सूबे के मुखिया का आदिवासी दांव | chhattisgarh congress and tribal of chhattisgarh

सूबे के मुखिया का आदिवासी दांव

सूबे के मुखिया का आदिवासी दांव

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:12 PM IST, Published Date : January 3, 2019/10:38 am IST

छत्तीसगढ़ में 15 बरस के बाद कांग्रेस की सरकार एक्शन में है। इस कड़ी में सीएम भूपेश बघेल ने सबसे पहले शासन-प्रशासन का चेहरा बदलने की कोशिश की है। मंत्रिमंडल में चिर परिचित चेहरों के साथ नए चेहरों को भी शामिल किया गया। इसी तरह प्रशासन में भी फेरबदल कर अलग अलग संदेश देने की कोशिश की गई। पुलिस महकमे में उलटफेर के बाद प्रशासनिक मुखिया के पद पर 86 बैच के आईएएस सुनील कुजूर को बिठाया गया। भले ही यह रुटीन प्रशासनिक फेरबदल कहा जा सकता है, लेकिन इसके राजनीतिक मायने को भी भांपने की जरुरत है। जैसा कि हम सभी वाकिफ हैं कि छत्तीसगढ़ में इस बार कांग्रेस को आदिवासी इलाकों से अभूतपूर्ण जीत मिली है। बस्तर की 12 में से 11 और सरगुजा की पूरी की पूरी आदिवासी सीटें कांग्रेस की झोली में गिरी है, लेकिन मंत्रिमंडल का आकार सीमित होने के कारण तमाम आदिवासी विधायकों को पद देना संभव नहीं है। यही वजह है कि आदिवासी अफसर को प्रशासनिक मुखिया का पद देकर संदेश देने की कोशिश की गई है कि कांग्रेस शासनकाल में आदिवासियों की उपेक्षा नहीं की जाएगी। हालांकि यह एकमात्र कारण नहीं है, लेकिन यह एक बड़ा कारण है। यह भी सही है कि अजय सिंह के कार्यकाल में प्रशासनिक अराजकता की शिकायतें बढ़ गई थी, लेकिन अजय सिंह से काफी जूनियर सुनील कुजूर को आदिवासी होने का फायदा बेशक मिला है। 

 

दरअसल, आने वाले समय में लोकसभा के चुनाव है और फिलहाल राज्य की 11 लोकसभा सीटों में 10 बीजेपी के पास है। ऐसे में बीजेपी से उन सीटों को हासिल करना आसान काम नहीं है, क्योंकि कम समय में समाज, भाषा, क्षेत्र को साधना जरुरी है। सरकार बनने के बाद सभी पद मिलने की अपेक्षा पाले हुए हैं, लेकिन मंत्रिमंडल के सीमित आकार के कारण सभी की अपेक्षाओं को पूरा करना संभव भी नहीं है। गौर करने लायक बात यह भी है कि इतने कम समय में कामकाज के लिहाज से सरकार को चमत्कार कर नहीं सकती। लोकसभा चुनाव के लिए समय कम बचा है। उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी भरकम जीत मिली है, लिहाजा लोकसभा चुनाव में भी ऐसे ही अप्रत्याशित जीत की अपेक्षा है। स्वाभाविक है कि इस अपेक्षा को पूरा करने की जिम्मेदारी सरकार के मुखिया की है। ऐसे में समाज, भाषा और क्षेत्र के हिसाब से संतुलन बनाना उनकी सियासी जरुरत है। उन्होंने मौके की नजाकत को भांपते हुए बड़ी चतुराई से आदिवासी समाज को साधने के लिए दांव खेला है। अब देखना होगा कि उनका यह दांव कितना कारगर होता है।

 
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