भारत के पास 3 रास्ते, सेना पीछे करे, कब्जा करे, या मरने को तैयार रहे: चीन | China threatens again

भारत के पास 3 रास्ते, सेना पीछे करे, कब्जा करे, या मरने को तैयार रहे: चीन

भारत के पास 3 रास्ते, सेना पीछे करे, कब्जा करे, या मरने को तैयार रहे: चीन

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:08 PM IST, Published Date : July 20, 2017/6:48 am IST

 

सिक्किम सीमा विवाद पर भारत और चीन के बीच लगातार विवाद बढ़ता जा रहा है. चीन की तरफ से भारतीय सेना को पीछे हटने की धमकी मिल रही है. डोकलाम विवाद पर पूर्व चीन राजदूत ने विवादिय बयान जारी किया है चीनी पूर्व राजदूत ने कहा है कि भारत के पास सिर्फ तीन ही रास्ते हैं। भारत अपनी सेना वापस बुलाए, या डोकलाम में कब्जा करे या फिर मरने को तैयार रहे.

सीमा विवाद और फिर चीन से लगातार मिल रही धमकियों के बाद दोनों देशों ने अपनी-अपनी सीमाओं में सेना की तैनाती बढ़ा दी है.आपको बता दें कि भारत-चीन के बीच कुल 3500 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है। मौजूदा सीमा विवाद भारत-भूटान और चीन सीमा के मिलान बिन्दु से जुड़ा हुआ है। सिक्किम में भारतीय सीमा से सटे डोकलाम पठार है, जहां चीन सड़क निर्माण कराने पर आमादा है। भारतीय सैनिकों ने पिछले दिनों चीन की इस कोशिश का विरोध किया था। 

डोकलाम पठार का कुछ हिस्सा भूटान में भी पड़ता है। भूटान ने भी चीन की इस कोशिश का विरोध किया। भूटान में यह पठार डोक ला कहलाता है, जबकि चीन में डोकलांग। भूटान और चीन के बीच कोई राजनयिक संबंध नहीं है। भूटान को अक्सर ऐसे मामलों में भारतीय सैन्य और राजनयिक सहयोग मिलता रहा है। 

 

मुलायम सिंह ने लोकसभा में बयान दिया था कि चीन ने भारत पर हमले की तैयारी कर ली है-

अगर चीन और भारत के बीच युद्ध हुआ तो अमेरिका और जापान किस हद तक भारत की मदद करेंगे? अगर अमेरिका ने भारत का साथ दिया तो क्या दोनों देशों के बीच युद्ध का संभावित परिणाम मूल रूप से कुछ और होगा? इन सारे सवालों पर भारत ही नहीं बल्कि चीनी मीडिया में भी काफ़ी माथापच्ची चल रही है. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने लिखा है कि भारत सच को स्वीकार कर ले.

चीन का विस्तार चौतरफ़ा हो रहा है. इस विस्तार को कई मोर्चों पर चीन अंजाम दे रहा है. चीन ख़ुद का विस्तार रोड, रेल, आर्थिक शक्ति और तकनीकी विकास के माध्यम से कर रहा है. इसके साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप में चीन बड़ी नौसैनिक शक्ति के रूप में उभर रहा है.

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने लिखा है, ” इससे यूरेशिया की भूराजनीतिक हालात में तब्दीली को साफ़ महसूस किया जा रहा है. चीनी ताक़त को ताइवान के मामले में अमेरिकी क़दम से भी महसूस किया जा सकता है. ट्रंप के आने के बावजूद भी अमेरिका वन चाइना नीति के ख़िलाफ़ जाने की स्थिति में नहीं है.”

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने लिखा है, ”2008 के बाद से हिन्द महासागर में चीनी नौसैनिकों का प्रभाव लगातार बढ़ा है. हिन्द महासागर में पीपल्स लिबरेशन आर्मी की मौजूदगी बढ़ी है. भूगोल का राजनीतिक महत्व हमेशा से तकनीकी शक्तियों से निर्धारित होता है. रेल और राजमार्ग के ज़रिए दुनिया की दूरिया कम हुई हैं. संपर्क के इन साधनों के ज़रिए पूर्वी एशिया और दक्षिण एशिया की दूरी कम करने की कोशिश की जा रही है और यह काम केवल चीन कर रहा है.”

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ”एक वक़्त वह था जब ताक़त रोम, बर्लिन, मॉस्को और शिकागो तक केंद्रित था. अब आज की तारीख़ में चीन रेल लाइन और तकनीक के ज़रिए अपना पांव पसार रहा है. चीन की तेज गति वाली रेल और राजमार्ग को अमेरिकी ट्रंक रूट्स की तुलना में ज़्यादा विशाल माना जा रहा है. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही लोगों और सामानों की आवाजाही म्यांमार से होते हुए बंगाल की खाड़ी और पाकिस्तान के कराची से ग्रीस और तुर्की के इस्तांबुल तक शुरू हो जाएगी.”

एससीएमपी ने लिखा है, ”तिब्बत में पहली बार शुरू हुई रेल सेवा चीन के उत्तरी-पूर्वी शीनिंग से ल्हासा के लिए 2006 में खोल दी गई. जल्द ही इस रेल सेवा को काठमांडू से जोड़ने की योजना है और अगर भारत तैयार हुआ तो इस लाइन को उत्तर भारत तक लाया जाएगा. कहा जा रहा है बांग्लादेश में ढाका, ईरान में बंदर अब्बास और पूर्वोत्तर भारत भी जल्द ही इस आधुनिक रेल और रोड सेवा में शामिल हो जाएंगे.”

चीन के मैरीटाइम सिल्क रोड परियोजना से समुद्रीय व्यापार में क्रांतिकारी बदलाव आने वाला है. हालांकि इसकी शुरुआत 1960 के दशक में ही हो गई थी. अब इसमें चीनी कंपनियां नए बंदरगाहों का निर्माण कर रही हैं. इन कंपनियों को चीन वित्तीय मदद मुहैया करा रहा है. सिल्क रोड में नई रेल परियोजना और राजमार्ग शामिल हैं.

 

व्यापार, निवेश, इंडस्ट्री ज़ोन और कई तरह की सेवाएं नई रेल, रोड और बंदरगाहों के साथ आएंगी. दक्षिण एशिया और हिन्द महासागर में चीन की आर्थिक शक्ति साफ़ दिखेगी.

 

चाइना-हिन्द महासागर-अफ़्रीका-भूमध्यसागर ब्लू इकनॉमिक गलियारे पर भी काम कर रहा है. इसे चाइना-इंडोचाइना प्रायद्वीप आर्थिक कॉरिडोर से जोड़ने की तैयारी है. यह पश्चिम की ओर से दक्षिण चीन सागर से हिन्द महासागर की तरफ़ बढ़ रहा है. आगे चलकर इसे चाइना-पाकिस्तान कॉरिडोर और बांग्लादेश-चाइना-इंडिया-म्यांमार इकनॉमिक कॉरिडोर से जोड़ा जाना है. दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि स्वेज़ और मलक्का से अरब की खाड़ी और ईस्ट कोस्ट ऑफ अफ़्रीका एक हो जाएंगे.”

रिपोर्ट के मुताबिक चीन की नज़रें यहीं तक सीमित नहीं है. मलक्का, ग्वादर, क्याउकप्यु, कोलंबो और श्रीलंका में हमम्बान्तोता को भी चिह्नित किया गया है. इसके अलावा इथोपिया के साथ जिबूती और मोम्बास्का से नौरोबी को भी जोड़ने की तैयारी है.

हिन्द महासागर में वन बेल्ट वन रोड को लेकर चीनी नौसैनिकों की मौजूदगी बढ़ रही है.” साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक हिन्द महासागर में 1985 में पहली बार चीनी युद्धपोतों ने दस्तक दी थी. इसके बाद चीनी नौसैनिकों की गतिविधि बढ़ती गई.

रिपोर्ट के मुताबिक चीन के चौतरफा विस्तार से भारत ख़ुद को घिरता महसूस कर रहा है. भारत इसे अपनी प्राचीन सभ्यता के प्रभावों पर चीन के अतिक्रमण के रूप में देख रहा है. 1947 में आज़ादी के बाद भारत रणनीतिक रूप से रूस के क़रीब रहा. हालांकि 21वीं सदी में भारत अमरीका के क़रीब आया लेकिन चीन के साथ उसकी करीबी कभी नहीं रही.

चीन और पाकिस्तान के बीच सामरिक सहयोग किसी से छुपा नहीं है. चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर से पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था का कायापलट करना चाहता है. ज़ाहिर है सीपीइसी चीन और पाकिस्तान की महत्वाकांक्षी परियोजना है. चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का हिस्सा बताता है. इसके साथ ही चीन भूटान में भारत की दखलअंदाज़ी का इल्ज़ाम लगाता है. नेपाल और चीन के बीच बढ़ते संबंधों के कारण भी भारत की चिंता बढ़ती है.

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने लिखा है, ”भारत फ़िलहाल कमज़ोर स्थिति में है. जापान की तरह भारत अमरीका से संरक्षित नहीं है. भारत सामरिक स्वायतता पर ज़ोर दे रहा है और यह सच है कि वो अमरीका से संरक्षित नहीं होना चाहता. यह साफ़ है कि अगर चीन और भारत में युद्ध होता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि यह युद्ध अमरीका के साथ होगा क्योंकि भारत जापान नहीं है.”

इस रिपोर्ट के मुताबिक, ”भारत के ख़िलाफ़ चीनी कार्रवाई में अमेरिका शायद आपत्ति जता सकता है लेकिन मौलिक रूप से इसका नतीजा नहीं बदलेगा. भारतीय आर्मी के आधुनिकीकरण की रफ़्तार बहुत धीमी है. सैन्य ताक़त के मामले में चीन भारत के मुकाबले काफ़ी आगे है. भारत अपने सैनिकों का आधुनिकीकरण जापान और अमेरिका की मदद से कर रहा है. ऐसे में एक सोच बन रही है चीन भारत को अपनी श्रेष्ठता कम होने से पहले एक सबक सिखाना चाहता है.”

 
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