहार लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सायंकाल अंधेरा होते ही होली के समान आग जलाकर तिल, गुड़, चावल तथा भुने हुए मक्का से अग्नि पूजन करके आहुति डाली जाती है। इस सामग्री को तिलचैली कहते हैं। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की गजक, रेवडि़यां आदि आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं।

Read More: ललित किशोर के इस्तीफे के बाद पूर्व मंत्री पीके शाही बने महाधिवक्ता 

सर्दी के मौसम के समापन और फसलों की कटाई की शुरुआत का प्रतीक समझे जाने वाले मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर लाखों लोग देश भर में पवित्र नदियों में स्नान कर पूजा अर्चना करते हैं। मान्यता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। माना जाता है कि सूर्य के उत्तरायण के समय देह त्याग करने या मृत्यु को प्राप्त होने वाली आत्माएं पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा मिल जाता है और इसे मोक्ष प्राप्ति भी कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। देश के विभिन्न भागों में तो लोग इस दिन कड़ाके की ठंड के बावजूद रात के अंधेरे में ही नदियों में स्नान शुरू कर देते हैं। इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम, वाराणसी में गंगाघाट, हरियाणा में कुरुक्षेत्र, राजस्थान में पुष्कर और महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी में श्रद्धालु इस अवसर पर लाखों की संख्या में एकत्रित होते हैं।

Read More: घर में मृत पाए गए दंपति और दो बच्चे, इलाके में दहशत का माहौल, पुलिस ने कही ये बात… 

इस पर्व पर इलाहाबाद में लगने वाला माघ मेला और कोलकाता में गंगासागर के तट पर लगने वाला मेला काफी प्रसिद्ध है। अयोध्या में भी इस पर्व की खूब धूम रहती है। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र सरयू में डुबकी लगाकर रामलला, हनुमानगढ़ी में हनुमानलला तथा कनक भवन में मां जानकी की पूजा अर्चना करते हैं। हरिद्वार में भी इस दौरान मेला लगता है जिसमें श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बनता है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है।

Read More: प्रेमिका ने प्रेमी के माता-पिता पर किया जानलेवा हमला, चाकू से किए वार, इस वजह से नाराज थी युवती 

सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

Read More: Surya Gochar 2023 : सूर्य ने किया गोचर, आज से खुलेगी इन 6 राशि वालों की किस्मत, मिलेगा अपार धन 

मकर संक्रान्ति का महत्व –

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। भगवान कृष्ण ने गीता में सूर्य के उत्तरायण होने के महत्व के बारे में बताया है जिसके मुताबिक, सूर्य के उत्तरायण के छह मास का समय बेहद शुभ समय होता है, क्योंकि जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं तो पृथ्वी प्रकाशमय रहती है इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। जबकि सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है।

इसके साथ ही इस समय की सूर्य की किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं। जिस तरह पौधा प्रकाश में अच्छे से खिलता है, अंधकार में सिकुड़ जाता है। उसी तरह मानव जीवन और प्रकृति भी इस दौरान अपने स्वरूप को बदलने की प्रक्रिया की शुरूआत करती है और बसंत के आने पर अपना पूरा रूप बदल लेती है।

Read More: नव विवाहित दंपति ने की खुदकुशी, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान 

संक्रांति में क्या करे –

एक दिन पूर्व व्यक्ति (नारी या पुरुष) को केवल एक बार मध्याह्न में भोजन करना चाहिए और संक्रान्ति के दिन दाँतों को स्वच्छ करके तिल युक्त जल से स्नान करना चाहिए। व्यक्ति को चाहिए कि वह किसी संयमी ब्राह्मण गृहस्थ को भोजन सामग्रियों से युक्त तीन पात्र तथा एक गाय यम, रुद्र एवं धर्म के नाम पर दे। यदि हो सके तो व्यक्ति को चाहिए कि वह ब्राह्मण को आभूषणों, पर्यंक, स्वर्णपात्रों का दान करे। यदि वह दरिद्र हो तो ब्राह्मण को केवल फल दे। इसके उपरान्त उसे तैल-विहीन भोजन करना चाहिए और यथा शक्ति अन्य लोगों को भोजन देना चाहिए। स्त्रियों को भी यह व्रत करना चाहिए। संक्रान्ति, ग्रहण, अमावस्या एवं पूर्णिमा पर गंगा स्नान महापुण्यदायक माना गया है और ऐसा करने पर व्यक्ति ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है। संक्रान्ति पर सामान्य जल (गर्म नहीं किया हुआ) से स्नान करना नित्यकर्म कहा जाता है, जैसा कि देवीपुराण में है- जो व्यक्ति संक्रान्ति के पवित्र दिन पर स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक रोगी एवं निर्धन रहेगा। संक्रान्ति पर जो भी देवों को हव्य एवं पितरों को कव्य दिया जाता है, वह सूर्य द्वारा भविष्य के जन्मों में लौटा दिया जाता है।

Read More: प्रदेश में मिले कोरोना के 6 नए मरीज, स्वास्थ्य विभाग में मचा हड़कंप 

मेष में भेड़, वृषभ में गायें, मिथुन में वस्त्र, भोजन एवं पेय पदार्थ, कर्कट में घृतधेनु, सिंह में सोने के साथ वाहन, कन्या में वस्त्र एवं गौएँ, नाना प्रकार के अन्न एवं बीज, तुला-वृश्चिक में वस्त्र एवं घर, धनु में वस्त्र एवं वाहन, मकर में इन्घन एवं अग्नि, कुम्भ में गौएँ जल एवं घास, मीन में नये पुष्प का दान करना चहिये।

मकर संक्रान्ति के सम्मान में तीन दिनों या एक दिन का उपवास करना चाहिए। जो व्यक्ति तीन दिनों तक उपवास करता है और उसके उपरान्त स्नान करके सूर्य की पूजा करता है, विषुव एवं सूर्य या चन्द्र के ग्रहण पर पूजा करता है तो वह वांछित इच्छाओं की पूर्णता पाता है।
नारी द्वारा दान

मकर संक्रान्ति पर अधिकांश में नारियाँ ही दान करती हैं। वे पुजारियों को मिट्टी या ताम्र या पीतल के पात्र, जिनमें सुपारी एवं सिक्के रहते हैं, दान करती हैं और अपनी सहेलियों को बुलाया करती हैं तथा उन्हें कुंकुम, हल्दी, सुपारी, ईख के टुकड़े आदि से पूर्ण मिट्टी के पात्र देती हैं।

Read More: India news today in hindi 14 January : माकपा और कांग्रेस मिलकर लड़ेंगे त्रिपुरा विधानसभा चुनाव 

संक्रांति पर श्राद्ध

कुछ लोगों के मत से संक्रान्ति पर श्राद्ध करना चाहिए। विशिष्ट शुभ अवसरों पर काम्य श्राद्ध करना चाहिए। इन दिनों के श्राद्ध से पितरों को अक्षय संतोष प्राप्त होता है।

तिल संक्राति –

देश भर में लोग मकर संक्रांति के पर्व पर अलग-अलग रूपों में तिल, चावल, उड़द की दाल एवं गुड़ का सेवन करते हैं। इन सभी सामग्रियों में सबसे ज्यादा महत्व तिल का दिया गया है। इस दिन कुछ अन्य चीज भले ही न खाई जाएँ, किन्तु किसी न किसी रूप में तिल अवश्य खाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है तथा उपरोक्त उत्पादों का प्रयोग सभी प्रकार के पापों से मुक्त करता है, गर्मी देता है और शरीर को निरोग रखता है। मंकर संक्रांति में जिन चीजों को खाने में शामिल किया जाता है, वह पौष्टिक होने के साथ ही साथ शरीर को गर्म रखने वाले पदार्थ भी हैं।

खिचड़ी संक्रान्ति

चावल व मूंग की दाल को पकाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इस दिन खिचड़ी खाने का प्रचलन व विधान है। घी व मसालों में पकी खिचड़ी स्वादिष्ट, पाचक व ऊर्जा से भरपूर होती है। इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ हो जाती है। बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान व सूर्योपासना के बाद ब्राह्मणों को गुड़, चावल और तिल का दान भी अति श्रेष्ठ माना गया है। महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल-तिल बढ़ती है, इसीलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान बनाकर एक-दूसरे का वितरित करते हुए शुभ कामनाएँ देकर यह त्योहार मनाया जाता है।

Read More: राष्ट्रपति मुर्मू के पैर छूने की कोशिश करने वाली इंजीनियर निलंबित 

ऐसी मान्यताएं हैं कि मकर के स्वामी शनि और सूर्य के विरोधी राहू होने से दोनों के विपरीत फल के निवारण के लिए तिल का खास प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही उत्तरायण में सूर्य की रोशनी में प्रखरता आ जाती है। इससे राहू और शनि के दोष का भी नाश होता है। शास्‍त्रानुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं और मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य देव के पुत्र होते हुए भी सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। अतः शनिदेव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए तिल का दान और सेवन मकर संक्रांति में किया जाता है।

मकर संक्रांति को पतंग उड़ाने की विशेष परंपरा है। देशभर में पतंग उड़ाकर मनोरंजन करने का रिवाज है। पतंग उड़ाने की परंपरा का उल्लेख श्रीरामचरितमानस में तुलसीदास जी ने भी किया है। बाल कांड में उल्लेख है- श्राम इक दिन चंग उड़ाई, इंद्रलोक में पहुँची गई।श् त्रेतायुग में ऐसे कई प्रसंग हैं जब श्रीराम ने अपने भाइयों और हनुमान के साथ पतंग उड़ाई थी।

मकर संक्रांति मुहूर्त 2023

मकर संक्रान्ति रविवार, जनवरी 15, 2023 को
मकर संक्रान्ति पुण्य काल – 06:43 से 17:42
अवधि – 10 घण्टे 59 मिनट्स
मकर संक्रान्ति महा पुण्य काल – 06:43 से 08:33
अवधि – 01 घण्टा 50 मिनट्स

 

 

देश दुनिया की बड़ी खबरों के लिए यहां करें क्लिक

 
Flowers