बतंगड़ः ताक-झांक के आरोप पर छिड़ी नोक-झोंक
Batangad: कौटिल्य यानी चाणक्य का मानना था कि राजा की पहुंच भीतर तक रहे, इसके लिए जासूस सबसे जरूरी सोर्स हैं।
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सौरभ तिवारी
कौटिल्य यानी चाणक्य का मानना था कि राजा की पहुंच भीतर तक रहे, इसके लिए जासूस सबसे जरूरी सोर्स हैं। अंदरखाने क्या पक रहा है, ये जानने की जिज्ञासा ना केवल पत्रकारिता की बुनियादी जरूरत है बल्कि ये सत्ताधीशों की भी अहम कूटनीतिक जरूरत है। यही वजह है कि अपने विरोधियों पर नजर रखने के लिए सत्ताधीश आदिकाल से जासूसी को एक प्रभावी हथियार के रूप में इस्तेमाल करते आ रहे हैं। हालांकि ऐसे भी मौके आए हैं जब जासूसी के मुद्दे पर सरकारों को अपनी सत्ता तक गंवानी पड़ गई है। 1991 में जासूसी के ऐसे ही एक आरोप में कांग्रेस ने तब चंद्रशेखर सरकार से अपने समर्थन की बैसाखी खींच कर उसे सत्ताच्युत कर दिया था।
केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार पर भी एक बार फिर अपने विरोधियों की जासूसी कराने का आरोप लगा है। इस बार ये आरोप कैश फॉर क्वेरी केस में घिरीं टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने लगाया है। उन्होंने दावा किया है कि सरकार उनके फोन और ईमेल को हैक करने की कोशिश कर रही है। महुआ के अलावा कांग्रेस सांसद शशि थरूर, पवन खेड़ा और शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी अपने फोन में एपल कंपनी की ओर से आए इस तरह के अलर्ट का स्क्रीन शॉट शेयर करके सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
आरोप काफी गंभीर और संवेदनशील है, लिहाजा जवाब देने के लिए भाजपा की ओर से पूर्व टेलिकाम मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद सामने आए। रविशंकर ने चुनौती दी कि अगर इन लोगों को ऐसा लगता है कि उनकी जासूसी की जा रही है तो वे एपल के खिलाफ एफआईआर क्यों नहीं दर्ज करा देते हैं? याद करिए भाजपा ने ठीक यही चुनौती तब राहुल गांधी को भी दी थी जब उन्होंने कथित पेगासस जासूसी मामले में अपना आईफोन हैक करने की कोशिश किए जाने का आरोप लगाया था। पेगासस जासूसी मामला भी तब काफी तूल पकड़ा था। भाजपा ने तब भी ये आरोप लगाया था कि मामले की जांच के लिए जब सुप्रीम कोर्ट ने समिति गठित कर दी तो राहुल ने उस समिति के समक्ष आईफोन जमा करने से क्यों इनकार कर दिया था। इधर विपक्षी सांसदों के फोन की जासूसी किए जाने का मामला तूल पकड़ने पर एपल ने अपना बयान जारी करके कहा है कि ‘हमें यह नहीं पता है कि यह चेतावनी कैसे जारी हुई है, हो सकता है कि ये एक फॉल्स अलार्म हो।’
मामले का दिलचस्प पहलु ये है कि जो कांग्रेस आज मोदी सरकार पर अपने नेताओं की जासूसी कराने का आरोप लगा रही है खुद उसी की सरकार पर अपने विरोधियों की तांक-झांक करने के आरोप लगते रहे हैं। शुरुआत तो पहली सरकार से ही हो गई थी। एक प्रतिष्ठित मीडिया समूह ने उसके हाथ लगे संवदेनशील दस्तावेज़ों के आधार पर खुलासा किया था कि देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने वाले सुभाष चंद्र बोस के परिवार की जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने दो दशकों तक जासूसी कराई थी।
वहीं सन 2013 में दाखिल किए गए एक आरटीआई जवाब से पता चला कि यूपीए सरकार हर महीने लगभग 9,000 फोन और 500 ईमेल खातों पर नजर रखती थी। जासूसी का ये सिलसिला कांग्रेस के नेतृत्व वाली उसकी आखिरी UPAसरकार तक जारी रहा। साल 2011 में वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपनी ही सरकार पर उनकी जासूसी कराने का आरोप लगा दिया था। तब ये मामला काफी तूल पकड़ा था, क्योंकि शक की सुई तब के मंत्री चिदंबरम पर उठी थी।
यानी जासूसी के आरोप से कोई भी सरकार बच नहीं सकी है। मोदी सरकार पर भी विरोधियों की जासूसी कराने के आरोप लग रहे हैं। विपक्षी जांच एजेंसियों का राजनीतिक दुरुपयोग करके छापेमारी करने के अलावा उनकी जासूसी करने का भी आरोप लगा रहा है। राहुल गांधी ने पेगासस मामले के बाद अब एपल मामले को भी अपने पसंदीदा मुद्दे अडाणी से जोड़ दिया है। राहुल गांधी ने कहा कि, ‘जब भी अडानी से जुड़ा मामला उठाया जाता है तो एजेंसियों को जासूसी में लगा दिया जाता है।’
अब सवाल उठता है कि विपक्ष अपने इन आरोपों का क्या कोई चुनावी फायदा उठा पाएगा? तो इस सवाल का जवाब यही है कि भाजपा इस मामले को भी विपक्ष के देशविरोधी चरित्र से जोड़ कर उसके आरोपों को दूसरी दिशा में मोड़ने की कोशिश करेगी। भाजपा अपनी इस पसंदीदा कोशिश में जुट भी गई है। केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विन वैष्णव ने कह भी दिया है कि, ‘कुछ हमारे आलोचक हैं जो झूठे आरोप हमेशा लगाते रहते हैं। ये देश की प्रगति नहीं चाहते। वैष्णव ने कहा कि विपक्षी दलों की आदत है कि जब भी कोई अहम मुद्दा नहीं होता तो वे उनकी निगरानी करने का हल्ला करने लगते हैं। इन्होंने कुछ साल पहले भी ऐसे ही आरोप लगाए थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई जांच में कुछ नहीं निकला।’
माहौल चुनावी है तो जाहिर है कि विपक्ष जासूसी के इस मुद्दे को भी गरमाने की कोशिश जरूर करेगा। लेकिन अगर सियासी आरोप-प्रत्यारोप से परे होकर अगर आम लोगों के नजरिए से देखें तो सतही कॉमन परसेप्शन यही है कि जब किसी ने कुछ गलत नहीं किया है तो उसे डर काहे का? हालांकि नैतिकता और कानूनी लिहाज से ये मामला निजता के उल्लंघन का जरूर नजर आ रहा है। सरकार ने आरोपों की जांच के आदेश तो दे ही दिए हैं, उम्मीद करनी चाहिए कि हकीकत भी सामने आ ही जाएगी।
लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं।

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