यूक्रेन : शरणार्थियों की निकासी में नागरिकता और नस्ली अंतर की भूमिका |

यूक्रेन : शरणार्थियों की निकासी में नागरिकता और नस्ली अंतर की भूमिका

यूक्रेन : शरणार्थियों की निकासी में नागरिकता और नस्ली अंतर की भूमिका

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:10 PM IST, Published Date : March 13, 2022/2:21 pm IST

(रालुका बेजन, डलहौजी विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र के सहायक प्राध्यापक, रेन बोगोविक, टोरंटो विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के शोधकर्ता)

टोरंटो, 13 मार्च (द कन्वरसेशन) रूस के हमले के बाद लाखों यूक्रेनी नागरिकों को अपना देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस दौरान एक सवाल यह उठ रहा है कि यूक्रेनी शरणार्थियों का तो पूर्वी यूरोप के देशों में स्वागत किया गया, लेकिन सीरियाई, इराकी, अफगान और इरिट्रियाई शरणार्थियों के मामले में ऐसा नहीं हुआ था? क्या यह इसलिए कि वे श्वेत हैं?

आलोचकों का कहना है कि यूरोपीय संघ दक्षिणी गोलार्ध के शरणार्थियों के साथ अलग व्यवहार करता है और उसका यह व्यवहार नस्ल पर आधारित होता है।

आलोचकों ने यह भी रेखांकित किया कि रोमानिया और पोलैंड द्वारा यूक्रेनी नागरिकों के प्रति दिखाया गया अतिथि भाव उनके पुराने रुख के विपरीत है, जिसके तहत उन्होंने अफ्रीका और पश्चिम एशिया से आने वाले शरणार्थियों को शरण देने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी।

हालांकि, केवल नस्ल के आधार पर शारणार्थियों के स्वागत की व्याख्या, भूराजनीति की वास्तविकताओं का सरलीकरण करने जैसी है। यह यूरोपीय संघ (ईयू) के कानूनी ढांचे को भी नजरअंदाज करती है, जो शरणार्थियों की राष्ट्रीयता और नागरिकता के आधार पर श्रेणी तय करता है।

यूरोप नीति निर्धारिण में देशों के एक पदानुक्रम का पालन करता है, जिसमें ईयू के पुराने सदस्यों को नए सदस्यों और सदस्यता की होड़ में शामिल देशों पर तरजीह दी जाती है। बाकी सभी मुल्क इन देशों के बाद आते हैं।

पोलैंड द्वारा 10 लाख और रोमानिया द्वारा पांच लाख यूक्रेनी नागरिकों के स्वागत की प्रतिबद्धता जताना यूक्रेन से इन देशों की भौगोलिक निकटता से जुड़ा हुआ है।

शरणार्थी आमतौर पर सबसे नजदीकी सुरक्षित जगहों का रुख करते हैं। सीरिया युद्ध को ही याद करें तो उस समय बड़ी संख्या में सीरियाई नागरिकों ने पड़ोसी तुर्की, लेबनान और जॉर्डन की तरफ पलायन किया था। तुर्की ने करीब 40 लाख, लेबनान ने आठ लाख और जॉर्डन ने सात लाख सीरियाई शरणार्थियों को शरण दी थी।

इसी तरह, आधे से अधिक इरिट्रियाई नागरिकों ने पड़ोसी इथियोपिया और सूडान में शरण ली थी। बांग्लादेश ने भी पड़ोसी म्यांमा से आए अधिकतर रोहिंग्या मुस्लिमों को शरण दी थी।

नस्ली संरचना और स्थानीय श्रम बाजार भी अहम भूमिका निभाते हैं। ईयू में यूक्रेनी प्रवासियों का पसंदीदा गंतव्य पोलैंड है। वर्ष 2020 के अंत तक रिकॉर्ड 15 लाख यूक्रेनी नागरिकों ने काम के लिए पोलैंड का रुख किया था।

इसके अलावा, यूक्रेन में करीब 1.6 लाख लोग हंगरी मूल के हैं, जबकि 1.5 लाख से अधिक रोमानियाई अल्पसंख्यक हैं। रोमानिया में ‘यूनियन ऑफ द यूक्रेनियन’ नाम का एक राजनीतिक दल भी है, जिसे देश की संसद में एक सीट हासिल है।

यूक्रेनी नागरिक व्यक्तिगत कारणों, मसलन-चिकित्सा सुविधाओं और परिवार से मिलने के लिए नियमित अंतराल पर सीमा पार करते रहते हैं।

पूर्वी यूरोप एक समान सोवियत इतिहास साझा करता है और वर्ष 1989 में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद वहां समान रूस विरोधी भावना है। बर्लिन की दीवार गिराए जाने के बाद अधिकतर यूरोपीय देशों ने कम्युनिस्ट विचारों को रूस-केंद्रित बताते हुए उन्हें खारिज कर दिया था।

पश्चिम के साथ एकजुटता दिखाना और स्वतंत्रता के उदार विचारों, मुक्त बाजार और लोकतांत्रिक प्रणाली को अंगीकार करने की प्रतिबद्धता जताना रूस के नव उपनिवेशवाद के विरोध का आधार बन गया है।

तत्कालीन पूर्वी ब्लॉक के देशों (सोवियत संघ, पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, अल्बानिया, बुल्गारिया, युगोस्लाविया, रोमानिया, चेकोस्लोवाकिया और हंगरी) की एकजुटता समान उत्पीड़न के इतिहास पर आधारित है।

रूसी आक्रमण के अनुभवों के चलते पूर्वी यूरोप के अन्य देशों के लोग यूक्रेनी नागरिकों के दर्द को बेहतर ढंग से समझ पा रहे हैं।

यूक्रेन और पोलैंड के लोगों के बीच भाषायी समानता भी पोलैंड में यूक्रेनी नागरिकों के स्वागत की एक बड़ी वजह है। दोनों देशों की भाषाएं स्लाविक हैं, जो लंबे समय से एक-दूसरे को प्रभावित करती आई हैं। सीमा के करीब रहने वाले पोलैंड और यूक्रेन वासी भी एक-दूसरे की बेहतर समझ रखते हैं।

तत्कालीन पूर्वी ब्लॉक के अधिकतर देश क्रिश्चियन ऑर्थोडॉक्स के अनुयायी हैं। क्रिश्चियन ऑर्थोडॉक्स न केवल राष्ट्रीयता से जुडा है, बल्कि यह साम्यवाद के पतन के बाद फला-फूला है। यूक्रेन में वर्ष 1991 में 39 प्रतिशत आबादी ने खुद को ऑर्थोडॉक्स बताया था। वर्ष 2015 में यह संख्या दोगुनी हो गई।

यूक्रेन ईयू का सदस्य नहीं है, लेकिन उसने यूरोप की पड़ोसी नीति (ईएनपी) और 2014 के ईयू-यूक्रेन एसोसिएशन समझौते पर हस्ताक्षर कर रखा है।

एसोसिएशन समझौता यूक्रेन को समान इतिहास और मूल्य आधारित यूरोपीय देश के रूप में परिभाषित करता है।

पोलैंड ने यूक्रेनी शरणार्थियों का गर्मजोशी से स्वागत किया। इसके उलट उसने हाल में इराकी और अफगान शरणार्थियों को सीमा पर सर्दी में उनके हाल पर छोड़ दिया। यह ईयू ही है जिसने लातविया, लिथुआनिया और पोलैंड की सीमा प्रबंधन की राशि तीन गुना बढ़ा दी है। यही नहीं, उसने शरण के लिए पात्र लोगों की संख्या घटाने के साथ ही सीमा पर बड़े पैमाने पर लोगों को वापस भेजना और हिरासत में लेना शुरू कर दिया है।

‘अश्वेत लोग’ और ‘अफ्रीकी विद्यार्थी’ शब्दों का इस्तेमाल बार-बार उन लोगों के लिए किया जा रहा है, जिन्हें सीमा पर रोका जा रहा है और निकासी बसों में सवार होने से मना किया जा रहा है।

यूक्रेन ने दक्षिणी गोलार्ध के विद्यार्थियों को चिकित्सा पाठ्यक्रमों में नियमित रूप से लेने की सोवियत काल की परंपरा जारी रखी है। भारत, मोरक्को, तुर्कमेनिस्तान, आजरबैजान, नाइजीरिया, चीन, तुर्की, मिस्र, इजरायल और उज्बेकिस्तान उन शीर्ष 10 देश में शामिल हैं, जिनके सबसे ज्यादा विद्यार्थी यूक्रेन में पढ़ते हैं।

पूर्वी यूरोपीय देशों की अधिकतर आबादी की नस्ल एक है और गैर नागरिक अक्सर अश्वेत दिखते हैं।

हमारी मंशा नस्ली और भेदभावपूर्ण रवैये को वैधानिकता प्रदान करना नहीं है, जो यूक्रेन के शरणार्थी संकट के संदर्भ में सामने आया है।

शरणार्थियों के स्वागत में नस्ल मायने रखती है, लेकिन यूक्रेन के पड़ोसियों द्वारा शरणार्थियों के लिए निकासी गलियारे खोलने के मामले में नस्ल का बहुत लेना-देना नहीं है, बल्कि यह भू-राजनीतिक परिदृश्य और नागरिकता है, जो यूरोप के भीतर आवाजाही की आजादी को निर्धारित कर रही है।

(द कन्वरसेशन)

धीरज पारुल

पारुल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)