वैश्विक तापमान वृद्धि से तालमेल बिठाने के लिए कीड़ों को संघर्ष करना होगा, जो मनुष्यों के लिए बुरी खबर हो सकती है |

वैश्विक तापमान वृद्धि से तालमेल बिठाने के लिए कीड़ों को संघर्ष करना होगा, जो मनुष्यों के लिए बुरी खबर हो सकती है

वैश्विक तापमान वृद्धि से तालमेल बिठाने के लिए कीड़ों को संघर्ष करना होगा, जो मनुष्यों के लिए बुरी खबर हो सकती है

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:24 PM IST, Published Date : October 4, 2022/4:57 pm IST

हेस्टर वीविंग, ब्रिस्टल विश्वविद्यालय

ब्रिस्टल (ब्रिटेन), चार अक्टूबर (द कन्वरसेशन) पशु एक निर्धारित स्तर तक तापमान को बर्दाश्त कर सकते हैं। इस स्तर का उच्चतम या निम्नतम तापमान इसकी चरम तापीय सीमा कहलाता है और जब तापमान इस सीमा के पार चला जाता है तो पशुओं को या तो इससे तालमेल बैठाना होता है अथवा उस स्थान को छोड़कर किसी ठंडी जगह पर चले जाना पड़ता है।

हालांकि, दुनिया भर में तापमान तेजी से बढ़ रहा है और इस गर्मी में पूरे यूरोप में जबरदस्त लू का प्रकोप इस बात का संकेत है। इस तरह की गर्म हवाओं के कारण तापमान नियमित रूप से चरम तापीय सीमाओं को पार कर सकता है, जिससे कई प्रजातियों का जीवन खतरे में पड़ सकता है।

एक नए अध्ययन में मैंने और मेरे सहयोगियों ने आकलन किया कि तापमान की चरम सीमा से बचने के लिए कीटों की 102 प्रजातियां अपनी महत्वपूर्ण तापीय सीमाओं से कितनी अच्छी तरह तालमेल बैठा सकती हैं। हमने पाया कि कीड़ों में ऐसा करने की कमजोर क्षमता होती है, जिसके चलते जलवायु परिवर्तन का उन पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

कीड़ों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। कीट की कई प्रजातियां पारिस्थितिक तंत्र में अहम भूमिका निभाती हैं जबकि अन्य की आवाजाही पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बाधित कर सकती है।

चरम तापमान की स्थिति में पशु कैसे तालमेल बैठाते हैं?

एक जानवर अपनी चरम तापीय सीमाओं को पारिस्थितिकी अनुकूलन के माध्यम से बढ़ा सकता है। एक जानवर के जीवनकाल में पारिस्थितिक अनुकूलन (कई बार घंटों के भीतर) होता है।

यह वह प्रक्रिया है जिसके चलते तापमान से जुड़ा पिछला अनुभव किसी जानवर या कीट को बाद के पर्यावरणीय बदलाव से सुरक्षा प्रदान करने में मदद करता है। वहीं, मनुष्य की त्वचा धीरे-धीरे तीव्र पराबैंगनी (यूवी) किरणों के प्रभाव के लिए अभ्यस्त हो जाती है।

एक तरह से कीड़े गर्मी के जोखिम से खुद को बचाने के लिए प्रोटीन का उत्पादन करते हैं जो अत्यधिक तापमान में कोशिकाओं को मृत होने से बचाता है।

कुछ कीड़े पारिस्थितिक अनुकूलन के लिए अपने रंग का उपयोग कर सकते हैं। कीट की प्रजाति ‘लेडीबर्ड’ गर्म वातावरण में विकसित होती हैं, जिनमें शुरुआती अवस्था में ठंड में विकसित होने वाले कीड़ों की तुलना में कम धब्बे होते हैं। चूंकि, गहरे धब्बे गर्मी को अवशोषित करते हैं जबकि कम धब्बे होना कीट के शरीर को ठंडा रखता है।

अनुकूलन तब होता है जब विकास के क्रम में उपयोगी जीन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होते हैं। जलवायु परिवर्तन के साथ तालमेल बैठाकर जीवित रहने के पशुओं में कई उदाहरण मिलते हैं।

पिछले 150 वर्षों के दौरान ‘गैंग-गैंग कॉकैटोस’ और ‘रेड-रम्प्ड’ जैसी ऑस्ट्रेलियाई तोते की प्रजातियों ने बड़ी चोंच विकसित की हैं। चूंकि, बड़ी चोंच में अधिक मात्रा में रक्त का प्रवाह हो सकता है, इसलिए आसपास के वातावरण में अधिक ताप हानि हो सकती है।

हालांकि, पारिस्थितिक अनुकूलन की तुलना में क्रमिक विकास में अधिक लंबा समय लगता है और संभव है कि इससे वैश्विक तापमान वृद्धि की वर्तमान गति के अनुरूप चरम तापमान सीमाओं से तालमेल बैठाने में सहायक साबित नहीं हो। विशेष रूप से ऊपरी तापीय सीमाएं विकसित करने की गति धीमी होती हैं, जिसकी वजह अधिक गर्मी सहन करने के लिए आवश्यक आनुवंशिक परिवर्तन हो सकता है।

तापमान में एक डिग्री सेल्सियस बदलाव के संपर्क में आने पर, हमने पाया कि कीड़े केवल अपनी ऊपरी तापीय सीमा को लगभग 10 प्रतिशत और उनकी निचली सीमा को औसतन लगभग 15 प्रतिशत तक सुधार कर सकते हैं। इसकी तुलना में, एक अलग अध्ययन में पाया गया कि मछली और केकड़े अपनी तापीय सीमा में लगभग 30 प्रतिशत तक सुधार कर सकते हैं।

द कन्वरसेशन शफीक नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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