एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में वरवर राव को 18 नवंबर तक समर्पण करने की आवश्यकता नहीं: अदालत |

एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में वरवर राव को 18 नवंबर तक समर्पण करने की आवश्यकता नहीं: अदालत

एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में वरवर राव को 18 नवंबर तक समर्पण करने की आवश्यकता नहीं: अदालत

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:50 PM IST, Published Date : October 26, 2021/6:23 pm IST

मुंबई, 26 अक्टूबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी कवि वरवर राव को 18 नवंबर तक तलोजा जेल के अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने की जरूरत नहीं है। अदालत ने इस संबंध में आरोपी की याचिका पर सुनवाई 18 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी।

अदालत ने 82 वर्षीय राव को इस साल 22 फरवरी को चिकित्सा आधार पर छह महीने के लिए अंतरिम जमानत दी थी। उन्हें पांच सितंबर को समर्पण कर न्यायिक हिरासत में लौटना था।

राव ने पिछले महीने अपने वकील आर सत्यनारायणन और वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर के माध्यम से आवेदन दायर कर जमानत की अवधि बढ़ाने का आग्रह किया था। उन्होंने अदालत से जमानत पर अपने गृहनगर हैदराबाद में रहने की अनुमति भी मांगी थी।

हालांकि, मामले में जांच कर रहे राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने चिकित्सा जमानत बढ़ाने और हैदराबाद जाने का आग्रह करने वाली राव की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी की मेडिकल रिपोर्ट से यह संकेत नहीं मिलता है कि वह किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है।

एनआईए ने पिछले महीने उच्च न्यायालय में दायर अपने हलफनामे में कहा था कि राव की मेडिकल रिपोर्ट में किसी भी बड़ी बीमारी की बात सामने नहीं आई है जिससे कि आरोपी को हैदराबाद में इलाज करने की आवश्यकता हो और न ही यह जमानत के विस्तार के लिए कोई आधार है।

न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एसवी कोतवाल की पीठ ने आज समय की कमी के कारण राव की याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी।

पीठ ने राव से चिकित्सा जमानत पर बाहर रहने के दौरान अपने गृहनगर जाने की अनुमति मांगने के लिए अलग से याचिका दायर करने को भी कहा।

उच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम जमानत पर लगाई गई कड़ी शर्तों के तहत राव अपनी पत्नी के साथ मुंबई में किराए के मकान में रह रहे हैं।

राव को जिस समय जमानत दी गई थी, उस समय उनका महानगर स्थित निजी नानावती अस्पताल में कई बीमारियों का इलाज चल रहा था, जहां उन्हें उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद महाराष्ट्र जेल के अधिकारियों ने भर्ती कराया था।

यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित ‘एल्गार परिषद’ सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि इसकी वजह से शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा हुई थी।

पुणे पुलिस ने दावा किया था कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था। मामले में एक दर्जन से अधिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया है। इसकी जांच बाद में एनआईए को सौंप दी गई थी।

भाषा नेत्रपाल अनूप

अनूप

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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