रतनपुर में स्थित मां महामाया का दिव्य धाम, 51 शक्ति पीठों में है शामिल | Mother Mahamaya's divine abode located in Ratanpur Includes 51 Shakti Peethas

रतनपुर में स्थित मां महामाया का दिव्य धाम, 51 शक्ति पीठों में है शामिल

रतनपुर में स्थित मां महामाया का दिव्य धाम, 51 शक्ति पीठों में है शामिल

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 04:48 PM IST, Published Date : April 18, 2020/1:30 pm IST

रतनपुर की मां महामाया का दिव्य धाम, इस धाम के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना माता ने स्वयं ही करवाई है। माता सती के मृत शरीर को जब भगवान भोलेनाथ अपने कंधों में लेकर पूरे ब्रह्मांड में भटक रहे थे, तब उनके शरीर के अंग पृथ्वी पर गिरे..जहां जहां ये अंग गिरे वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। इस स्थान पर माता का स्कंध गिरा था। काफी समय बाद जब 1045 ईस्वी में राजा रत्नसेन यहां आएं तो माता ने उन्हें स्वप्न देकर स्वयंभू मूर्ति जमीन के अंदर से निकलवाई और मंदिर का निर्माण करवाया। कहा जाता है कि कलचुरी वंश पर मां महामाया की कृपा थी। इसलिए इस वंश का विस्तार सैकड़ों योजन तक हुआ। मान्यता है कि ये मंदिर यंत्र-मंत्र का केन्द्र भी हैं। रतनपुर में देवी सती का दाहिना स्कंध गिरा था भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था। श्री आदिशक्ति मां महामाया देवी: प्राचीन महामाया देवी का दिव्य एवं भव्य मंदिर दर्शनीय है। मां के द्वार पर आज तक जो भी श्रद्धालु आया है, वह कभी खाली हाथ नहीं लौटा है। 51 शक्ति पीठों में से एक मां का यह धाम में मां महामाया देवी के आशीर्वाद से हर संकट दूर हो जाता है। कुंवारी कन्याओं को यहां पर सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं, तो लोगों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

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महामाया के परम धाम में सदियों से जगती रही है आस्था की अलख।
महामाया माता युगों-युगों से अपने भक्तों को देती रही हैं मनचाहा वरदान।
महामाया के दिव्य स्वरूप में समाहित हैं तीन महादेवियों का प्रताप।
यही वजह है कि मंदिर के गर्भगृह में महालक्ष्मी…महासरस्वती और महाकाली की प्रतिमा स्थापित हैं। महालक्ष्मी और महासरस्वती की प्रतिमा भव्य रूप में हैं। वहीं पीछे की तरफ महाकाली की एक छोटी प्रतिमा स्थापित है। हर रोज़ देश-विदेश के भक्त महामाया के दर पर सवाली बनकर आते हैं और देवी के दरबार में अपनी अर्जी लगाते हैं। राज्य में अनादि काल से शिवोपासना के साथ साथ देवी उपासना भी प्रचलित थी। शक्ति स्वरूपा मां भवानी यहां की अधिष्ठात्री हैं। यहां के सामंतो, राजा महाराजाओं, जमींदारों आदि की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित आज श्रद्धा के केंद्र बिंदु हैं। छत्तीसगढ़ में देवियां अनेक रूपों में विराजमान हैं. श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ इन स्थलों को शक्तिपीठ की मान्यता देने लगी है. प्राचीन काल में देवी के मंदिरों में जवारा बोई जाती थी और अखंड ज्योति कलश प्रज्वलित की जाती थी जो आज भी अनवरत जारी है.।

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यहां जगजमगाते ज्योति कलश.. दिव्य प्रकाश….इनमें भक्तों को माता का प्रतिबिंब दिखाई देता है। इन शक्ति रूपी अखंड ज्योतियों के दर्शन मात्र से उनके जीवन में व्याप्त अंधकार मिटने लगता है। रतनपुर को जागृत शक्तिपीठ माना जाता है, यही वजह है.यहां नवरात्रि पर हजारों की संख्या में ज्योति कलशों की स्थापना की जाती है। ज्योति कलशों की स्थापना के लिएकई हफ्ते पहले से तैयारी शुरू कर दी जाती है।

महामाया मंदिर के पीछे स्थित है बरगद का सैकड़ों साल पुराना पेड़। इस पेड़ के सामने है चंडी तालाब। पूरे तालाब में कमल के फूल खिले नज़र आते हैं। चंडी तालाब और बरगद का ये पेड़ हमेशा से माई के दरबार का हिस्सा रहे हैं।कहते हैं, बरगद के पेड़ के नीचे राजा रत्नदेव को माता महामाया के दर्शन हुए थे। इसलिए भक्तों में इस पेड़ की मान्यता कल्पवृक्ष की तरह है, इसमें मनोकामना नारियल बांधकर माता से फरियाद करते हैं।

मां महामाया को हर रोज तीन बार भोग लगाया जाता है। शाम के वक्त खासतौर पर मां को हलवा का भोग लगता है। ऐसा कहा जाता है कि मां को हलवा बहुत प्रिय है। नवरात्रि के दिनों में महामाया को सूखे मेवों और कई तरह के पकवानों का भोग लगाया जाता है। माता का श्रीविग्रह इतना चमत्कारी है….कि उसके दर्शन मात्र से ही भक्तों की तकलीफें दूर हो जाती हैं…..यहीं वजह है कि सैकड़ों भक्त कई सालों से मां के दर्शनों के लिए यहां पहुंचते रहे हैं।

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साल का कोई ऐसा दिन नहीं होता….जब मां के दर्शनों के लिए सैकड़ों भक्त यहां न पहुं। नवरात्रि के दिनों में तो यहां भक्तों की ऐसी भीड़ उमड़ती है कि मंदिर परिसर में पैर रखने की जगह भी नहीं होती। रतनपुर आने वाले भक्तों के लिए मंदिर ट्रस्ट की तरफ़ से शानदार इंतजाम किए गए हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क है। तालाबों में पक्के घाट हैं भव्य मुख्य द्वार है। विशाल यज्ञ मंडप है और एकसुंदर उद्यान भी, वहीं भक्तों को धूप और बारिश से बचाने के लिए पूरे रास्ते में शेड लगा दिया गया है, जबकि भक्तों को पूजन सामग्री मंदिर के सामने ही मिल जाती है। महामाया के दर्शन करने आए भक्तों को यहां का सुकून भरा माहौल बेहद रास आता है। वहीं उनके मनोरंजन के लिए मंदिर ट्रस्ट ने नौका विहार की व्यवस्था भी कर रखीहै। महामाया मंदिर की यात्रा मन और तन दोनों को ही चैनो-सुकून से भर देता है। तभी तो यहां से जाने वाला इंसान बार-बार यहां लौटकर आना चाहता है।

रतनपुर आने के लिए नजदीक एयरपोर्ट रायपुर है।अगर आप रेल मार्ग से आने चाहते हैं तो बिलासपुर रेलवे स्टेशन से आसनी से आप रतनपुर पहुंच सकते है ।बिलासपुर से रतनपुर के लिए हर एक घंटे में बस व टैक्सी सुविधा है।