ब्यावरा की चुनावी बिसात में कौन मारेगा बाजी, चुनाव नया.. समस्याएं पुरानी | Battle for Byavra by-election

ब्यावरा की चुनावी बिसात में कौन मारेगा बाजी, चुनाव नया.. समस्याएं पुरानी

ब्यावरा की चुनावी बिसात में कौन मारेगा बाजी, चुनाव नया.. समस्याएं पुरानी

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:06 PM IST, Published Date : October 4, 2020/10:14 am IST

ब्यावरा। मध्यप्रदेश की सियासत में ब्यावरा विधानसभा सीट का अलग ही मुकाम है। जितनी उलझी हुई यहां की राजनीति है। उतना ही मुश्किल यहां के मतदाता को समझना है। दरअसल जितने चुनाव हुए हैं इस सीट पर दो बार लगातार ना कोई पार्टी जीत पाई और ना ही कोई प्रत्याशी। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के गोवर्धन दांगी पर जनता ने भरोसा करके इस सीट से विधायक बनाया लेकिन गोवर्धन दांगी के निधन हो जाने के कारण ये सीट एक बार फिर उपचुनाव के लिए तैयार है।

पढ़ें- 2 हजार से कोई कम नहीं, स्वीपर को भी पैसे देने होंगे.. डिलीवरी के लि…

राजस्थान की सीमा से लगे राजगढ़ जिले की ब्यावरा विधानसभा की फिजा भी राजस्थान जैसी ही है। यहां जनता हर बार पार्टी और प्रत्याशी को बदल देती है। यानी हर बार यहां की जनता से पटकनी खाते हैं विधायक और राजनैतिक दल। जनता के डर के कारण यहां से जीत हासिल करने वाली पार्टियों को कई बार वर्तमान विधायकों का टिकट काटना पड़ा है। इसके बाद भी जनता ने किसी भी दल को दूसरी बार विजेता होने का तमगा ही नहीं दिया। विधानसभा चुनावों में ये परंपरा 1957 से चली आ रही है। लेकिन ऐसा एक बार भी नहीं हुआ जब कोई एक पार्टी या विधायक लगातार दूसरी बार जीत हासिल कर पाया हो।

पढ़ें-नरसिंहपुर गैंगरेप केस, चीचली थाना प्रभारी अनिल सिंह निलंबित, गिरफ्त.

अब 2020 में उपचुनाव की बारी है…क्षेत्र की जनता का कहना है कि प्रत्याशी उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते इसलिए हम पार्टी के साथ विधायक बदल देते हैं। फिलहाल बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दल उपचुनाव में जीत के दावें कर रहे हैं…बीजेपी का कहना है कि ब्यावर सीट पर दूसरी बार उसके रिपीट नहीं होने का कारण टिकट वितरण रहा है तो कांग्रेस का कहना है कि इस उपचुनाव में ये परंपरा टूटने जा रही है और 2018 के बाद अब 2020 में फिर से ब्यावरा सीट कांग्रेस की झोली में आएगी।

पढ़ें- श्री बजरंग पावर एंड इस्पात लि. ने दी एम्बुलेंस,…

एक बार बीजेपी का विधायक तो दूसरी बार कांग्रेस की बारी। लंबे समय से ये परंपरा चली आ रही है। लेकिन इस बार विधानसभा में उपचुनाव होने जा रहे हैं। यानी कांग्रेस का पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं हो पाया है।पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं होने से अब अगले तीन साल और कांग्रेस को ही मौका मिलेगा या इस बार बीजेपी का नंबर आने वाला है। इसको लेकर लगातार कयास लगाए जा रहे हैं।

पढ़ें- #IBC24AgainstDrugs, नशे के खिलाफ IBC24 की मुहिम…

ब्यावरा विधानसभा में सियासी चमक-दमक तो दिखाई देती है लेकिन विकास का आइना धुंधला दिखाई देता है। हालत ये कि बुनियादी सुविधाओं तक के लिए तरस रही है विधानसभा में विकास का खाका ऐसा है कि विधानसभा से होकर गुजरा एकमात्र नेशनल हाइवे ही इस विधानसभा की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जाती है। बाकी विकास की बात करें तो पूरी विधानसभा की स्थिति दयनीय ही है। यानी चुनाव से पहले हर बार विकास के बड़े-बड़े दावे और वादे किए गए। लेकिन ब्यावरा की जनता आज भी क्षेत्र के विकास से दूर है।

पढ़ें- सुरक्षा गार्ड को बंधक बनाकर करीब 31 लाख की लूट, नका…

उपचुनाव की तारीखों का ऐलान होने से पहले ही मध्य प्रदेश की बाकी सीटों पर उपचुनाव का रंग देखने को मिलने लगा था लेकिन चुनाव की तारीख तय होने के बाद भी ब्यावरा में चुनावी रंग देखने को नहीं मिल रहा है। कारण है चुनाव लड़ने वाले नेताओं से लेकर राजनैतिक दलों को पता है कि ब्यावरा में दिखावे से कुछ नहीं होने वाला। प्रचार करना ही है तो बाहरी आडंबर से दूर रहकर लोगों से व्यक्तिगत संपर्क साधना ज्यादा उचित है। ब्यावरा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के प्रभाव वाली सीट मानी जाती है। इसके बाद भी कांग्रेस कभी भी दूसरी बार जीत नहीं पाई है।

पढ़ें- मंत्री शिव डहरिया को ‘गेट वेल सून’ वाले कार्ड सौंपे…

चुनाव आने पर इन्हीं मुददों को विपक्षी दल जोरशोर से उठाते है और इसका विपक्ष को लाभ भी मिलता है। ब्यावरा में ऐसा हर चुनाव में होता आया है। यही कारण है कि चुनाव में वर्तमान विधायक या फिर वर्तमान विधायक का टिकट काटने के बाद भी उस पार्टी को मुंह की खानी पड़ी है और हर बार जीत दूसरे दल की ही हुई है। एक बार बीजेपी तो दूसरी बार कांग्रेस। ब्यावरा विधानसभा के चुनाव की परंपरा बन गई है और चुनाव के दौरान विपक्षी दल बकायदा लोगों को ये परंपरा याद भी दिलाते हैं। लेकिन चुनावी माहौल है तो दोनों प्रमुख दल बीजेपी और कांग्रेस। अब दावा कर रहे हैं कि इस बात जीत उनकी पार्टी की ही होगी।

पढ़ें- भाजपा ने कहा बलरामपुर रेप पीड़िता से भी मिलें राहुल-प्रियंका, उन्हे भेजेंगे प्लेन टिकिट, कांग्रेस का पलटवार बोले पीएम को भेजें टिकिट

ब्यावरा में जातीय समीकरण की बात करें तो यहां दांगी, सौंधिया, गुर्जर और यादव जाति के वोटर्स चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। वहीं ब्राहमण, राजपूत और वैश्य समाज के मतदाता भी अच्छी संख्या में है। ब्यावरा में अब तक का विकास का खांका इस तरह का रहा है कि इस बार फिर सीट फतह करने की तैयारियों में जुटे दोनों प्रमुख दलों के पास ऐसा कोई ठोस मुददा नहीं है, जिसके आधार पर वो लोगों से डंके की चोट पर वोट मांग सकें।