पानसेमल की भौगोलिक स्थिति
अब बात करते हैं मध्यप्रदेश की पानसेमल विधानसभा सीट की..
बड़वानी जिले में आती है पानसेमल विधानसभा
2008 में राजपुर से अलग होकर अस्तित्व में आया
अति पिछड़ी विधानसभा क्षेत्रों में शामिल
95 ग्राम पंचायतें और तीन नगर परिषद शामिल
कुल जनसंख्या – 3 लाख 13 सौ
कुल मतदाता- 2 लाख 23 हजार 621
सीट पर करीब 68 फीसदी अनुसूचित जनजाति के मतदाता
वर्तमान में सीट पर बीजेपी का कब्जा
बीजेपी के दीवान सिंह पटेल हैं विधायक
पान सेमल विधानसभा क्षेत्र की सियासत
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की बोर्डर से लगी पानसेमल विधानसभा सीट प्रदेश के पिछड़ी विधानसभा क्षेत्रों में शामिल है.. सियासी इतिहास की बात करें तो यहां की जनता कांग्रेस और बीजेपी दोनों नेताओं को बारी-बारी से मौका देती रही है…पानसेमल में जाति समीकरण भी हर बार चुनावी नतीजों को प्रभावित करता है..यही वजह है कि सियासी पार्टियां यहां अपना उम्मीदवार चुनने में खास ध्यान रखती है।
बड़वानी जिले की पानसेमल विधानसभा सीट की राजनीति में हमेशा से बीजेपी और कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है.. इनके अलावा कोई और दूसरी राजनीतिक पार्टी यहां अपनी जड़ें जमाने में अब तक नाकाम रही.. ..पानसेमल की सियासी इतिहास की बात की जाए तो .. 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आए इस सीट पर कांग्रेस के बाला बच्चन ने भाजपा के कन्हैयालाल सिसोदिया को हराकर यहां जीत दर्ज की थी.. वहीं 2013 में दीवान सिंह पटेल ने कांग्रेस की चंद्रभागा किराडे को हराकर ये सीट कांग्रेस से छीन ली.. ऐसे में कांग्रेस दोबारा इस सीट को हासिल करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है..हालांकि इस काम में बीजेपी की अंदरूनी गुटबाजी उसकी मदद कर सकती है….दरअसल टिकट दावेदारी को लेकर बीजेपी यहां दो धड़ों में बंटा नजर आता है…एक धड़ा वर्तमान विधायक दीवान सिंह पटेल के साथ खड़ा नजर आता है..तो दूसरा धड़ा पार्टी के टिकट से 2008 में चुनाव हार चुके कन्हैयालाल सिसोदिया के साथ नजर आता है.. वहीं कांग्रेस में भी टिकट के लिए घमासान मचना तय है। कांग्रेस इस बार यहां से किसी स्थानीय चेहरे को मौका देना चाहती है..लेकिन बाला बच्चन भी यहां से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं..वहीं 2013 में चुनाव हारे चंद्रभागा किराड़े भी टिकट की रेस में शामिल हैं।
हालांकि पानसेमल में चुनाव जीतने के लिए जाति समीकरण का भी ध्यान रखना जरूरी है।
इस विधानसभा क्षेत्र में करीब 68 फीसदी मतदाता अनुसूचित जनजाति से आते हैं..इसी समीकरण को ध्यान में रखकर पार्टियां यहां अपना उम्मीदवार तय करती है..बाकि दूसरी जातियों की बात करें तो एससी से 12 फीसदी वोटर हैं..वहीं ओबीसी के 6 और अन्य 14 फीसदी मतदाता हैं।
इस तरह यहां की सियासत में मुद्दों के साथ साथ जाति समीकरण भी पार्टी और प्रत्याशियों की किस्मत तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
हर बार चुनावी साल में नेता पानसेमल की जनता से बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं..लेकिन चुनाव खत्म होते ही सारे वादे हवा में गायब हो जाते हैं..ऐसे में पानसेमल की जनता पुराने वादों का हिसाब करने के लिए तैयार है। जाहिर है इनका जवाब नेताजी को देना होगा।
2008 के परिसीमन के बाद राजपुर से अलग होकर अस्तित्व में आई पानसेमल विधानसभा क्षेत्र एक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। अति पिछड़ी इस विधानसभा क्षेत्र के लोग आज भी अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए भटक रहे हैं। सरकार ने पिछले कई वर्षों से चल रही खेतिया सेंधवा सड़क मार्ग की मांग तो पूरी कर दी.. लेकिन स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी पिछड़ा है… शिक्षा की बात करें तो सरकारी महाविद्यालय में गणित और विज्ञान जैसे विषयों में शिक्षक की कमी से छात्र परेशान हैं.. वहीं पिछले 10 वर्षों में कोई उद्योग नहीं लगने से रोजगार के लिए भी कोई खास व्यवस्था नजर नहीं आती। जिससे लोग रोजी मजदूरी के लिए महाराष्ट्र का रूख करते हैं…यहां के किसान आज भी पारंपरिक खेती पर ही निर्भर हैं सिंचाई संसाधनों के अभाव में किसान एक ही फसल लेने को मजबूर हैं.. पानसेमल विधानसभा क्षेत्र में स्वास्थ्य की स्थिति भी बदहाल है.. सोनोग्राफी की कोई व्यवस्था नहीं होने की वजह से मरीजों को महाराष्ट्र या बड़वानी जाना पड़ता है…इसके अलावा मध्यप्रदेश में सिकलसेल के सबसे ज्यादा मरीज इसी क्षेत्र में पाए जाते हैं। ..कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि पानसेमल विधानसभा के लोगों को आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
अब बात करते हैं मध्यप्रदेश की ब्यौहारी विधानसभा की
शहडोल जिले में आती है ब्यौहारी विधानसभा
अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है सीट
1 नगर पंचायत और 149 ग्राम पंचायत शामिल
संजय टाईगर रिजर्व बफर जोन के लिए प्रसिद्ध
कुल मतदाता- 2 लाख 84 हजार
एसटी मतदाता- 56 फीसदी
ब्राह्मण मतदाता- 28 फीसदी
वर्तमान में सीट पर कांग्रेस का कब्जा
कांग्रेस के रामपाल सिंह हैं विधायक
ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र की सियासत
सीधी लोकसभा संसदीय क्षेत्र में आने वाली ब्यौहारी विधानसभा सीट में एक बार फिर सियासी हलचल तेज होने लगी है..कांग्रेस की परंपरागत सीटों में से एक ब्यौहारी विधानसभा पर फिलहाल कांग्रेस का ही कब्जा है..इस बार भी कांग्रेस में टिकट के लिए वर्तमान विधायक रामपाल सिंह का दावा सबसे मजबूत हैं..वहीं बीजेपी में टिकट के लिए कई नेता अपनी दावेदारी पेश करने में लगे हैं।
आदिवासी बहुल वनांचल क्षेत्र ब्यौहारी विधानसभा सीट परिसीमन के बाद अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है..सीधी लोकसभा संसदीय क्षेत्र में आने वाली ब्यौहारी विधानसभा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है…हालांकि 2008 में बीजेपी की टिकट पर बली सिंह मरावी यहां से चुनाव जीते..लेकिन कांग्रेस ने 2013 मे दोबारा इस सीट पर कब्जा कर लिया..कांग्रेस के रामपाल सिंह ने बीजेपी के राम प्रसाद सिंह परस्ते को हराकर विधायक चुने गए…अब जब आगामी विधानसभा चुनाव में कुछ महीनों का वक्त बचा है..तो ऐसे में दोनों सियासी दलों के नेता..टिकट पाने के लिए सक्रिय हो गए हैं..बीजेपी में संभावित उम्मीदवारों की बात करें तो कई नेता टिकट के लिए अपना दावा ठोंक रहे हैं..इसमें पूर्व विधायक बली सिंह मरावी का नाम सबसे आगे है..वहीं राम प्रसाद सिंह पर भी बीजेपी अपना दांव लगा सकती है..वहीं कांग्रेस में वर्तमान विधायक रामपाल सिंह टिकट के सबसे मजबूत कैंडिडेट हैं..
हालांकि पिछले चुनाव में किए गए वादों का पूरा नहीं होना विधायक के खिलाफ जा सकता है..ऐसे में विधायक के लिए मिशन 2018 किसी बड़े इम्तिहान से कम नहीं होगा ।
ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र के प्रमख मुद्दे
ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले आदिवासी आज भी बुनियादी सुविधाओं से दूर हैं। जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर इस वनांचल इलाके में आज भी सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच पाती है। इसके अलावा क्षेत्र में कई और दूसरे मुद्दे हैं जिनका गूंजना चुनाव में तय है।
शहडोल जिले में आने वाली ब्यौहारी विधानसभा वनांचल क्षेत्र है..क्षेत्र के मुद्दों की बात की जाए तो पेय जल संकट एक बड़ा मुद्दा है। नदी नाले सूख जाने की वजह से लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। बाण सागर परियोजना होने के बावजूद भी लोगों को पानी नहीं मिल पाता…क्षेत्र में बायपास की मांग भी अब तक अधूरी है..जो आने वाले चुनाव में एक बार फिर सुनाई देगा..
ब्यौहारी विधानसभा क्षेत्र में बेरोजगारी भी एक बड़ी समस्या है जिसके चलते युवा पलायन को मजबूर है…वहीं ब्यौहारी को जिला बनाने की मांग भी समय-समय पर उठती रही है …शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो कॉलेजों में शिक्षकों की कमी से छात्रों को बहतर शिक्षा नहीं मिल रहा है.. संजय टाइगर रिजर्व जोन से 101 गांवों को विस्थापित किया जाना था..जिसमें अब तक 17 गांव विस्थापित हो चुके है। पिछले वर्ष यहां रहने वाले आदिवासियों के घर गिरा दिए गए थे, जिन्हें मुआवजे के तौर पर मिले दाम से आदिवासी खुश नहीं हैं…आदिवासियों का कहना है कि उनके परिवार के लिए शासन ने कोई इंतजाम नही किया है। जबकि कई बार लोगों ने धरना आंदोलन कर अपनी नाराजगी भी जाहिर की है…स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो क्षेत्र में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और उप स्वास्थ्य केन्द्र है। लेकिन डॉक्टर और स्टॉफ नही होने से आदिवासियों को बेहतर इलाज नहीं मिल रहा है । वहीं कुछ दूसरी बुनियादी समस्याएं भी यहां नेताओं की कड़ी परीक्षा लेने वाली हैं
वेब डेस्क, IBC24