बरुण सखाजी. राजनीतिक विश्लेषक
Political analysis of Korba Loksabha: कोरबा में तस्वीर साफ है। दो महिला नेताओं के बीच जंग है। कांग्रेस के कब्जे में यह सीट है। प्रत्याशी के रूप में अगर बात करेंगे तो सरोज पांडे भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। सफल राजनेता रही हैं। पार्टी में राष्ट्रीय फलक पर जानी जाती हैं। सामने कांग्रेस की ज्योत्सना महंत हैं। महंत प्रदेश के स्पीकर रह चुके वर्तमान नेता प्रतिपक्ष विधानसभा चरणदास महंत की पत्नी हैं। बतौर प्रत्याशी ज्योत्सना अपनी मौलिक पहचान की बजाय चरण दास महंत की पत्नी के रूप में ज्यादा जानी जाती हैं। दोनों ही कोरबा से बाहर की प्रत्याशी हैं। इसलिए स्थानीय और बाहरी का मुद्दा कम है। ज्योत्सना बतौर सांसद सक्रिय नहीं रहीं। सिर्फ प्रत्याशी के पैमाने पर देखें तो सरोज भारी पड़ रही हैं।
Political analysis of Korba Loksabha : कोरबा लोकसभा क्षेत्र में 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से 3 एसटी रिजर्व हैं बाकी सामान्य। इन 8 सीटों में से 6 पर भाजपा के विधायक हैं, एक पर कांग्रेस और एक पर गोंगपा जीती है। ऐसे में यहां विधानसभा के नजरिए से कांग्रेस कमजोर जरूर दिख रही है, लेकिन मौजूदा सांसद कांग्रेस की ही हैं। इस सीट पर भाजपा से बंशीलाल महतो 2014 में जीते थे, लेकिन बहुत कम मार्जिन से। इससे पहले चरणदास महंत सांसद रह चुके हैं। यूपीए-2 में वे राज्यमंत्री भी थे। यानि परिसीमन के बाद से यह चौथा चुनाव है इनमें से 2 बार कांग्रेस जीती है। यह चौथा चुनाव होगा। कह सकते हैं इस सीट का मिजाज कांग्रेसी है। लेकिन नगरीय क्षेत्र अब बढ़ गया है, इसलिए यहां से भाजपा मजबूत हो रही है। 2019 में कमजोर प्रत्याशी के बावजूद भाजपा ने टक्कर अच्छी दी थी। सीट में गोंडवाना का अहम रोल है। इसलिए कहा जा सकता है भाजपा भले ही 6 विधायकों के साथ मजबूत दिख रही है, किंतु इन छह पर भाजपा को जीतने के लिए कम से कम प्रति सीट 20 हजार से अधिक की लीड चाहिए। क्योंकि कोरबा में सबसे अहम रोल पाली-तानाखार का रहता है। यहां से गोंगपा की एबसेंस में कांग्रेस को इकतरफा वोट मिल सकते हैं। ऐसी स्थिति में 6 सीटों से मिली औसतन 20 हजार की लीड कवर हो जाएगा। तब अहम रोल अदा करेगी रामपुर सीट। यह कांग्रेस के पास है। यानि सीट के पैमाने पर कसेंगे तो कोरबा में टक्कर कांटे की है, लेकिन थोड़ी सी यह सीट भाजपा की तरफ झुकी है।
यहां टक्कर है। कांटे का मुकाबला है। कहीं कोई भारी कहीं कोई भारी है। भाजपा संगठन ने अगर सरोज पांडे को वास्तविक सपोर्ट किया तो वे इस सीट को निकाल लेंगी। भाजपा में अंदरूनी कलह डैमेज करेगा। कांग्रेस इस सीट को जीतना चाहती है, इसलिए खर्च भी करेगी। एक लाइन में कहें तो सरोज पांडे का राजनीतिक वजन ज्यादा दिख रहा है।
एक लाइन में कहना ही तो कठिन है। चूंकि यह सीट बहुत पेचीदा है। इतिहास कुछ और कहता है, यहां का भूगोल कुछ और। मन और जन मानस की सुनें तो भाजपा थोड़ी अपर हैंड दिख रही है। सरोज पांडे जैसी बेदाग, बेधड़क, बेहिचक और बेबाक नेता जीतने में सक्षम हैं।
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1 week ago