गैस त्रासदी के 35 बरस, दंश का अब तक अभिशाप झेल रही तीसरी पीढ़ी | 35 years of gas tragedy, the third generation still faces the curse of the bite

गैस त्रासदी के 35 बरस, दंश का अब तक अभिशाप झेल रही तीसरी पीढ़ी

गैस त्रासदी के 35 बरस, दंश का अब तक अभिशाप झेल रही तीसरी पीढ़ी

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:52 PM IST, Published Date : December 1, 2019/4:02 am IST

भोपाल, मध्यप्रदेश। गैस त्रासदी के 35 साल बाद आज भी हालत जस के तस हैं। अगर हम गैस पीडितों की तीसरी पीढ़ी से बात करें तो वो आज भी विभत्स त्रासदी का दंश झेल रही हैं। आज तीन पीढ़ियों के बाद भी गैस काण्ड का असर भोपाल में जन्म लेने वाले बच्चों पर साफ़ नजर आता है।

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एक बहुत पुरानी कहावत है, वक्त सारे घाव भर देता है। लेकिन, भोपाल के यूनियन कार्बाइड में जहरीली गैस रिसाव से हुई दुनिया की भीषणतम औद्योगिक गैस त्रासदी के पीड़ितों के घाव 35 साल बाद भी नहीं भर पाए हैं। शारीरिक और मानसिक आघातों से उबरने में उन्हें न जाने अभी कितना और वक्त लगेगा। गैस त्रासदी की विभीषिका झेल चुके कई परिवारों के हालात आज भी बदतर बने हुए हैं। कुछ गैस पीड़ित तो जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। कई बच्चे लंबे इलाज के बाद भी पूरी तरह ठीक नहीं हो पा रहे हैं। वहीं गैस पीड़ित बस्तियों में लोग नारकीय जीवन जी रहे हैं।

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इस भीषण त्रासदी को झेलने के लिए इनमें से कई को सरकारी सहायता तो दूर, पर्याप्त मुआवजा भी नहीं मिल पाया है, जिन परिवारों में इस प्रकार के बच्चों ने जन्म लिया, उनमें वह पहले जैसी जीने के उमंग अब नहीं बची है। मगर, अपने बच्चे को किसी लायक बना देने की ललक ने उन्हें जिंदा रखा हुआ है। इन बच्चों के उचित उपचार की व्यवस्था का मामला न जाने कितने सालों तक खींचा जाएगा। हालात ये है कि इन बस्तियों में पैदा होने वाले कई बच्चे शारीरक बीमारी के साथ मानसिक रूप से भी कमजोर हैं।कई बच्चे तो ऐसे है जो न बोल सकते है न ही कुछ बता सकते हैं।

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सत्तासीन लोगों के लिए भले ही खौफनाक मंजर को भुलाना आसान होता हो मगर इससे रूबरू होने वाले के लिए जिंदगी गुजार पाना बहुत मुश्किल बन जाता है। औद्योगिक त्रासदियों का सामना दुनिया के अन्य देश भी कर चुके हैं, लेकिन वहां उन्होंने रोने और इल्जाम लगाने में वक्त नहीं गंवाया, बल्कि एक ऐसी कारगर नीति तैयार की ताकि प्रत्येक बच्चे को कदम-से-कदम मिलाकर साथ आगे बढ़ने और सम्मानपूर्वक जीवन-यापन करने का साहस मिल सके। लेकिन, भोपाल गैस त्रासदी जैसी देश और दुनिया को हिलाकर रख देने वाली घटना के बाद भी सिर्फ चेहरे बदलने का खेल खेला गया। कभी बीजेपी की सरकार आई तो कभी कांग्रेस की पर गैस पीड़ितों के जख्मों पर किसी ने मरहम लगाने की जरूरत नहीं समझी।

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