महाराष्ट्र: पांच भाषाओं, 11 लिपियों में लिखी 3,414 दुर्लभ पांडुलिपियों को संरक्षण का इंतजार |

महाराष्ट्र: पांच भाषाओं, 11 लिपियों में लिखी 3,414 दुर्लभ पांडुलिपियों को संरक्षण का इंतजार

महाराष्ट्र: पांच भाषाओं, 11 लिपियों में लिखी 3,414 दुर्लभ पांडुलिपियों को संरक्षण का इंतजार

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:50 PM IST, Published Date : April 21, 2022/7:03 pm IST

औरंगाबाद (महाराष्ट्र), 21 अप्रैल (भाषा) पांच भाषाओं और 11 लिपियों में लिखी गई 3,414 दुर्लभ पांडुलिपियां शहर के एक विश्वविद्यालय में संरक्षण की प्रतीक्षा कर रही हैं। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को बताया कि ये पांडुलिपियां आठ लाख से ज्यादा पृष्ठों की हैं।

उन्होंने कहा कि ये पांडुलिपियां डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के ज्ञान संसाधन केंद्र (केआरसी) के पास हैं।

केआरसी के निदेशक डॉ. धर्मराज वीर ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “आठ लाख से अधिक पृष्ठों वाली दुर्लभ 3,414 पांडुलिपियों को संरक्षित किया जाना बाकी है। पांच भाषाओं और 11 लिपियों में लिखी गई यह दुर्लभ सामग्री विद्वानों, शौकीनों और आगे की पीढ़ियों को उपलब्ध कराई जा सकती है।”

उन्होंने कहा कि ये पांडुलिपियां काफी पुरानी हैं और इनमें से कुछ के पन्ने अब एक दूसरे से चिपक गए हैं।

वीर ने कहा, “इन दुर्लभ दस्तावेजों के डिजिटलीकरण के लिए, हमें पहले उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है। 19 चित्रमय पांडुलिपियां, 39 शाही घोषणा-पत्र, 92 उत्कीर्ण शिलालेख, 18 मराठी उत्कीर्ण शिलालेख, 48 प्राचीन वस्तुएं और 3,198 अन्य पांडुलिपियां हैं।”

पांडुलिपियां मुख्य रूप से हिंदू धर्म के वारकरी और महानुभाव संप्रदायों से संबंधित हैं और 15वीं से 19वीं शताब्दी के बीच की हैं। उन्होंने कहा कि ये पांडुलिपियां उस समय के सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जीवन को दर्शाती हैं।

उन्होंने बताया कि पांडुलिपियां मराठी, पंजाबी, संस्कृत, उर्दू और हिंदी में लिखी गई हैं। वे मोदी, सुंदरी, सुभद्रा और अंक लिपियों में हैं। अधिकारी ने कहा कि इस सामग्री का अधिकांश हिस्सा प्रकाशित नहीं हुआ है और इसलिए इसका साहित्यिक महत्व है।

वीर ने कहा, “हमने पहले इन पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए हमारे विश्वविद्यालय और अन्य संस्थानों को एक प्रस्ताव भेजा था। लेकिन उस दिशा में अब तक कुछ भी नहीं हुआ। हमारे पास इन पांडुलिपियों को संरक्षित और डिजिटाइज करने और इस दुर्लभ सामग्री के लिए एक कला दीर्घा विकसित करने की योजना है लेकिन इस पूरी कवायद पर करीब 4.62 करोड़ रुपए खर्च होंगे।”

भाषा

प्रशांत अविनाश

अविनाश

 

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