जंगल में गूंजी नवजात की किलकारी, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने झाड़ियों के बीच कराया महिला का प्रसव | Health workers deliver woman among bushes in Narayanpur

जंगल में गूंजी नवजात की किलकारी, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने झाड़ियों के बीच कराया महिला का प्रसव

जंगल में गूंजी नवजात की किलकारी, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने झाड़ियों के बीच कराया महिला का प्रसव

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:18 PM IST, Published Date : April 24, 2020/4:49 pm IST

नारायणपुर: कोरोना वायरस (कोविड-19) देश में लोगों की जिंदगी लेने पर तुला हुआ है। वहीं नक्सल प्रभावित जिला नारायणपुर में जिंदगी बचाने का काम किया जा रहा है। स्वास्थ्य कार्यकर्ता ने अबूझमाड़ के प्रवेश द्वारा के नाम से विख्यात ग्राम कुरूषनार के घने जंगल-झाड़ियों के बीच सुरक्षित प्रसव कराया। बच्चे की किलकारियों के आगे मानो ऐसा लगा कि जंगल-पहाडों ने झुक कर सलाम किया हो। यह बात खबर लिखने के लगभग 55 घंटे पहले यानि 24 तारीख सुबह की है। इस तरह संकट में दो जानें एक मां और बच्चे की समय रहते बच गयी।

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माड़ के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को जीवनदायनी कहूं या पूज्यनीय मेरे पास शब्दों का टोटा पड़ गया है। आज फिर लगभग 38 साल पुरानी बिहार राज्य के दशरत मांझी की कहानी याद आ गयी। जिसकी पत्नी खाना ले जाते समय पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनकी मृत्यु हो गयी थी। मांझी पत्नी की पीड़ा और अपनी लाचारी को ता उम्र नही भूला। पहाड़ रास्ता न रोकता तो, अस्पताल की दूरी बहुत कम हो जाती और उसकी जान बच जाती। लेकिन पहाड़ रास्ता रोके खड़ा था। माँझी ने उसी पहाड़ के सीने में लगभग 22 साल तक छेनी हथौड़ा लेकर ऐसे वार किया कि पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया, जो देश के लिए एक मिशाल है।

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पहले आपको बतादें कि कुरूषनारा गांव में ग्रामीण स्वास्थ्य संयोजिका श्रीमती चंद्रकिरण नाग और कमलेश करंगा कोरानो से बचाव संबंधी कार्य के साथ टीकाकरण और मलेरिया की जांच कर रहे थे। तभी गांव की मितानिन से सूचना मिली कि सुदूर ईलाके के पारा में लगभग 3-4 किलोमीटर दूर गर्भवती महिला प्रसव पीड़ा से कहरा रही है। श्रीमती नाग ने स्थिति की गंभीरता को समझ कर बिना समय गवाएं दौड़ पड़ी। वह अपने साथी को एम्बुलेंस के लिए फोन लगाने की बात कह कर गयी। जैसे तैसे जंगल-पहाड़ को लांघ कर वह गर्भवती महिला के पास पहुंची, जिसकी स्थिति गंभीर और व्याकुल करने वाली थी।

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इधर उसका साथी मोबाइल नेट नहीं होने से एम्बुलेंस को फ़ोन नहीं लगा पा रहा था। कहा जाता है विषम परिस्थियों में बुद्धि या तो काम करना बंद कर देती है, या फिर तेज चलने लगती है। करंगा ने एक पेड़ पर चढ़कर मोबाईल में नेट का प्रयास किया। उसका प्रयास सफल रहा। एम्बुलेंस वाले को फोन लगा, लेकिन एम्बुलेंस कही और होने के कारण देरी होने की बात कही। दूसरी और महिला स्वास्थ्य संयोजिका ने हिम्मत नहीं हारी। वह धीरे-धीरे गर्भवती सुगन्ती पति बालसिंह को पैदल स्वास्थ्य केन्द्र तक चलने के लिए प्रेरित किया। कुछ दूर चलने के बाद गर्भवती सुगन्ती की हिम्मत और हौसला टूटने लगा। हौसले को टूटने नहीं देने चंद्रकिरण ने कुछ दूर अपनी पीठ पर लेकर चली और कुछ दूर तक मितानिन ने भी उसका भरपूर साथ दिया।

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उन्होंने ऊबड़-खाबड़, पथरीले पगडंडियों, जंगल-पहाड़ टीलों और नालों को पार किया। ज्यादा प्रसव पीड़ा देख स्वास्थ्य कार्यकर्ता चंद्रकिरण ने आसपास वनोपज बिनने आयी महिलाओं को बुलाकर जंगल-झांडियों में ही सुरक्षित प्रसव कराने का फैसला लिया। उसका यह कार्य सफल रहा और सुगन्ती ने एक स्वस्थ बच्चे (बालक) को जन्म दिया। खड़ी महिलाओं ने ताली बजाकर चंद्र किरण, करंगा और मितानिन का शुक्रिया अदा किया । इतने में कुछ दूर चलने के बाद एम्बुलेंस पहुंच गयी। जहां जच्चा-बच्चा को नारायणपुर जिला अस्पताल रेफर किया। अस्पताल में उनका ज़रूरी उपचार चल रहा है। डाक्टरों के अलावा मैदानी स्वास्थ्य अमले पर काम का दबाव बहुत अधिक होता है, लेकिन उनकी एक सांत्वना मरीज और उसक परिजन पर मुस्कान लाने के लिए काफी होती है।

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