ईरान में जबरन हिजाब को लेकर ऑनलाइन चर्चा, नारीवादियों ने किया कार्रवाई का आह्वान |

ईरान में जबरन हिजाब को लेकर ऑनलाइन चर्चा, नारीवादियों ने किया कार्रवाई का आह्वान

ईरान में जबरन हिजाब को लेकर ऑनलाइन चर्चा, नारीवादियों ने किया कार्रवाई का आह्वान

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:47 PM IST, Published Date : September 26, 2022/1:37 pm IST

(बलसम मुस्तफा, लीवरहुल्मे अर्ली करियर रिसर्च फेलो, डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इंटरनेशनल स्टडीज, यूनिवर्सिटी ऑफ वारविक)

लंदन, 26 सितंबर (द कन्वरसेशन) हिजाब को सही ढंग से न पहनने पर नैतिकता पुलिस द्वारा गिरफ्तार की गई एक 22 वर्षीय महिला की हिरासत में हुई मौत के बाद भड़के विरोध प्रदर्शनों को ईरानी अधिकारियों ने बलपूर्वक दबा दिया। महसा अमिनी की मौत, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि उसे गिरफ्तार करने के बाद मारा पीटा गया, के बाद देश में विरोध प्रदर्शन हुए।

पूरे देश में अशांति फैल गई है क्योंकि महिलाओं ने हिजाब पहनने के लिए मजबूर करने वाले कानूनों का विरोध करने के लिए अपने हिजाब जला डाले। इस दौरान सात लोगों के मारे जाने की खबर है और सरकार ने इंटरनेट को लगभग पूरी तरह से बंद कर दिया है।

लेकिन अरब दुनिया में – इराक सहित, जहां मेरा लालन पालन हुआ – इन विरोधों ने ध्यान आकर्षित किया है और महिलाएं देश के कठोर धार्मिक शासन के तहत संघर्ष कर रही ईरानी महिलाओं के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए ऑनलाइन तौर पर लामबंद हो रही हैं।

हिजाब पहनना अनिवार्य करना और, इससे भी आगे, महिलाओं के शरीर और दिमाग को अपने काबू में रखना, सिर्फ ईरान में ही होता हो, ऐसा नहीं है। यह कई देशों में विभिन्न रूपों और डिग्री में देखा जाता है।

इराक में, और ईरान के मामले के विपरीत, जबरन हिजाब पहनना असंवैधानिक है। हालांकि, अधिकांश संविधान की अस्पष्टता और विरोधाभास, विशेष रूप से इस्लाम के कानून के प्राथमिक स्रोत होने के बारे में अनुच्छेद 2 ने जबरन हिजाब की स्थिति को मजबूत किया है।

1990 के दशक से, जब सद्दाम हुसैन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के जवाब में अपना विश्वास अभियान शुरू किया, तो महिलाओं पर हिजाब पहनने का दबाव व्यापक हो गया। देश पर अमेरिका के नेतृत्व वाले आक्रमण के बाद, इस्लामी पार्टियों के शासन में स्थिति खराब हो गई, जिनमें से कई के ईरान के साथ घनिष्ठ संबंध थे।

2004 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के इस दावे के विपरीत कि इराकी लोग ‘‘अब स्वतंत्रता की खुशी महसूस कर रहे हैं’’, महिलाएं इस्लामवाद, सैन्यीकरण और पुरातनपंथ द्वारा कायम पितृसत्ता की कठिनाइयां सहन कर रही थीं, और ईरान के प्रभाव से यह और तेज हो गई।

2003 के बाद बगदाद में बिना हिजाब के बाहर जाना मेरे लिए एक दैनिक संघर्ष बन गया। रूढ़िवादी इलाके में प्रवेश करते समय, विशेष रूप से सांप्रदायिक हिंसा के वर्षों के दौरान मुझे खुद को बचाने के लिए स्कार्फ पहनना पड़ता था।

मध्य बगदाद में मेरे विश्वविद्यालय के चारों ओर हिजाब समर्थक पोस्टर और बैनर के बारे में सोचकर मुझे हमेशा परेशानी हुई। दो दशकों में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में कथित तौर पर बच्चों और छोटी लड़कियों को हिजाब लगाए जाने के साथ स्थिति वैसी ही बनी हुई है, ।

इराकी पब्लिक स्कूलों में जबरन हिजाब पहनने के खिलाफ एक नया अभियान सोशल मीडिया पर सामने आया है। अभियान का नेतृत्व करने वाले वुमन फॉर वुमन समूह में एक प्रमुख कार्यकर्ता नथिर ईसा, ने मुझे बताया कि हिजाब को समाज के कई रूढ़िवादी या पुरातनपंथी सदस्यों द्वारा पोषित किया जाता है और यह कि प्रतिक्रिया का अनुमान लगाया जा सकता है।

धमकियों और ऑनलाइन हमलों के कारण इस तरह के अभियानों को निलंबित कर दिया गया था। सोशल मीडिया पर हैशटैग #नोटूकंपल्सरीहिजाब के साथ पोस्ट करने वाली महिलाओं पर इस्लाम विरोधी और समाज विरोधी होने का आरोप लगाते हुए प्रतिक्रियावादी ट्वीट्स किए जा रहे हैं।

इसी तरह के आरोप उन ईरानी महिलाओं पर भी लगाए जा रहे हैं जो अपने स्कार्फ उतारकर या जलाकर शासन की अवहेलना कर रही हैं। इराकी शिया धर्मगुरु, अयाद जमाल अल-दीन ने अपने ट्विटर अकाउंट पर विरोध प्रदर्शन करने वाली ईरानी महिलाओं को ‘‘हिजाब-विरोधी बदकार’’ करार दिया, जो इस्लाम और संस्कृति को नष्ट कर रही हैं।

साइबर नारीवादी और प्रतिक्रियावादी पुरुष

इराक और अन्य देशों में साइबर नारीवाद पर मेरे डिजिटल मानव विज्ञान कार्य में, मुझे उन महिलाओं के लिए कई समान प्रतिक्रियाएं मिली हैं जो हिजाब पर सवाल उठाती हैं या इसे हटाने का फैसला करती हैं। जो महिलाएं हिजाब को अस्वीकार करने के लिए अपने सोशल मीडिया अकाउंट का इस्तेमाल करती हैं, उन्हें अक्सर सेक्सिस्ट हमलों और धमकियों का सामना करना पड़ता है जो उन्हें शर्मसार करने और चुप कराने का प्रयास करते हैं।

जो लोग हिजाब उतारने के अपने फैसले के बारे में खुलकर बात करते हैं, उन्हें सबसे कठोर प्रतिक्रिया मिलती है। हिजाब को महिलाओं के सम्मान और पवित्रता से जोड़ा जाता है, इसलिए इसे हटाना अवज्ञा के रूप में देखा जाता है।

जबरन हिजाब के साथ महिलाओं का संघर्ष और उनके खिलाफ प्रतिक्रिया प्रचलित सांस्कृतिक आख्यान को चुनौती देती है जो कहती है कि हिजाब पहनना एक स्वतंत्र विकल्प है। जबकि कई महिलाएं स्वतंत्र रूप से यह तय करती हैं कि इसे पहनना है या नहीं, अन्य इसे पहनने के लिए बाध्य हैं।

इसलिए शिक्षाविदों को हिजाब के इर्द-गिर्द होने वाले प्रवचन और इसे पहनने की अनिवार्यता को बनाए रखने वाली शर्तों पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। ऐसा करने में संस्कृति बनाम धर्म, या स्थानीय बनाम पश्चिमी के झूठे द्वंद्वों से दूर जाना महत्वपूर्ण है, जो हिजाब पहनने के मूल कारणों को उजागर करने के बजाय इसे अस्पष्ट करते हैं।

रूढ़िवादी समाजों में महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए मजबूर करने का मुद्दा स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के लिए महिलाओं की व्यापक लड़ाई के बारे में किसी भी चर्चा के केंद्र में होना चाहिए।

हिजाब पहनने की अनिवार्यता के खिलाफ ईरानी महिलाओं का गुस्सा, सुरक्षा कार्रवाई के बावजूद, निरंकुश रूढ़िवादी शासनों और समाजों के खिलाफ व्यापक महिलाओं के संघर्ष का हिस्सा है। ईरान और इराक में सामूहिक आक्रोश हमें अनिवार्य हिजाब और इसे महिलाओं पर थोपने या इसे सक्षम करने वाली शर्तों को बनाए रखने को चुनौती देने के लिए प्रेरित करता है।

जैसा कि एक इराकी महिला कार्यकर्ता ने मुझसे कहा: ‘‘हम में से कई लोगों के लिए, हिजाब एक जेल के द्वार की तरह है, और हम अदृश्य कैदी हैं।’’ अंतरराष्ट्रीय मीडिया और कार्यकर्ताओं के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपने संघर्ष को प्रकाश में लाएं, बिना यह कहे कि मुस्लिम महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा बचाने की जरूरत है।

द कन्वरसेशन एकता एकता

एकता

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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