प्रिंस फ़िलिप! एक असाधारण शख़्स | Prince Philip! An extraordinary person

प्रिंस फ़िलिप! एक असाधारण शख़्स

प्रिंस फ़िलिप! एक असाधारण शख़्स

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 06:34 AM IST, Published Date : April 10, 2021/1:48 pm IST

ब्रिटेन। ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा प्रिंस फ़िलिप की तस्वीर के दो पहलू ही हमारी यादों में रह गए हैं, एक पहलू लोगों को चुभते चुटकुले सुनाते हुए पॉलिटिकली इनकरेक्ट बयान देने वाले शख़्स का था, तो दूसरा हमेशा इर्द-गिर्द मंडराते रहने वाले झक्की ताऊ का, जिसे सब प्यार तो करते हैं लेकिन, जो अक्सर ख़ुद को और अपने साथ के लोगों को शर्मसार करते रहते थे. प्रिंस फ़िलिप अब इस दुनिया में नहीं रहे. ज़ाहिर है कि उनके निधन के साथ ही उनकी शख़्सियत का एक बार फिर आकलन होगा, क्योंकि उन्होंने एक असाधारण व्यक्ति के तौर पर असाधारण ज़िदगी बिताई है.

उनका जीवन उथल-पुथल भरी बीसवीं सदी में हो रहे बदलावों से गहरे तौर से जुड़ा था. प्रिंस की जिंदगी अद्भुत असमानताओं, विरोधाभासों, सेवा और कुछ हद तक अकेलेपन से भरी थी. प्रिंस एक पेचीदा, होशियार और हमेशा बेचैन रहने वाले शख़्स थे.

प्रिंस के माता और पिता की मुलाक़ात 1901 में क्वीन विक्टोरिया के अंतिम संस्कार के दौरान हुई थी. उस वक़्त यूरोप के सिर्फ़ चार देशों में ही राजशाही बची थी. उनके रिश्तेदार यूरोप के उन अलग-अलग राजघरानों में बिखरे हुए थे. कुछ राजघराने पहले विश्वयुद्ध की वजह से बिखर गए थे. लेकिन जहां प्रिंस फ़िलिप का जन्म हुआ था वहां अभी भी राजशाही का चलन बचा हुआ था. उनके दादा ग्रीस के राजा थे. उनके दादा की बहन ऐला को एक्तेरिबर्ग में बोल्शेविकों ने रूस के ज़ार के साथ मार डाला था. उनकी मां क्वीन विक्टोरिया की परपोती थीं.

उनकी चारों बहनों की शादी जर्मन नागरिकों से हुई थी. जब फ़िलिप ब्रिटेन की रॉयल नेवी की ओर से विश्वयुद्ध में लड़ रहे थे, तब उनकी बहनें जर्मन में नाज़ी हितों का खुलेआम समर्थन कर रही थीं. फ़िलिप की शादी में इनमें से किसी को भी नहीं बुलाया गया था. जब लड़ाई ख़त्म हुई, देश में अमन-चैन लौटा और अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी तो उस दौरान फ़िलिप ने ख़ुद को एक बेहतर ब्रिटेन के निर्माण में झोंक दिया. उन्होंने देशवासियों से अपील की कि वे वैज्ञानिक तरीक़े अपनाएं, इंडस्ट्रियल डिज़ाइन, प्लानिंग, शिक्षा और ट्रेनिंग के नए विचारों को अपनाएं.

ये हेरल्ड विलसन के ‘तकनीकी क्रांति के व्हाइट हीट’ की बात से एक दशक पहले हो रहा था. फ़िलिप अपने भाषणों और इंटरव्यू में देश में आधुनिकता लाने की बात कर रहे थे. और फिर जब उनका देश और यह पूरी दुनिया अमीर होते गए और पहले से ज़्यादा उपभोग करने लगे. ऐसे में उन्होंने पर्यावरण पर पड़ने वाले इसके असर के बारे में लोगों को आगाह किया. यह वह दौर था जब पर्यावरण का मुद्दा बस फ़ैशन में आया ही था.

read more: सेना प्रमुख जनरल नरवणे ने बांग्लादेश की सेना के अधिकारियों से मुलाकात की

निर्वासन, बोर्डिंग स्कूल और चुनौतियां

जीवन के पहले दशक की मुसीबतों ने प्रिंस को मज़बूत बनाया. लेकिन अपने असली व्यक्तित्व में वह स्कूल के दौरान ही ढले. उनके शुरुआती साल एक जगह से दूसरी जगह जाने में ही गुज़र गए. क्योंकि जिस सरज़मीन पर उन्होंने जन्म लिया था, उन्हें उसे छोड़ना पड़ा था. उनका परिवार बिखर गया था और वह एक देश से दूसरे देश भटकते रहे. इनमें से कोई भी उनका अपना देश नहीं था.

जब वह सिर्फ़ एक साल के थे तब ग्रीस के कोर्फू द्वीप में फंसे उनके परिवार को एक ब्रिटिश युद्धपोत ने वहां से सुरक्षित निकाल लिया था. ग्रीस में उनके पिता को मौत की सज़ा दी गई थी. वहां से उनके परिवार को इटली ले जाया गया. नन्हें प्रिंस फ़िलिप की पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा इटली की एक पोर्ट सिटी में सफ़र के दौरान ट्रेन की फ्लोर पर घुटनों के बल चलते हुए गुज़री थी. बाद में उनकी बहन सोफ़िया ने इसका ब्यौरा देते हुए कहा था, “इटली के ब्रिंडसी शहर से उस रात उस तनहा ट्रेन के फ्लोर पर धूल में लिपटा वह बच्चा आराम से घिसट रहा था.”

पेरिस में वो अपने एक रिश्तेदार से लिए गए घर में रहे. लेकिन वह भी उनका स्थायी घर कभी नहीं बन सका. इसके एक साल के भीतर ही जब वह ब्रिटेन के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रहे थे तो उनकी मां राजकुमारी एलिस की मानसिक सेहत बिगड़ गई. उन्हें मानसिक अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.

उनके पिता प्रिंस एंड्रूयू अपनी प्रेमिका के साथ मोंते कार्लो रहने चले गए. उनकी चारों बहनें भी शादियां कर जर्मनी चली गईं. सिर्फ़ दस साल के भीतर ग्रीस के राजकुमार यहां-वहां भटकने वाले बेघर और लगभग पाई-पाई को मोहताज ग़रीब लड़के में तब्दील हो गए. एक ऐसा लड़का, जिसकी किसी को परवाह नहीं थी.

एक बार प्रिंस फ़िलिप ने कहा था, “मुझे नहीं लगता कि कोई ये जानता था कि मेरे पिता भी थे.” उनके पिता एंड्रयू की युद्ध में मौत हो गई. फ्रांस से जर्मनों को खदेड़े जाने के बाद फ़िलिप वहां अपने पिता का बचा-खुचा सामान लेने पहुंचे. लेकिन कपड़े झाड़ने के ब्रश और कुछ कफ़लिंक्स के अलावा वहां उन्हें वहां कुछ नहीं मिला. लेकिन जब तक फ़िलिप स्कॉटलैंड के उत्तरी तट पर बने प्राइवेट स्कूल गॉर्डनस्टन पहुंचे तब तक वो मज़बूत और आत्मनिर्भर बन चुके थे. वह अपना ख़याल ख़ुद रख सकते थे.

गोर्डनस्टन ने ही उनके व्यक्तित्व के इन पहलुओं को उभारने में मदद की. इस स्कूल ने सामुदायिक सेवा, टीम वर्क, ज़िम्मेदारी और किसी भी व्यक्ति के प्रति सम्मान जैसी ख़ूबियों को उनमें ढाल दिया. इसी स्कूल ने उनके भीतर ज़िंदगी की एक बड़ी दीवानगी भी पैदा की और वह थी समुद्र के प्रति उनका प्यार.

फ़िलिप को अपने स्कूल से जितनी मोहब्बत थी, उनके बेटे प्रिंस चार्ल्स को उससे उतनी ही नफ़रत. फ़िलिप की इस स्कूल पर इसलिए इतनी श्रद्धा नहीं थी कि यह छात्रों को उनकी शारीरिक और मानसिक उत्कृष्टता तक ले जाने के लिए काफ़ी कड़ाई करता था. (फ़िलिप ख़ुद एक शानदार खिलाड़ी थे). बल्कि यह स्कूल उन उसूलों पर बना था, जिनकी नींव इसके संस्थापक कर्ट हान ने रखी थी. हान खुद नाज़ी जर्मनी से निर्वासित थे.

बाद में ये उसूल प्रिंस फ़िलिप के लिए काफी अहम हो गए. वह अपनी ज़िंदगी को जिस तरह जीना चाहते थे, उसमें ये उसूल काफ़ी अहम हो गए थे. इन उसूलों की झलक उनकी बाद की ज़िंदगी में दिए गए भाषणों में मिलती रही. 1958 में घाना में उन्होंने एक भाषण में कहा था की ‘आज़ादी का सार अनुशासन और आत्मनियंत्रण’ में है.

एक बार उन्होंने ब्रिटिश स्कूल्स एक्सप्लोरिंग सोसाइटी से कहा था कि युद्ध के बाद का सुकून अहम हो सकता है लेकिन उससे भी अहम बात यह है कि “इस आरामदेह ज़िंदगी को मनुष्य के जज़्बे को कुचलने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए.” इसके दो साल पहले उन्होंने इप्सविच स्कूल के बच्चों से ज़िंदगी की नैतिकता और भौतिक अनिवार्यता पर बात की थी और कहा था कि ‘हर एक शख़्स की अहमियत’ ही हमारे ‘समाज का मार्गदर्शक सिद्धांत’ है. गोर्डनस्टन में दिवंगत प्रिंस की शानदार ज़िंदगी के सबसे बड़े विरोधाभासों में से एक का जन्म हुआ.

कर्ट हान की नज़र में व्यक्ति की अहमियत ही ब्रिटेन और दूसरे लोकतांत्रिक देशों को सर्वसत्तावादी तानाशाही से अलग करती थी. ऐसी तानाशाही से जहां से कर्ट ख़ुद भाग आए थे. फ़िलिप ने व्यक्ति और व्यक्तिगत एजेंसी को केंद्र में रखा. उनका मानना था कि यही वह योग्यता है, जिससे हम मनुष्य अपने नैतिक फ़ैसले लेते है. फिर भी वह अपनी पूरी ज़िंदगी, यानी पहले नौसेना और फिर राजमहल में दशकों तक रहते हुए परंपरागत नियमों, दृष्टांतों, कमान और पदानुक्रम से जुड़े नियमों को निभाते रहे.

ब्रिटिश राजघराने की राह में अड़चन बन सकने लायक चीज़ें उनके अंदर बहुत थोड़ी थीं. क्या उनकी कथनी और करनी में अंतर था, जिसकी अक्सर राजपरिवार पर तोहमत लगाई जाती है? या फिर सेवा ही उनकी पहली और आख़िरी पसंद थी?

read more: इंडोनेशिया में भूकंप का झटका, सुनामी की चेतावनी नहीं

‘फ़िलिप जहां भी जाएंगे अपनी छाप छोड़ेंगे’
1939 डार्टमाउथ नेवल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनकी ज़िंदगी के दो जुनून आपस में टकराए. उन्होंने गोर्डनस्टन स्कूल में समुद्र में जहाज़ चलाना सीख लिया था. डार्टमाउथ में उन्होंने नेतृत्व करना सीखा. फिर कुछ हासिल करने और जीतने की इच्छा उनके भीतर और तेज़ हुई. कई दूसरे कैडेटों से काफ़ी बाद में कॉलेज जाने वाले फ़िलिप ने 1940 में अपनी ग्रेजुएशन क्लास में टॉप किया. बाद में पोर्ट्समाउथ में परीक्षा के पांच खंडों में उन्होंने चार में टॉप किया. वह रॉयल नेवी के सबसे कम उम्र के फर्स्ट लेफ्टिनेंट में से एक बने.

उनका पूरा परिवार ख़ानदानी नौसैनिकों का था. उनके नाना रॉयल नेवी के कमांडर रह चुके थे और पहले सी लॉर्ड थे. उनके अंकल, ‘डिकी’ माउंटबेटन एक युद्धपोत के चीफ़ थे. यह वह दौर था जब फ़िलिप ट्रेनिंग कर रहे थे. उन्होंने लड़ाई में न सिर्फ़ अपनी बहादुरी दिखाई बल्कि वह युद्धकौशल और रणनीति बनाने में भी माहिर निकले. ऐसा वह अपने स्वाभाविक माहौल की वजह से कर पाए थे. गोर्डनस्टन के हेडमास्टर ने उनकी तारीफ़ करते हुए लिखा “प्रिंस फ़िलिप” किसी भी प्रोफ़ेशन में जाएंगे, अपनी छाप छोड़ेंगे. जहां भी उनकी ताक़त की परीक्षा होगी वह अपने आप को साबित कर दिखाएंगे. “

लेकिन इस शानदार और महात्वाकांक्षी युवा अफ़सर को लेकर कुछ लोगों की अपनी धारणाएं भी थीं. शांति के दौरान जब उनके पास कमान थी तब उन्होंने अपने लोगों से कड़ी मेहनत करवाई. कुछ लोगों के लिए यह मेहनत बेहद कठिन था. उनके एक जीवनीकार ने बाद में लिखा, “अगर उनमें कोई एक ख़ामी थी तो वो ये थी कि वे सहिष्णु नहीं थे. इस तरह की टिप्पणियां बार-बार की गईं. उनके समकालीन उनके बारे में ज्यादा मुंहफट थे.” एक दूसरे जीवनीकार ने लिखा, “उनके एक क्रू मेंबर ने कहा, उनके अधीन नेवी की सेवा करने की तुलना में वह मरना पसंद करेगा.”

1939 में जब वह डार्टमाउथ में थे तब तक यह तय हो गया था कि युद्ध होकर रहेगा. फिर वहीं से नेवी उनकी नियति बन गई. वह ख़ुद समंदर के प्यार में पड़ गए. बाद में उन्होंने समंदर के प्रति अपने प्रेम के बारे में ख़ुद कहा, “यह अद्भुत प्रेमी या प्रेमिका है. इसका मिज़ाज असाधारण है.” लेकिन समंदर के प्रति उनके प्यार के प्रतिद्वंद्वी का अभी उनकी ज़िंदगी में आना बाक़ी था.

जब किंग जॉर्ज VI फ़िलिप के चाचा के साथ नौसैनिक कॉलेज में आए तो उनके साथ उनकी बेटी राजकुमारी एलिज़ाबेथ भी थीं. फ़िलिप से कहा गया कि वो उनका ध्यान रखें. उन्होंने राजकुमारी को कॉलेज के ग्राउंड के टेनिस नेट पर प्रैक्टिस करके दिखाया. उनमें एक आत्मविश्वास दिखा. भले ही उनके पास गद्दी नहीं थी, लेकिन वो राजसी परिवार के थे. उन्हें सैर करना पसंद था और वो बेहद हैंडसम थे. राजकुमारी एलिज़ाबेथ भी कम सुंदर नहीं थीं. वो थोड़ी संरक्षण में रहने वालीं और थोड़ी मस्तमौला भी थीं. लेकिन फ़िलिप के प्रति वो बेहद आकर्षित थीं.

read more: मिसेज वर्ल्ड गिरफ्तार! ‘ब्यूटी क्वीन कॉन्टेस्ट’ के विजेता से छीना थ…

किंग की मौत और प्रिंस की ज़िंदगी का अटल बदलाव

लेकिन उन्हें शायद ही पता था कि यह उनकी ज़िंदगी की दो दीवानगियों के बीच का टकराव था. क्या समंदर और एक ख़ूबसूरत युवती दोनों उनके जीवन में एक साथ नहीं हो सकती थीं? 1948 में शादी के बाद उनके पास ये दोनों चीज़ें थीं. माल्टा में एक नवविवाहित युवा जोड़े के तौर पर उनके पास वो दोनों चीज़ें थीं, जिन्हें वह सबसे ज़्यादा अहमियत देते थे. एक युद्धपोत की कमान और दो साल का सुरम्य, शानदार जीवन. लेकिन किंग जॉर्ज VI की बीमारी और फिर मौत ने यह सब कुछ ख़त्म कर दिया.

जैसे ही उन्हें किंग की मौत की ख़बर मिली, वो समझ गए उनकी ज़िंदगी के लिए इसका क्या मतलब होगा. केन्या में उन्हें यह ख़बर मिली, जहां वह प्रिसेंज़ एलिज़ाबेथ के साथ घूमने गए थे. एलिज़ाबेथ वहां राजा के महल में थीं. फ़िलिप को पहले ही किंग की मौत की सूचना दे दी गई. उनके सहयोगी मार्क पार्कर ने बाद में बताया, “ऐसा लग रहा था उन पर टनों ईंटें गिर पड़ी हों. वह थोड़ी देर तक एक जगह पर बैठ गए, फिर कुर्सी पर पसर गए. एक अख़बार उनके सिर और छाती तक पसरा हुआ था. अब प्रिसेंज़, रानी बन चुकी थीं और फ़िलिप की दुनिया बदल चुकी थी. फ़िलिप को पता था कि यह बदलाव अटल था.”

एक शख़्स, जिसने कभी ख़ुद पर दया न दिखाई हो और जिसने शायद ही अपनी भावनाओं को ज़ाहिर किया हो, उसने उस वक्त सिर्फ़ नौसेना में अपने करियर को जारी न रख पाने का ही अफ़सोस जताया था. फ़िलिप ने कहा था, “मेरी ज़िंदगी में अगर कोई अफ़सोस रहा तो सिर्फ़ एक ही कि मैं नेवी में अपना करियर आगे जारी नहीं रख सका.”

जो लोग फ़िलिप और उनके जुनून को समझते थे, उन्होंने ज़्यादा कठोर शब्दों का इस्तेमाल किया. पूर्व फ़र्स्ट सी लॉर्ड एडमिरल लॉर्ड वेस्ट कहते हैं कि फ़िलिप ने अपनी ड्यूटी निभाई. लेकिन नेवी में आख़िरी का उनका वक्त “उनके लिए बहुत बड़ा नुक़सान था, मुझे यह पता है. “

जैसे ही राजकुमारी रानी बनीं, फ़िलिप की ज़िंदगी का सामना एक और विरोधाभास से हुआ. फ़िलिप ऐसे माहौल में पले-बढ़े थे, जो मर्दों की बनाई दुनिया थी. वही इसे संचालित करते थे. वह मानसिक तौर पर मज़बूत और शारीरिक तौर पर सख़्त पुरुष थे. उन्होंने पूरी तरह पुरुषों के बीच उनके ही माहौल में काम किया था. अपने पुरुष होने को वह सेलिब्रेट करते थे.

अपने पहले बेटे चार्ल्स के जन्म पर उन्होंने माइक पार्कर से कहा था, “लड़का पाने के लिए एक आदमी की ज़रूरत होती है.” लेकिन फिर उसके बाद ही और अगले 65 साल तक अपनी पत्नी यानी क्वीन का समर्थन करना ही उनकी ज़िंदगी बन गया.

वह रानी के पीछे साये की तरह चला करते थे. उन्होंने रानी के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी. अगर वह रानी के बाद कमरे में आते तो माफ़ी मांगते. रानी की ताजपोशी में वह घुटने के बल झुके. उनका हाथ रानी के हाथ से ढंका था. उन्होंने शपथ ली और कहा कि वह “जीवन और शरीर से रानी के अनुयायी” हैं. उनके बच्चों के नाम के आगे माउंटबेटन नहीं लगा था. उन्होंने कहा था मैं एक ‘ब्लडी अमीबा’ हूं, लेकिन इसका कुछ नहीं किया जा सकता था. आख़िर वह क्वीन थीं और फ़िलिप उनके पति.

प्रिंस फ़िलिप के जो हालात थे, उसमें बदलाव पर भी उन्होंने थोड़ी ही बात की थी. उन्होंने कहा था, “रानी की ताजपोशी से पहले तक, मेरा मानना था कि मैं स्वाभाविक रूप से परिवार में प्रमुख की जगह पर था. लोग मेरे पास आकर पूछते थे क्या किया जाए. लेकिन 1952 में यह स्थिति काफ़ी हद तक बदल बदल गई.”

लेकिन फ़िलिप ने मार्क पार्कर से कहा था कि महल के अंदर की ज़िंदगी में जो बदलाव हो रहे थे वे बड़े बेरहम थे. पार्कर ने कहा, “उस सिस्टम में उन्हें लगातार धकियाया गया, उन्हें घुड़कियां दी गईं. अनदेखी की गई और डांट भी पिलाई गई. मुझे लगा कि महल के अंदर फ़िलिप का कोई दोस्त या सहायक नहीं है.”

हो सकता है फ़िलिप ने हालात से तालमेल बैठाने की कोशिश नहीं की होगी. उनके एक अन्य जीवनीकार लिखते हैं कि शुरुआती सालों में पैलेस के स्टाफ़ ने उन्हें ऐसा शख़्स बताया जिनसे डील करना आसान नहीं था. वह तुरंत चिढ़ जाते थे. उनमें अहंकार था और वे रक्षात्मक हो जाते थे.

दरबार में उन्हें शक की निगाहों से देखा जाता था. उन्हें एक तरह से एक ऐसे दुस्साहसी व्यक्ति की तरह देखा जाता था जो किस्मत का पीछा करता हुआ यहां तक पहुंचा था. कहा जाता था कि उनमें जर्मन ख़ून है. और यह सब नाज़ी जर्मनी को परास्त करने की उनकी ज़बरदस्त कोशिश के बावजूद कहा जाता था.

read more: प्रिंस फिलिप के निधन पर उन्हें दी जाएगी तोपों की सलामी

प्रिंस फ़िलिप: फलों की टोकरी में ग्रीस छोड़ने से लेकर महारानी से शादी तक की कहानी
इसके जवाब में उन्होंने वो सब शुरू किया, जो उनकी पूरी ज़िंदगी में लगभग अनवरत जारी रहा. रानी की लंबी विदेशी यात्राओं में हमेशा उनके साथ रहे. कभी-कभार उन्होंने अपनी दिलचस्पियों के ख़ास विषय, मसलन खेल-कूद, औद्योगिक या रिसर्च के लिए इससे ब्रेक लिया.

क्वीन ने भी उनके साथ ही हमेशा सफ़र किया. वह एक तरह से क्वीन के साथी बन गए थे. लेकिन फ़िलिप ने अकेले भी यात्राएं कीं. 1950 और 1960 के दशक के दौरान उपनिवेशों को छोड़ने के वक्त हुए समारोहों में रानी नहीं वही हुआ करते थे.

देश के भीतर वह कई अभियानों के संरक्षक थे. कई परियोजनाओं की उन्होंने सरपरस्ती की. इनकी संख्या सैकड़ों में थीं. ये परियोजनाएं युवाओं, विज्ञान, आउटडोर गतिविधियों और खेल-कूद से जुड़ी थीं. वह क्रिकेट, स्क्वॉश, पोलो खेलते थे. वह तैरते थे और नाव खेते थे, रोविंग करते थे, घुड़सवारी करते थे और घोड़ागाड़ी भी चलाते थे. उन्होंने फ्लाइंग सीखी थी और अपने फोटोग्राफ़ भी ख़ुद डेवलप करते थे.

पैलेस को मॉर्डन बनाने वाले
पैलेस के अंदर वह एक मॉर्डनाइज़र थे. वह अक्सर महल के कॉरिडोर्स में तेज़ी से चहलकदमी करते हुए, गोदामों की तहकीकात करते हुए या मुआयना करते हुए दिखते कि कौन क्या कर कर रहा है. उन्होंने सैंड्रिघम एस्टेट के प्रबंधन का ज़िम्मा ले लिया था. अगले कुछ सालों में उन्होंने काफी हद तक उसे री-डेवलप कर दिया था.

उनके एक जीवनीकार ने लिखा है, “फ़िलिप का मानना था कि उनके पास एक रचनात्मक मिशन है. वह राजशाही को एक गतिशील, लोगों से जुड़ा हुआ और जवाबदेह संस्थान के तौर पर पेश करना चाहते थे. एक ऐसा संस्थान जो समकालीन ब्रिटिश समाज की कुछ समस्याओं को निपटाने की कोशिश करे.”

वह नौजवान थे और बहुत सुंदर थे. वह कैमरों के सामने बड़ी सहजता से मुस्कुराते और चुटकुले सुनाते थे. एक तस्वीर में दिखाया गया है कि 1950 के दशक के आख़िर में जब उन्होंने लंदन में लड़कों के एक क्लब का दौरा किया तो उनके चेहरे पर मुस्कान थी. उन्होंने डबल ब्रेस्टेड पिनस्ट्रिप सूट पहना हुआ था. बाल बिल्कुल सीधे और चमकदार दिख रहे थे. वह लड़कों और उनकी माताओं के ऊपर उठे चेहरों से घिरे थे, जो उनके नज़दीक आने के लिए एक दूसरे को धकिया रहे थे.

बंकिघम पैलेस के फर्स्ट फ्लोर पर उनकी स्टडी थी जो गार्डन और हरे भरे पार्क में खुलती थी. इसमें हज़ारों किताबें थीं. एक तरफ़ उनकी पहली कमान वाले एचएमएस मेगपाई का मॉडल था. इसी में वह रिसर्च करते थे और अपने भाषण टाइप किया करते थे.

1986 में उन्होंने (एक मॉर्डनाइज़र के तौर पर) एक शानदार गैजेट ख़रीदा. इसे वह मिनिएचर वर्ड प्रोसेसर कहते थे. उन्होंने हर साल लगभग 60 से 80 भाषण दिए. दशक दर दशक उन्होंने अपनी विस्तृत रुचियों से जुड़े विषयों पर भाषण दिए.

इन्हीं भाषणों से उनकी असली तस्वीर निकलकर सामने आती है. किसी ऐसी चीज़ के बारे में सबकुछ जानने वाले व्यक्ति को किसी समारोह में काफी वक्त तक बिठा कर उसकी घोषणा करवाना उनके लिए अधीर करने वाली बात होती थी. एक बार उन्होंने चेस्टरफ़ील्ड कॉलेज ऑफ़ टेक्नोलॉजी के स्टूडेंट्स और स्टाफ़ से कहा था, “आप मुझे सुनें इसके इंतज़ाम के लिए काफ़ी समय और एनर्जी लगाई गई है. और मैं इस बिल्डिंग को खुला हुआ घोषित करूं इसके लिए काफी समय लगाया गया है. जबकि सब जानते हैं कि बिल्डिंग पहले से ही खुली हुई है.”

उनकी दिलचस्पियों की रेंज चकरा देने वाली है. कभी-कभी उनके विचारों में एक जेंटिलमैन-किसान की सादगी का टच देखने को मिलता था. उनके तर्क काफ़ी व्यवस्थित होते थे. वो भटकते नहीं थे. उनके पास काफी किस्से-कहानियां हुआ करती थीं (ऐसा मुझे लगता है…). और ये कहानियां उनकी विस्तृत यात्राओं से इकट्ठा की गई होती थीं.