धर्म। विघ्नहर्ता, प्रथम पूज्य, एकदन्त भगवान श्रीगणेश को ऐसे कई नामों से जाना जाता है। किसी भी शुभ काम की शुरूआत करनी हो या फिर किसी विघ्न को दूर करने की प्रार्थना करनी हो, गजानन सबसे पहले याद आते हैं। कोई भी सिद्धि हो या साधना, विघ्नहर्ता गणेशजी के बिना सम्पूर्ण नहीं मानी जाती। भाद्रप्रद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेशजी का जन्मोत्सव गणेश चतुर्थी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। गणेश के रूप में विष्णु शिव-पार्वती के पुत्र के रूप में जन्मे थे। उनके जन्म पर सभी देव उन्हें आशाीर्वाद देने आए थे। भगवान विष्णु ने उन्हें ज्ञान का, ब्रह्मा ने यश और पूजन का, शिव ने उदारता, बुद्धि, शक्तिएवं आत्म संयम का आशीर्वाद दिया। लक्ष्मी ने कहा कि जहां गणेश रहेंगे, वहां मैं रहूंगी।’ माता सरस्वती ने वाणी, स्मृति एवं वक्तृत्व-शक्ति प्रदान की। सावित्री ने बुद्धि दी। त्रिदेवों ने गणेश को अग्रपूज्य, प्रथम देव एवंरिद्धि-सिद्धि प्रदाता का वर प्रदान किया। इसलिये वे सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वदैशिक लोकप्रियता वाले देव हैं।
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गणेशजी के जन्म की कहानी बहुत रोमांचक है। बहुत बहुत साल पहले जब पृथ्वी पर राक्षसों का आतंक बढ़ गया था, तब महादेव, देवताओं की सहायता करने शिवलोक से दूर गए हुए थे। माता पार्वती शिवलोक में अकेली थीं। जब पार्वती जी को स्नान करने की इच्छा हुई तो उन्हें शिवलोक के सुरक्षा की चिंता हुई। वैसे तो शिवलोक में शिवजी की आज्ञा के बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता था, पर उन्हें डर था कि शिव जी की अनुपस्थिति में कोई अनाधिकृत प्रवेश ना कर जाए। अतः उन्होंने सुरक्षा के तौर पर अपनी शक्ति से एक बालक का निर्माण किया और उनका नाम रखा गणेश। उन्होंने गणेशजी को प्रचंड शक्तियों से नियुक्त कर दिया और घर में किसी के भी प्रवेश करने से रोकने के कड़े निर्देश दिए।
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इधर शिवजी की सहायता से राक्षसों पर देवों का पलड़ा भारी पड़ रहा था। शिवजी युद्ध में विजयी हुए और खुशी-खुशी शिवलोक की तरफ चल पड़े। शिवलोक पहुंच कर सर्वप्रथम उन्होंने पार्वती माता को अपने विजय का समाचार सुनाने की इच्छा की। परन्तु शिवजी के प्रभुत्व से अनजान गणेशजी ने उन्हें घर में प्रवेश करने से रोक दिया। अपने ही घर में प्रवेश करने के लिए रोके जाने पर शिवजी के क्रोधित हो गए। उन्होंने गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया और घर के अंदर प्रवेश कर गए। जब पार्वतीजी को यह कहानी सुनाई तो उन्हें गणेशजी के मृत होने का समाचार सुनकर बड़ा रोष आया। उन्होंने शिवजी को अपने ही पुत्र का वध करने का दोषी बताया और उनसे गणेशजी को तुरन्त पुनर्जीवित करने का अनुरोध किया। रूठी पार्वती माता को मनाने के अलावा शिवजी के पास कोई दूसरा रास्ता भी ना था। तब शिवजी ने कहा कि गणेशजी का सिर पुनः धड़ से तो नहीं जोड़ा जा सकता, परन्तु एक जीवित प्राणी का सिर स्थापित जरूर किया जा सकता है।
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शिवजी के निर्देशों के अनुसार सेवक जंगल में ऐसे प्राणी को ढ़ूढ़ने निकले जो उत्तर दिशा की तरफ सिर रख कर सो रहा हो। ऐसा ही एक हाथी जंगल में उत्तर दिशा की तरफ मुख किए सो रहा था। शिवजी के सेवक उसे उठा कर ले आए।शिवजी ने हाथी का सिर सूंड़-समेत गणेशजी के शरीर से जोड़ दिया और इस प्रकार गणेशजी के शरीर में पुनः प्राणों का संचार हुआ। इतना ही नहीं, शिवजी ने यह भी उद्घोषणा की कि पृथ्वीवासी किसी भी नए कार्य को शुरू करने से पहले गणेश भगवान की पूजा-आराधना करेंगे।
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