सभी धर्मों का एक ही सार, प्रेम, करूणा और समाज में एकता और इंसानियत बनाए रखना | Maintaining the same essence of all religions, unity in society and humanity

सभी धर्मों का एक ही सार, प्रेम, करूणा और समाज में एकता और इंसानियत बनाए रखना

सभी धर्मों का एक ही सार, प्रेम, करूणा और समाज में एकता और इंसानियत बनाए रखना

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:31 PM IST, Published Date : March 14, 2020/4:51 am IST

नई दिल्ली। दुनिया के कई धर्म प्रचलित हैं लेकिन सभी धर्मों का लक्ष्य समाज में एकता और इंसानियत को बनाए रखना है। मनुष्य को सभी धर्मों और संप्रदायों का आदर करना चाहिए। अगर ऐसी भावना मन में होगी तो समाज से ऊंच-नीच का भेद अपने-आप मिट जाएगा।

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धर्मों और उनके उपधर्मों या संप्रदायों की संख्या आठ से दस हजार है। इनमें आदिवासियों के विश्वास, पंरपराओं और रीति-रिवाजों से लेकर शास्त्र, कथाओं और साधु-संतों से मिलकर बने धर्म संप्रदायों की संख्या भी शामिल है। बड़े धर्म-संप्रदायों की संख्या आठ से दस तक ही है। छोटे-मोटे धर्मों, संप्रदायों की संख्या इनसे करीब हजार गुना ज्यादा है। प्रसिद्ध इतिहासकार जोजेफ अर्नाल्ड टायनबी के अनुसार, धार्मिक विश्वासों के प्रकार दुनिया में कम से कम आठ से नौ हजार तक हैं।

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हिंदू, जैन, यहूदी, पारसी, ईसाई, इस्लाम, सिख, शिंतो, ताओ, जैन, यजीदी, वूडू, वहाबी, अहमदिया, कंफ्यूशियस, काओ, थाई आदि अनेक धर्म और संप्रदाय हैं, जो अपने आप में समग्र हैं। उनके अनुयायियों के लिए आराधना के सामूहिक केंद्रों, विवाह-शादियों, संतानों और संस्कारों या रिवाजों की व्यवस्था है। आठ बड़े धर्मों के अनुयायियों में दुनिया के 80 फीसदी धर्मानुयायियों की संख्या आ जाती है। इनमें हिंदू या भारतीय या सनातन धर्म के अलावा शेष सभी के कई प्रवर्तक हैं।

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भारतीय अथवा सनातन धर्म की शुरुआत की कोई मान्य तिथि नहीं है। मनु आदि प्रवर्तक हुए, लेकिन उनका समय ईसा से दस हजार साल पहले माना जाता है। उनके कोई 3500 से 3600 साल पहले उन्हीं की परंपरा में वैवस्वत मनु हुए। विद्वान लोग इन्हें इतिहास पुरुष नहीं मानते, क्योंकि इनका समय प्रमाणों की अपेक्षा मान्यताओं पर ज्यादा निर्भर है। ईसा से कई सौ साल पहले तक राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध और पतंजलि आदि का जन्म हो चुका था। इन महापुरुषों के समय और काल आदि के निर्धारणों के अनुसार, भारतीय धर्मों, जिनमें जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ से लेकर गौतम बुद्ध, पतंजलि, बादरायण, व्यास, कणाद, गौतम, जैमिनी आदि सत्य और तथ्य के दृष्टा हुए।

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भारत के बाहर यहूदी, ईसाई, पारसी, बौद्ध, ताओ, शिंतो, ईसाई, इस्लाम, सिख आदि धर्मों का उदय हुआ। करीब चार हजार साल पुराना धर्म अब इस्राइल का राजधर्म है। हजरत आदम की परंपरा में आगे चलकर हजरत इब्राहिम हुए और फिर हजरत मूसा। ईसा से करीब 1500 वर्ष पहले हुए हजरत मूसा ने यहूदी धर्म की स्थापना की थी। ईरान में महात्मा जरथुस्त्र भी मूसा के ही समकालीन थे। इस्लाम से करीब हजार साल पहले भारत में बौद्ध धर्म का उदय हुआ था। सहिष्णुता और मेल-मिलाप से रहने की परंपरा ने समाज की पहचान कायम रखी थी और देश-समाज ने तरक्की की थी। अंग्रेजी राज के करीब दो-ढाई सौ सालों में भारतीय समाज की समरसता के तंतु कुछ शिथिल हुए। अपने भाग्य-भविष्य के स्वयं मालिक बनने के बाद भारत में समान अवसरों के संबंध में कई व्यवस्थाएं हुईं। सहिष्णुता एक नया नाम है। वह पारंपरिक रूपों में अहिंसा का ही रूप है। यह भाव दूसरों के प्रति समभाव सिखाता है।

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दूसरे धर्मों के प्रति समभाव रखने के मूल में अपने धर्म की अपूर्णता का स्वीकार भी आ ही जाता है और सत्य की आराधना और अहिंसा की कसौटी यही सिखाती है। संपूर्ण सत्य यदि देखा होता तो सत्य का आग्रह कैसा? तब तो हम परमेश्वर हो गए, क्योंकि यह हमारी भावना है कि सत्य ही परमेश्वर है।