अल्पसंख्यकों को कोई खतरा नहीं, समग्र जनसंख्या नीति बनाने की जरूरत : संघ प्रमुख भागवत |

अल्पसंख्यकों को कोई खतरा नहीं, समग्र जनसंख्या नीति बनाने की जरूरत : संघ प्रमुख भागवत

अल्पसंख्यकों को कोई खतरा नहीं, समग्र जनसंख्या नीति बनाने की जरूरत : संघ प्रमुख भागवत

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:53 PM IST, Published Date : October 5, 2022/7:14 pm IST

(फोटो सहित)

नागपुर, पांच अक्टूबर (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि भारत को सभी सामाजिक समूहों पर समान रूप से लागू एक सुविचारित, व्यापक जनसंख्या नियंत्रण नीति तैयार करनी चाहिए। साथ ही उन्होंने जनसांख्यिकीय ‘असंतुलन’ के मुद्दे को उठाया और कहा कि जनसंख्या असंतुलन से भौगोलिक सीमाओं में परिवर्तन होता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर स्थित मुख्यालय में विजय दशमी उत्सव पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सरसंघचालक ने कहा, ‘‘संघ पूरी दृढ़ता के साथ आपसी भाईचारे, भद्रता व शांति के पक्ष में खड़ा है और अल्पसंख्यकों के लिए कोई खतरा नहीं है।’’

रेशमीबाग में मैदान में आयोजित कार्यक्रम में भागवत ने अपने करीब 60 मिनट के संबोधन में महिला सशक्तिकरण, हिन्दू राष्ट्र से जुड़े विषयों, शिक्षा, स्वाबलंबन, श्रीलंका को भारत की मदद, यूक्रेन संकट सहित विविधि विषयों को स्पर्श किया ।

उन्होंने कहा कि समुदाय आधारित ‘जनसंख्या असंतुलन’ एक महत्वपूर्ण विषय है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जनसंख्या असंतुलन से भौगोलिक सीमाओं में परिवर्तन होता है।

भागवत ने कहा, ‘पचहत्तर साल पहले, हमने अपने देश में इसका अनुभव किया। 21 वीं सदी में, तीन नए देश जो अस्तित्व में आए हैं – पूर्वी तिमोर, दक्षिण सूडान और कोसोवो – वे इंडोनेशिया, सूडान और सर्बिया के कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या असंतुलन के परिणाम हैं।’’

उन्होंने कहा कि संतुलन बनाने के लिए नई जनसंख्या नीति सभी समुदायों पर समान रूप से लागू होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘इस देश में समुदायों के बीच संतुलन बनाना होगा।’ उन्होंने कहा, ‘जन्म दर में अंतर के साथ-साथ लालच देकर या बलपूर्वक धर्मांतरण,और घुसपैठ भी बड़े कारण हैं। इन सभी कारकों पर विचार करना होगा।’

भागवत ने मातृभाषा के प्रयोग पर जोर देते हुए कहा कि करियर बनाने के लिए अंग्रेजी भाषा महत्वपूर्ण नहीं है। उन्होंने कहा, ‘जब सरकार से मातृभाषा को बढ़ावा देने की अपेक्षा की जाती है, तो हमें इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि क्या हम अपनी मातृभाषा में हस्ताक्षर करते हैं या नहीं? हमारे आवासों पर लगी नेमप्लेट मातृभाषा में हैं या नहीं? क्या निमंत्रण पत्र मातृभाषा में है या नहीं?’

आरएसएस ने इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध पर्वतारोही संतोष यादव को आमंत्रित किया। वह दो बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली दुनिया की पहली महिला हैं।

चीन की ‘एक परिवार, एक संतान’ नीति का उल्लेख करते हुए भागवत ने कहा, ‘‘ जहां हम जनसंख्या पर नियंत्रण का प्रयास कर रहे हैं, वहीं हमें देखना चाहिए कि चीन में क्या हो रहा है। उस देश ने एक परिवार, एक संतान नीति को अपनाया और अब वह बूढ़ा हो रहा है।’’

उन्होंने भारत के संदर्भ में कहा कि आज 57 करोड़ की युवा आबादी के साथ यह सबसे युवा देश है और अगले 30 सालों तक हम युवा राष्ट्र बने रहेंगे । लेकिन 50 वर्षों के बाद क्या होगा? क्या आबादी का पेट भरने के लिए हमारे पास पर्याप्त भोजन होगा?’’

भागवत ने भारत की विशाल आबादी पर चिंता जाहिर की।

भागवत ने कहा कि अपने देश की जनसंख्या विशाल है, यह एक वास्तविकता है। उन्होंने कहा कि इस जनसंख्या के लिए उसी मात्रा में साधन आवश्यक होंगे और अगर जनसंख्या बढ़ती चली जाए तो यह भारी व असह्य बोझ बन जाएगी।

उन्होंने कहा कि इसलिए जनसंख्या नियंत्रण की दृष्टि से योजनाएँ बनाई जाती हैं। एक और आयाम है जिसमें जनसंख्या को एक संपत्ति माना जाता है। भागवत ने कहा कि ध्यान उचित प्रशिक्षण और अधिकतम उपयोग पर है।

भागवत ने कहा कि तथाकथित अल्पसंख्यकों में बिना कारण भय का हौव्वा खड़ा किया जाता है कि उन्हें संघ से या हिन्दू से खतरा है लेकिन यह न तो हिन्दुओं का, न ही संघ का स्वभाव या इतिहास रहा है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि हमसे या संगठित हिन्दुओं से न कभी किसी को खतरा हुआ है और न कभी होगा।

भागवत ने कहा कि संतान संख्या का विषय माताओं के स्वास्थ्य, आर्थिक क्षमता, शिक्षा, इच्छा के अलावा प्रत्येक परिवार की आवश्यकता से भी जुड़ा होता है और यह जनसंख्या व पर्यावरण को भी प्रभावित करता है।

सरसंघचालक ने कहा, ‘‘ जनसंख्या नीति ‌इतनी सारी बातों का समग्र व एकात्म विचार करके बने, सभी पर समान रूप से लागू हो । लोक प्रबोधन द्वारा इस के पूर्ण पालन की मानसिकता बनानी होगी। तभी जनसंख्या नियंत्रण के नियम परिणाम ला सकेंगे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जहां जनसंख्या नियंत्रण के प्रति जागरूकता और उस लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में हम निरंतर अग्रसर हैं, वहीं कुछ प्रश्न और भी विचार के लिए खड़े हो रहे हैं।’’

उन्होंने कहा कि सन 2000 में भारत सरकार ने समग्रता से विचार कर एक जनसंख्या नीति का निर्धारण किया था जिसमें एक महत्वपूर्ण लक्ष्य प्रजनन दर 2.1 को प्राप्त करना था। जागरूकता और सकारात्मक सहभागिता तथा केंद्र एवं राज्य सरकारों के सतत समन्वित प्रयासों के परिणामस्वरूप प्रजनन दर 2.1- 2.0 के बीच आ गई है।

उन्होंने कहा कि सुरक्षा के क्षेत्र में हम अधिकाधिक स्वावलंबी होते जा रहे हैं। शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने वाली नीति बननी चाहिए, यह अत्यंत उचित विचार है और नयी शिक्षा नीति के तहत उस ओर शासन/ प्रशासन पर्याप्त ध्यान भी दे रहा है।

भागवत ने कहा, ‘‘ नयी शिक्षा नीति के कारण छात्र एक अच्छा मनुष्य बने, उसमें देशभक्ति की भावना जगे, वह सुसंस्कृत नागरिक बने, यह सभी चाहते हैं। समाज को इसका सक्रियता से समर्थन करने की जरूरत है।’’

उन्होंने कहा कि कोई भी कार्य कम महत्वपूर्ण या कम प्रतिष्ठित नहीं होता है, चाहे वह हाथ से किया जाने वाला हो, वित्तीय या बौद्धिक श्रम हो। हम सबको यह बात समझनी होगी और उसी के अनुरूप आचरण करना होगा।

उन्होंने उदयपुर और अमरावती में भाजपा की एक निलंबित प्रवक्ता का समर्थन करने पर एक दर्जी तथा एक दवा दुकानदार की हत्या किए जाने की घटनाओं के संदर्भ में कहा कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए ।

उन्होंने कहा कि अभी पिछले दिनों उदयपुर में एक अत्यंत ही जघन्य एवं दिल दहला देने वाली घटना घटी, जिससे सारा समाज स्तब्ध रह गया।

भागवत ने कहा ‘‘ अधिकांश समाज दु:खी एवं आक्रोशित था, ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो यह सुनिश्चित करना होगा क्योंकि ऐसी घटनाओं के मूल में पूरा समाज नहीं होता।’’

उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसी घटना घटने के बाद हिन्दुओं पर आरोप लगने की स्थिति में मुखरता से विरोध और निषेध व्यक्त करता है।

संघ प्रमुख ने कहा कि सबको सदैव क़ानून एवं संविधान की मर्यादा में रहकर अपना विरोध प्रगट करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘ समाज जुड़े – टूटे नहीं, झगड़े नहीं, बिखरे नहीं। मन-वचन-कर्म से यह भाव मन में रखकर समाज के सभी सज्जनों को मुखर होना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि हम दिखते भिन्न और विशिष्ट हैं, इसलिए हम अलग हैं, हमें अलगाव चाहिए….इस असत्य के कारण “भाई टूटे, धरती खोयी, धर्मसंस्थान मिटे’’- यह विभाजन का ज़हरीला अनुभव लेकर कोई भी सुखी नहीं हुआ है।

सरसंघचालक ने कहा ‘‘हम भारत के हैं, भारतीय पूर्वजों के हैं, भारत की सनातन संस्कृति के हैं, समाज व राष्ट्रीयता के नाते एक हैं और यही हमारा तारक मंत्र है।’’

भागवत ने कहा कि अब जब संघ को लोगों का भरोसा और प्यार मिल रहा है और वह मजबूत हो रहा है तो ‘हिंदू राष्ट्र’ की अवधारणा को भी गंभीरता से लिया जा रहा है।

उन्होंने कहा ‘‘परन्तु हिन्दू शब्द का विरोध करते हुए अन्य शब्दों का उपयोग करने वाले लोग भी हैं, लेकिन हमारा उनसे कोई विरोध नहीं। आशय की स्पष्टता के लिए हम, हमारे लिए हिन्दू शब्द का आग्रह रखते रहेंगे।’’

उन्होंने कहा कि अन्याय, अत्याचार, द्वेष का सहारा लेकर गुंडागर्दी करने वाले जब समाज में शत्रुता करते हैं तो आत्मरक्षा अथवा आप्तरक्षा सभी का कर्तव्य बन जाता है।

संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘ ना भय देत काहू को, ना भय जानत आप”, ऐसा हिन्दू समाज खड़ा हो, यह समय की आवश्यकता है। ’’

संघ प्रमुख ने कहा कि संघ के कार्यक्रमों में अतिथि के नाते महिलाओं की उपस्थिति की परम्परा पुरानी है।

भागवत ने कहा ‘‘सभी कार्यों में महिला, पुरुष की सहभागिता होती है, भारतीय परम्परा में इसी पूरकता की दृष्टि से विचार किया गया है लेकिन हमने उस दृष्टि को भुला दिया, तथा मातृशक्ति को सीमित कर दिया। ’’

उन्होंने कहा कि हमें महिलाओं के साथ समानता का व्यवहार करने एवं उन्हें अपने निर्णय स्वयं लेने की स्वतंत्रता देकर सशक्त बनाने की आवश्यकता है।

भागवत ने कहा कि कुछ बाधाएं सनातन धर्म के समक्ष रूकावट बन रही हैं जो भारत की एकता एवं प्रगति के प्रति शत्रुता रखने वाली ताकतों द्वारा सृजित की गई हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी ताकतें गलत बातें एवं धारणाएं फैलाती हैं, अराजकता को बढ़ावा देती हैं, आपराधिक कार्यों में संलग्न होती हैं, आतंक तथा संघर्ष एवं सामाजिक अशांति को बढ़ावा देती हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘ केवल समाज के मजबूत एवं सक्रिय सहयोग से ही हमारी समग्र सुरक्षा एवं एकता सुनिश्चित की जा सकती है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ शासन व प्रशासन के इन शक्तियों के नियंत्रण व निर्मूलन के प्रयासों में हमें सहायक बनना चाहिए। समाज का सबल व सफल सहयोग ही देश की सुरक्षा व एकात्मता को पूर्णत: निश्चित कर सकता है।’’

उन्होंने कहा कि संविधान के कारण राजनीतिक तथा आर्थिक समता का पथ प्रशस्त हो गया, परन्तु सामाजिक समता को लाये बिना वास्तविक व टिकाऊ परिवर्तन नहीं आयेगा, ऐसी चेतावनी बाबा साहब आंबेडकर ने सभी को दी थी।

उन्होंने कहा, ‘‘ हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमारे मित्रों में सभी जातियों एवं आर्थिक समूहों के लोग हों ताकि समाज में और समानता लाई जा सके।’’

सरसंघचालक ने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों में स्वार्थ व द्वेष के आधार पर दूरियां और दुश्मनी बनाने का काम स्वतन्त्र भारत में भी चल रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे तत्वों के बहकावे में न फंसते हुए, उनके प्रति निर्मोही होकर निर्भयतापूर्वक उनका निषेध व प्रतिकार करना चाहिए।

सरसंघचालक ने श्रीलंका की संकट में मदद करने और यूक्रेन संघर्ष का उल्लेख करते हुए कहा कि इन घटनाक्रम से स्पष्ट है कि हमारे देश की बात दुनिया में सुनी जा रही है और राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर भारत अधिक आत्मनिर्भर बन रहा है।

सरसंघचालक ने कहा कि भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में आर्थिक तथा विकास नीति रोजगार- उन्मुख हो, यह अपेक्षा स्वाभाविक ही की जाएगी लेकिन रोजगार का मतलब केवल नौकरी नहीं है, …यह समझदारी समाज में भी बढ़ानी पड़ेगी।

संघ प्रमुख ने कहा कि समाज का सबल व सफल सहयोग ही देश की सुरक्षा व एकात्मता को पूर्णत: निश्चित कर सकता है क्योंकि समाज की सशक्त भूमिका के बिना कोई भला काम अथवा कोई परिवर्तन यशस्वी व स्थायी नहीं हो सकता ।

भागवत ने कहा कि सभी जिलों में विकेंद्रीकृत रोजगार प्रशिक्षण एवं गांवों के विकास के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, यात्रा सुगमता के क्षेत्र में निवेश महत्वपूर्ण हैं।

भाषा दीपक दीपक नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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