नई दिल्ली। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एम करूणानिधि का मंगलवार शाम निधन हो गया। उन्हें दक्षिण भारत की राजनीति का भीष्म पितामह माना जाता था। दक्षिण की राजनीति में 76 साल तक रहे, और 62 सालों में एक भी चुनाव नहीं हारे। अभी 26 जुलाई को ही उन्होंने डीएमके प्रमुख के रुप में 50 साल पूरे किए थे। वे अस्पताल में भर्ती होते तक अपनी पार्टी के सर्वेसर्वा ही रहे।
करूणानिधि के निधन पर प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं और दक्षिण भारत के नेताओं ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दी है। पीएम मोदी ने ट्वीट कर करुणानिधि के निधन पर शोक जताया। उन्होंने कहा कि करुणानिधि को देश हमेशा याद रखेगा। उन्होंने कहा, ‘इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदना करुणानिधि के अनगिनत समर्थकों और परिजनों के साथ है। भारत और खासकर तमिलनाडु उनको हमेशा याद रखेगा। उनकी आत्मा को शांति मिले’। वहीं अभिनेता कमल हसन ने कहा कि करूणानिधि सभी कलाकारों के गुरु थे।
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करूणानिधि दक्षिण भारत में सुधारवादी आंदोलन चलाने वाले पेरियार से प्रभावित थे। वे ‘पेरियार‘ के ‘आत्मसम्मान आंदोलन‘ से जुड़े और द्रविड़ लोगों के ‘आर्यन ब्राह्मणवाद‘ के खिलाफ आंदोलन में शामिल हो गए। इसके पीछे बचपन में जातिवादी भेदभाव को देखना और महसूस करना ही रहा था। 1924 में थिरुक्कुवालाई गांव में करूणानिधि का जन्म हुआ था। इस घर को आज म्यूजियम में बदल दिया गया है। करुणानिधि का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था। उनका समुदाय पारंपरिक रूप से संगीत वाद्ययंत्र ‘नादस्वरम‘ बजाता था। करुणानिधि को भी संगीत सीखना था, लेकिन उनके समुदाय को कम ही वाद्ययंत्र बजाने की अनुमति थी।
पढ़ने में तेज करुणानिधि को यह जातिगत भेदभाव बहुत बुरा लगता था। वर्ष 1937 में हिंदी को देश में अनिवार्य भाषा बनाई जा रही थी। जाहिर है तमिलनाडु में भी इसे लागू किया जा रहा था। करूणानिधि उस वक्त महज 14 साल के थे और वे इसके खिलाफ उठ खड़े हुए। उन्होंने हिंदी को अनिवार्य बनाने के विरोध में नारे लिखने शुरु कर दिए। यहीं से उनके कैरियर का आगाज महज 14 वर्ष की उम्र में हुआ। उनकी 3 शादियां हुईं। उनकी पहली पत्नी का नाम पद्मावती अम्माल था. जिनसे उन्हें एक बेटा एमके मुथू हुआ। दूसरी और तीसरी पत्नी की संतान ही अब करूणानिधि की विरासत संभालेंगे।
द्रविड़ आंदोलन के दौरान करूणानिधि ने 1942 में अखबार भी निकाला। इसमें वे धारदार शैली में लिखते थे। इसके बाद उन्होंने कोयम्बटूर में रहते हुए नाटक भी लिखे। उनकी धारदार शैली से पेरियार और अन्नादुराई प्रभावित थे। रहते और नाटक लिखते थे. इसी दौरान उनकी धारदार शैली पर नज़र गई ‘पेरियार‘ और ‘अन्नादुराई‘ की। ये दोनों तब तमिलनाडु की राजनीति के महारथी हुआ करते थे।
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देश की आजादी के साथ ही पेरियार और अन्नादुराई अलग हो गए और करुणानिधि अन्नादुराई के साथ हो गए। 1949 में दोनों ने नई पार्टी बनाई और नाम दिया ‘द्रविड़ मुनेत्र कड़गम‘ (DMK)। करुणानिधि पार्टी के कोषाध्यक्ष बने. लेकिन 1952 में उन्होंने ‘परासाक्षी‘ नामक फिल्म बनाई। ये उनकी आर्यन ब्राह्मणवादी विरोधी विचारधारा पर आधारित थी। 1957 में वे अपनी पार्टी की ओर से चुनावों में उतरे और पहली बार तमिलनाडु के कुलिथालई क्षेत्र से चुनकर विधानसभा पहुंचे. उस वक्त करुणानिधि DMK के टिकट से विधानसभा पहुंचे मात्र 15 विधायकों में से एक थे। दस साल में ही उनकी पार्टी पूर्ण बहुमत में आ गई। अन्नादुराई राज्य के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बन गए। हालांकि दो साल बाद ही 1969 में अन्नादुराई का निधन हो गया और करुणानिधि मुख्यमंत्री बन गए। 1971 में हुए चुनावों में फिर से करुणानिधि जीतकर आए।
1971 की जीत के बाद करुणानिधी ने अपना नया साथी बनाया था तमिल फिल्मों के महानायक एमजी रामचंद्रन को. लेकिन दोनों का साथ ज्यादा नहीं चला और एमजीआर ने अलग होकर अपनी नई पार्टी बना ली, ‘अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम‘ यानि AIDMK, 1977 में एमजीआर का जादू चला और करूणानिधि की पार्टी हारती गई। ये हालत 10 साल रही। 1987 में एमजीआर के निधन के बाद डीएमके को लगा कि अब फिर उसका वक्त शुरु होगा। लेकिन इसी बीच 1989 में विधानसभा में साड़ी खींचे जाने की घटना के बाद एमजीआर की शिष्या और अभिनेत्री रही जे जयललिता करुणानिधि के तमाम दावों के बाद भी सत्ता में आ गईं। 1991 के चुनावों में AIDMK ने 224 सीटें जीतीं और जयाम्मा के जादू के चलते DMK की सीटें इकाई अंकों में सिमट गईं।
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इसके बाद से तमिलनाडु की राजनीति कभी करूनानिधि के हवाले रही तो कभी जयललिता के हवाले। लेकिन एक तरह से देखें तो गठजोड़ वाली केंद्र सरकारों के दौर में करूणानिधि किंग मेकर की स्थिति में आ गए थे। उन्हें वाकई दक्षिण भारत की राजनीति का भीष्म पितामह माना जाता है।
वेब डेस्क, IBC24
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