भोपाल गैस त्रासदी के 34 बरस, रातों-रात जहरीली गैस ने हजारों लोगों को सुला दिया था मौत की नींद | 34 years of Bhopal gas tragedy

भोपाल गैस त्रासदी के 34 बरस, रातों-रात जहरीली गैस ने हजारों लोगों को सुला दिया था मौत की नींद

भोपाल गैस त्रासदी के 34 बरस, रातों-रात जहरीली गैस ने हजारों लोगों को सुला दिया था मौत की नींद

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:58 PM IST, Published Date : December 2, 2018/11:31 am IST

भोपाल। भोपाल गैस त्रासदी को 34 बरस बीत चुके हों, लेकिन यहां आज भी लोग इस घटना को याद कर दहल जाते हैं। आज भी यहां जहरीली गैसों का खतरा बरकरार है। उस त्रासदी का कई टन जहरीला कचरा निस्तारण अब भी एक चुनौती बना हुआ है।

पढ़ें- रींवा कलेक्टर के लिए चुनाव मामूली काम, फिजूल के चक्कर में 25 साल की…

ये कचरा आज भी हादसे की वजह बने यूनियन कार्बाइड कारखाने में कवर्ड शेड में मौजूद है। इसके खतरे को देखते हुए यहां पर आम लोगों का प्रवेश अब भी वर्जित है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कारखाने के 10 टन कचरे का निस्तारण इंदौर के पास पीथमपुर में किया गया था, लेकिन इसका पर्यावरण पर क्या असर पड़ा ये अब भी पहेली बना हुआ है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस कचरे और 34 साल पहले हुए हादसे में कारखाने से निकली जहरीली गैसों का असर आज भी यहां के लोगों को झेलना पड़ रहा है। दरअसल भारत के पास इस जहरीले कचरे के निस्तारण की तकनीक और विशेषज्ञ आज भी मौजूद नहीं हैं।

पढ़ें-सीट बदलने से नाराज उषा ठाकुर का छलका दर्द, कहा- बीजेपी में भी वंशवाद, वीडियो वायरल

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 13-18 अगस्त 2015 तक पीथमपुर में ‘रामके’ कंपनी के इंसीनरेटर में यहां का लगभग 10 टन जहरीला कचरा जलाया गया था। ट्रीटमेंट स्टोरेज डिस्पोजल फेसीलिटीज (टीएसडीएफ) संयंत्र से इसके निष्पादन में पर्यावरण पर कितना असर पड़ा, इसकी रिपोर्ट केंद्रीय वन-पर्यावरण मंत्रालय को चली गई है। हालांकि इसका असर क्या हुआ, ये अब भी पहेली बना हुआ है। साथ ही ये सवाल अब भी बरकरार है कि इस जहरीले कचरे का निस्तारण कब तक होगा।

हादसे के बाद जहरीले कचरे को जर्मनी भेजने का प्रस्ताव सरकार ने तैयार किया था। हालांकि जर्मन नागरिकों के विरोध के कारण इस कचरे को वहां नहीं भेजा जा सका। जानकारों के अनुसार इस तरह के केमिकल को दो हजार डिग्री से अधिक तापमान पर जलाया जाता है।

पढ़ें- पांच को शिवराज कैबिनेट की बैठक, कांग्रेस ने जताई आपत्ति, कहा-आचार स.

भोपाल गैस त्रासदी 2-3 दिसंबर 1984 को यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने में जहरीली गैस के रिसाव से हुई थी। कड़ाके की ठंड रात में हुए इस हादसे में तकरीब 8000 लोगों की जान दो सप्ताह के भीतर हो गई थी। वहीं 8000 से ज्यादा लोग इसके दुष्प्रभाव की वजह से बीमार होकर दम तोड़ चुके हैं। अब भी इस हादसे की वजह से अपंग या अंधे हुए लोग इस त्रासदी की मार झेल रहे हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस हादसे की वजह से आज भी भोपाल आसपास अपंग बच्चे पैदा होते हैं। मरने वालों के अनुमान पर अलग-अलग एजेंसियों की राय भी अलग-अलग है। पहले अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2,259 बताई गई थी। मध्य प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी। वहीं कुछ रिपोर्ट का दावा है कि 8000 से ज्यादा लोगों की मौत तो दो सप्ताह के अंदर ही हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग गैस रिसाव से फैली बीमारियों के कारण मारे गये थे। इसके प्रभावितों की संख्या लाखों में होने का अनुमान है।

पढ़ें- मध्यप्रदेश में ईवीएम मशीन को लेकर फैलाई जा रही अफवाहों पर चुनाव आयो..

यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी से मिथाइल आइसो साइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। इसका उपयोग कीटनाशक के लिए किया जाता था। अचानक से काफी मात्रा में जहरीली गैस का रिसाव होने से यहां के लोगों की मौत भी कीड़ों की तरह हुई थी। इस हादसे की भयावह तस्वीरें आज भी लोगों का दिल दहला देती हैं। लोग आज भी उस मंजर को याद कर रो पड़ते हैं।

ऐसे हुआ था भोपाल गैस कांड
दो दिसंबर 1984 की रात नाइट शिफ्ट में काम करने आए करीब आधा दर्जन कर्मचारी भूमिगत टैंक के पास पाइपलाइन की सफाई शुरू करने जा रहे थे। उसी वक्त टैंक का तापमान अचानक 200 डिग्री पहुंच गया, जबकि इस टैंक का तापमान चार से पांच डिग्री के बीच रहना चाहिए था। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि टैंक को सुरक्षित रखने के लिए प्रयोग किया जाने वाला फ्रीजर प्लांट बिजली का बिल बचाने के लिए बंद कर दिया गया था। तापमान बढ़ने पर टैंक में बनने वाली जहरीली गैस उससे जुड़ी पाइप लाइन में पहुंचने लगी। पाइप लाइन का वॉल्व सही से बंद नहीं था, लिहाजा उससे जहरीली गैस का रिसाव शुरू हो गया।