आज के दिन धन के देवता कुबेर के साथ ही आरोग्य के देवता धनवंतरी की भी पूजा की जाती है। लेकिन क्या आप जानते है कि खरगोन जिले के दसनावल गांव में भगवान धनवंतरी का समाधि स्थल है। धनतेरस के दिन चिकित्सा जगत के लोग यहां आकर भगवान धनवंतरी की पूजा करते है। खरगोन जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर दसनावल गांव में भगवान धनवंतरी का समाधि स्थल है। मान्यता है… कि ये वही स्थल है… जहां भगवान धनवंतरी ने अपने प्राण त्यागे थे। दरअसल इसके पीछे एक कहानी है।
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मान्यता है… कि श्रृंगी ऋषि के बेटे ने राजा परीक्षित को एक श्राप दिया था, कि उन्हें तक्षक नाग डस लेगा… भगवान धनवंतरी इस श्राप से राजा परीक्षित को बचाने के लिए निकले… इधर तक्षक नाग राजा परीक्षित को डसने निकला। इस दौरान दसनावल गांव में भगवान धनवंतरी और तक्षक नाग का आमना सामना हुआ। तक्षक नाग ने भगवान धनवंतरी की परीक्षा लेने के लिए अपनी फूंकार से हरे भरे बरगद के पेड़ को सूखा दिया। जिसे भगवान धनवंतरी ने अपनी विद्या से फिर हरा भरा कर दिया, अब तक्षक नाग को लगा… कि वो राजा परीक्षित को डसेगा… तो भगवान धनवंतरी उसे अपनी विद्या से ठीक कर देंगे।
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लिहाजा तक्षक नाक ने अपनी योजना बदली और लकड़ी की कुबड़ी का रूप धारण उस रास्ते में लेट गया, जहां से भगवान धनवंतरी गुजर रहे थे। तभी भगवान धनवंतरी ने रास्ते में पड़ी लकड़ी की कुबड़ी उठाई और अपनी पीठ पर टांग ली… तभी तक्षक नाग ने भगवान धनवंतरी की पीठ पर डस लिया। ऐसी मान्यता है, कि भगवान धनवंतरी की नजर जहां पड़ती है। वहां असाध्या रोग भी ठीक हो जाते है, लेकिन तक्षक नाग ने उनकी पीठ पर डसा था, और उनकी दृष्टि उनकी पीठ पर नहीं पड़ सकी… इसलिए उनकी मौत हो गई… जिसके बाद इसी स्थान पर भगवान धनवंतरी का समाधि स्थल बनाया गया। जहां धनतेरस के दिन चिकित्सा जगत के लोग आकर पूजा अर्चना करते है।
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